क्या आपने कभी,
अपनी एक दो दिन की बड़ी
दाढ़ी पर हाथ फेरा है
खुरदरे ,कंटीले ,चुभने वाले बाल
जिन्हें बार बार काटने को जी चाहता है
और हम उन्हें काटते भी हैं
पर निर्लज्ज फिर बढ जाते है
और लगते है चुभने
ये ही बाल,जब काटे नहीं जाते
तो बढ़ जाते है रेशमी मुलायम होकर
जिन्हें बार बार सहलाने को जी चाहता है
आदमी का छोटापन ,
उसे बना देता है
एक दो दिन की बढ़ी दाढ़ी के जैसा
खुरदुरा ,कंटीला और चुभने वाला
और उसका बढ्प्पन,उसे बनाता है
रेशमी ,मुलायम बालों जैसा
सबके मन को लुभानेवाला.
तो क्यों न हम,
छोटे लोगों के टुच्चे पन की तरफ
ध्यान ही न दें
शायद हमारी यह अवहेलना ही
उन्हें रेशमी ,मुलायम बनादे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
अपनी एक दो दिन की बड़ी
दाढ़ी पर हाथ फेरा है
खुरदरे ,कंटीले ,चुभने वाले बाल
जिन्हें बार बार काटने को जी चाहता है
और हम उन्हें काटते भी हैं
पर निर्लज्ज फिर बढ जाते है
और लगते है चुभने
ये ही बाल,जब काटे नहीं जाते
तो बढ़ जाते है रेशमी मुलायम होकर
जिन्हें बार बार सहलाने को जी चाहता है
आदमी का छोटापन ,
उसे बना देता है
एक दो दिन की बढ़ी दाढ़ी के जैसा
खुरदुरा ,कंटीला और चुभने वाला
और उसका बढ्प्पन,उसे बनाता है
रेशमी ,मुलायम बालों जैसा
सबके मन को लुभानेवाला.
तो क्यों न हम,
छोटे लोगों के टुच्चे पन की तरफ
ध्यान ही न दें
शायद हमारी यह अवहेलना ही
उन्हें रेशमी ,मुलायम बनादे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'