नामाक्षर गण्यते
दुशयंत ने,शकुंतला से गंधर्व शादी रचाई
उसे भोगा ,और,
अपने नाम लिखी एक अंगूठी पहनाई
और राजधानी चला गया,यह कह कर
'नामाक्षर गण्यते' याने,
मेरे नाम के तुम गिनना अक्षर
इस बीच मै आऊँगा
और तुम्हें महलों मे ले जाऊंगा
गलती से शकुंतला की अंगूठी खो गई
और कई दिनो तक,जब दुष्यंत आया नहीं
तो शकुंतला गई राज दरबार
पर दुष्यंत ने पहचानने से कर दिया इंकार
जब भी चुनाव नजदीक आता है
मुझे ये किस्सा याद आ जाता है
क्योंकि ,आज की सत्ता ,दुशयंत सी है,
जो चुनाव के समय,
शकुंतला सी भोली जनता पर,
प्रेम का प्रदर्शन कर ,
सत्ता का सुख भोग लेती है
और फिर उसे कभी अंगूठा ,
या आश्वासन की अंगूठी पहना देती है
साड़ेचार अक्षरों का नाम लिखा होता है जिस पर
सत्ता सुख की मछली ,
उस अंगूठी को निगल जाती है ,पर
और गुहार करती ,जनता,जब राजदरबार जाती है
पहचानी भी नहीं जाती है
हाँ,नामाक्षर गण्यते का वादा निभाया जाता है
उसके नाम का एक एक अक्षर,
एक एक वर्ष सा हो जाता है
और तब कहीं साड़े चार साल बाद
उसे आती है जनता की याद
क्योंकि पांचवें साल मे,
आने वाला होता है चुनाव
और सत्ताधारियों को याद आने लगता है,
जनता के प्रति अपना लगाव
जब भी चुनाव नजदीक आता है
मुझे ये किस्सा याद आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'