Monday, May 2, 2011

अवहेलना

 क्या आपने कभी,
अपनी एक  दो दिन की बड़ी
दाढ़ी पर हाथ फेरा है
खुरदरे ,कंटीले ,चुभने वाले बाल
जिन्हें बार बार काटने को जी चाहता है
और हम उन्हें काटते भी हैं
पर निर्लज्ज फिर बढ जाते है
और लगते है चुभने
ये ही बाल,जब काटे नहीं जाते
तो बढ़ जाते है रेशमी मुलायम होकर
जिन्हें बार बार सहलाने को जी चाहता है
आदमी का छोटापन ,
उसे बना देता है
एक दो दिन की बढ़ी दाढ़ी के जैसा
खुरदुरा ,कंटीला और चुभने वाला
और उसका बढ्प्पन,उसे बनाता है
रेशमी ,मुलायम बालों जैसा
सबके मन को लुभानेवाला.
तो क्यों न हम,
छोटे लोगों के टुच्चे पन की तरफ
ध्यान ही न दें
शायद हमारी यह अवहेलना ही
उन्हें रेशमी  ,मुलायम बनादे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रावण हर युग में मरता है

रावण हर युग में मरता है
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कितना ही हो ज्ञानी ,ध्यानी,कितनी ही भाषा का ज्ञाता
किन्तु बुद्धि यदि विध्वंशक हो ,सारा ज्ञान धरा रह जाता
ट्विन टॉवर पर हो हमला या,सीताजी का हुआ अपहरण
ओसामा बिन लादेन या फिर ,हो दशमुख लंकापति रावण
किन्तु कर्म हो अगर अधर्मी,करनी का फल मिलता ही है
ओसामा बिन   हो या रावण,  दुष्ट हमेशा   मरता   ही  है
आतंकी ,आतंकवाद को,एक दिन झुकना ही पड़ता है
त्रेता युग हो या फिर कलयुग, रावण हर युग में मरता है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'