Monday, November 26, 2012

शादी

          शादी
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप  में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां  लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना   
जैसे सूखे से चेहरे पर  अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
         शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तौलिया

                तौलिया
मै जो अगर तौलिया होता
टपक रहा तेरा तन छूकर ,वो अमृत तो पिया होता
लिपट चिपट कंचन काया से ,कितने ही पल जिया होता
जिस सुख को दुनिया तरसे है ,वो आनंद तो लिया  होता
यही सोच मन आनंदित है, मैंने क्या क्या  किया होता
मै जो अगर तौलिया होता
घोटू

मंथरा

            मंथरा

जो लोग अपना भला बुरा नहीं समझते
आँख मूँद कर, दूसरों की सलाह पर है चलते
उन पर मुसीबत आती ही आती है
बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए ,हर केकैयी को ,
कोई ना कोई मंथरा मिल ही जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चन्दन सा बदन

      चन्दन सा बदन

पत्नी जी हो नाराज,तो उन्हें मनाना
जैसे हो लोहे के चने  चबाना
सीधी  सच्ची बात भी उलटी लगती है
एसा लगता है,सब हमारी ही गलती है
एक बार पत्नी जी थी नाराज़,हमें था मनाना
हमने गा दिया ये गाना
'चन्दन सा बदन ,चंचल चितवन ,
 धीरे से तेरा ये मुस्काना'
अधूरा था गाना और पत्नी ने मारा ताना
'अच्छा ,तो अब तुम्हे मेरा बदन ,
लगता है चन्दन की लकड़ी '
हमने सर पीटा ,हो गयी कुछ गड़बड़ी
हमने कहा नहीं ,हमारा मतलब था ,
तुम्हारा बदन चन्दन सा महकाता है
वो बोली'चन्दन तो तब खुशबू देता है ,
जब वो पुराना होकर सूख जाता है
तो क्या तुम्हे हमारा बदन पुराना और,
सूखी लकड़ी सा नज़र आता है?
तो फिर क्यों लिपटे रहते हो मेरे संग
चन्दन पर तो लिपटते है भुजंग
हमने कहा गलती हो गयी रानी
अब करो मेहरबानी
देवीजी ,तुम चन्दन हम पानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'