खाना और पकाना
साल में तीस चालीस दिन ,भंडारा या लंगर
और पन्द्रह बीस बार ,जाना किसी के न्योते पर
वर्ष में अठारह व्रत,याने दो बार की नवरात्रि
चार व्रत चार जयंती के और एक शिवरात्रि
चौविस व्रत एकादशी के ,
और बारह पूर्णिमा के रखे जाते
इस तरह सालमे चार महीने तो ,
यूं ही बिन पकाये निकल जाते
फिर पूरे सावन में एक समय भोजन करना
सोम,मंगल और शनिवार को एकासन व्रत रखना
याने की पांच माह से ज्यादा ,
सिर्फ एक समय भोजन
तो फिर कूकिंग की जहमत क्यों उठाये हम
लोग जो इतनी होटलें और रेस्टारेंट खोले पड़े है
हम जैसो के ही आसरे तो खड़े है
इनको चलते रहने देने के लिए भी तो कुछ करना है
लोगो को रोजी रोटी देना है,
सरकार का सर्विस टेक्स भरना है
और ये चाट पकोड़ी के ठेले ,पिज़ा बर्गर के आउटलेट
हमारे भरोसे ही तो भरेगा इनका पेट
जब आसानी से मिल जाता है ,
रोज नया टेस्ट और अलग अलग स्वाद
तो फिर पकाने में ,
कोई क्यों करे ,अपना वक़्त बर्बाद
घोटू