Friday, April 1, 2011

कृष्ण प्रश्न-यक्ष प्रश्न

        
प्यारे कान्हा
सच बतलाना
याद कभी तो आता होगा,
वो राधा का साथ सुहाना
राधा, वो बरसाने वाली
प्रेमसुधा बरसाने वाली
पहला पहला प्यार तुम्हारा
बचपन  वाला
हे मनमोहन
तुमने चोरी करते करते दधी और माखन
चुरा लिया था माखन जैसी राधा का मन
हे गिरधारी
जब भीगी थी मसें तुम्हारी
पहली बार देख कर जिसको,
उठी प्यार की थी चिंगारी
क्या तुम्हारा बांकापन था
जिसे देख कर फिसल गया राधा का मन था
रास बिहारी
वो थी मुरली तान तुम्हारी
सुन कर जिसे चली आती थी
बेसुध सी राधा बेचारी
धीरे धीरे बीज प्यार का पनपा होगा
तुम दोनों का ह्रदय साथ में धड़का होगा
राधा के कोमल कपोल को,
जिस दिन तुमने छुआ होगा
सहम गयी होगी बेचारी
मन में कुछ कुछ हुआ होगा
और शरद पूनम के दिन जब
तुमने रास रचाया होगा
राधा का तनमन कितना हर्षाया होगा
कहते पहला प्यार भुलाया ना जा पाता
तुम्हे अभी भी याद कभी आती है राधा?
नटवर नागर!
काहे फोड़ा करते थे गोपी के गागर?
और एक दिन जमुना तीरे से
पानी में स्नान कर रही सभी गोपियों ,
के थे वस्त्र चुराए चुपके से ,धीरे से
ये तुम्हारी  क्रीडा थी या उत्कंठा थी
या फिर थी नैनों की तृष्णा?
प्यारे कृष्णा
अधर तुम्हारे लगी हुई जून्ठी मुरली को
जब राधा ने अपने अधरों से छुआ था
तुमको ख़ुशी हुई थी या फिर द्वेष हुआ था?
हे ब्रजेश इतना बतलाना
था स्वादिष्ट कौनसा खाना?
राधा की मटकी को तोड़ चुराया मख्खन
या फिर पटरानी के हाथ बनाये व्यंजन?
हे नन्द नंदन !सच सच बात बताना मन की
कहाँ शांति मिलती थी तुमको सबसे ज्यादा,
रानी के संग राजमहल में
या राधा संग ,कुञ्ज गली में ,वृन्दावन की?
हे मथुरेश्वर!
कौन मधुर था सबसे प्यारा?
उन सोलह हजार एक सौ आठ
,रानियों के संग करना रमण तुम्हारा
या बंशी वट,जमुना तीरे,
राधा के संग रास रचना प्यारा प्यारा
हे गोपाला!
जिस दिन गोकुल छोड़ अचानक,
चले गए थे तुम जब मथुरा
गोप गोपियाँ, नन्द यशोदा,सखियाँ, राधा
सभी दुखी थे ,
क्या तुमको भी लगा था बुरा?
और फिर जहाँ बिताया बचपन
वापस कभी नहीं लौटे तुम
माता पिता प्रेमिका ,सारे संगी साथी
कोई तुमको याद ना आया
सारे रिश्ते नाते जैसे  झूठीं माया
बेगानापन निष्ठुरता थी या फिर क्या था?
क्या गीता का ज्ञान यहीं से शुरू हुआ था?
हे योगेश्वर!
मै मानव हूँ,और तुम थे अवतार धरे
लेकिन कितनी हे बातें हैं,
जो हैं मेरी समझ से परे
समय मिले तो सुलझा देना मेरी शंका
ताकि दूर हो जाए सब भ्रम मेरे मन का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'