Sunday, April 24, 2011

बिठोडा

बिठोडा
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गावं के आसपास
या सड़क के किनारे
जब भी देखता हूँ
गोबर के बने ,झोपड़ीनुमा
छोटे छोटे से घर
जिनमे सलीके से,
जमा कर रखे हुए होते है
गोबर के उपले या कंडे
और जिनकी दीवारों पर,
किसी कार्यकुशल गृहणी के
हाथों के छापों की सजावट होती है
वो हाथ ,जिनमे मेहंदी रचती है
वो हाथ ,जो सिहरन पैदा करतें है
वो हाथ,जो रोटियां सकतें है
उन्ही हाथों ने,गोबर को थेप थेप कर
ये उपले या कंडे गढ़ें है
जिन्हें सुखा कर रखती है  वो ,
गोबर के बने इन बिठोड़ो में
ताकि बरसात के मौसम में
इनसे चूल्हा जला कर
सेक सके रोटियां
पेट की आग बुझाने को
और बची हुई राख से
मांझ सके घर के बर्तन
इन बिठोड़ो  को देख कर,
याद आतें है मिश्र देश के पिरेमिड
जिन्हें बनाया गया था,
उपयोग हीन शवों को सुरक्षित रखने के लिए
तब लगता है की लोगों की सोच और संस्कृति में
कितना अंतर होता है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'

नमक के खेत

  नमक के खेत
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दूर दूर तक फैले हुए, सफ़ेद सफ़ेद
नमक के खेत
समुन्दर का पानी,
जब छोड़ देता है अपना खारापन
तो बन जाता है श्वेत लवन
जो है जीवन
जब भी मै देखता हूँ
समुद्र के पानी को क्यारियों में रोकती मुंडेर
या चमचमाते श्वेत लवन के ढेर
तो श्रद्धा से बोल पड़ता है मेरा मन
हे!भुवनभास्कर ,तुम्हे नमन
तुम्हारी उष्मा ही,
देती है हमें जीवन
और हे रत्नाकर!
तुम अपना जल
सूरज की ऊष्मा से जला कर
बन जाते हो बादल
और बरसते हो बन कर जीवन
और तुम्हारा अवशेष
अत्यंत विशेष
स्वाद की खान
तुम्हे प्रणाम
गेहूं के लहलहाते खेत
या फूलों के महकते बाग़
हमारी सांसे,हमारा जीवन
और जीवन का स्वाद
सब सूरज और सिन्धु की
जुगल बंदी का है प्रसाद
देखता हूँ जब भी सफ़ेद सफ़ेद
नमक के खेत
तो  मेरा मन
करता है इन्हें शत शत नमन
मदन मोहन बहेती 'घोटू'

सुबह--सुबह

 सुबह--सुबह
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आने का जिसका सुबह सुबह इंतजार था
 दिल लग नहीं रहा था ,जिया  बेक़रार था
आया  तो उसे प्रेम से  हाथों  में ले  लिया
हमने उलट पुलट  की किया ,उससे प्यार था
चेहरा था  बड़ा बोल्ड ,जिसम था भरा हुआ,
हुस्नो अदा का आगे पीछे इश्तिहार था
सोलह का था या बीस का ,लेकिन हसीन था
नज़रें गड़ा के देखा तो वो खुशगवार था
ली चाय की फिर चुस्कियां,उसके ही साथ में
दिल में समेत लाया वो  बातें हज़ार था
"इससे ही चिपके रहोगे या देखोगे मुझे"
बीबी ने जो फटकारा ,सच ,मै गुनाहगार था
दुनिया ,जहान की सभी ख़बरें लिए हुए,
मैंने पढ़ा ,और रख दिया,वो अखबार था

    मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



                                               

डुगडुगी राजा


      डुगडुगी  राजा
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कभी था दुनिया को जीतने का ख्वाब
पर असफलताओ के बाद
जब नहीं दिया तकदीर ने संग
तो बन गए पार्टी के ढपोर शंख
कोई भी हो छोटी मोटी बात
बन जाती है इनके लिए खबर खास
किसी की आलोचना  या करना हो अपमान
हाज़िर है इनका बयान
खबर में रहने को बेसबर
टी वी के कैमरे पर इनकी नज़र
दूसरे ही दिन अपने बयान से पलट जाते है
और फिर टी वी की ख़बरों में नज़र आते है
मिडिया को भी रहती है ख़बरों की तलाश
सुनाती रहती है इनकी बकवास
और ये बजाते रहते है डुगडुगी ,बाजा
अंधेर नगरी ,डुगडुगी राजा
         मदन मोहन बहेती 'घोटू'