वह चले गए
वह जिनकी अपनी गरिमा थी, गौरव था
कठिन काम करना भी जिनको संभव था
सूरज जैसे प्रखर, चंद्रमा से शीतल
गंगा की लहरों से बहते थे कल कल
वह जिनमें दृढ़ता होती थी पर्वत सी
और विचार में गहराई की सागर सी
अपनी एक सुनामी से वो छले गए
कल तक चलते फिरते थे ,वह चले गए
जो परमार्थी,सेवाभावी ,सज्जन थे
पूरे उपवन को महकाते चंदन थे
वह जिनके मुख रहती थी मुस्कान सदा
छोटे बड़े सभी का रखते ध्यान सदा
वह जिनकी थी सोच जरा भी ना ओछी
वह जिन्हें बुराई किसी की ना सोची
जलन नहीं थी किंतु चिता में जले गए
कल तक चलते फिरते थे, वह चले गए
वह जो कर्मभाव में सदा समर्पित थे
सेवाभावी ,प्रभु सेवा में अर्पित थे
थे भंडार दया के ,संयम वाले थे
बुद्धि और कौशल में बड़े निराले थे
मिलजुल जिया सदा सादगी का जीवन
सभी दोस्त थे,नहीं किसी से थीअनबन
नियति के क्रूर हाथों में आ ,छले गए
कल तक चलते फिरते थे ,वह चले गए
मदन मोहन बाहेती घोटू