Saturday, January 14, 2017

जीवन क्रिकेट 

इस जीवन क्रिकेट के पिच पर ,
खेल रहे हम सभी खिलाड़ी 
सबकी अपनी अपनी क्षमता ,
कोई सिख्खड़ ,कोई अनाड़ी 
मै भी जब इस पिच पर उतरा ,
था नौसिखिया ,सभी सरीखा 
हाथों में गिल्ली डंडा ले,
पहला खेल उसी से सीखा 
धीरे धीरे बड़ा हुआ तो ,
ये क्रिकेट सी दुनिया देखी 
तब ही सीखा बेट पकड़ना ,
और बॉल भी तब ही फेंकी 
जब से बेट हाथ में आया  ,
मैंने अपना हुनर दिखाया 
बचा विकेट ,रन लिए मैंने,
थोड़ा मुझे खेलना आया 
धीरे धीरे रन ले लेकर , 
कभी शतक भी मैं जड़ पाया 
  कभी एलबीडब्ल्यू आउट ,
कभी कैच मैंने पकड़ाया 
कभी बॉल संग छेड़छाड़ के ,
लोगों ने इल्जाम लगाए 
कितनी बार अपील करी कि,
मैं आउट हूँ,वो चिल्लाये 
कभी रेफरी ने सच देखा,
कभी तीसरे अम्पायर ने 
किन्तु खेल को पूर्ण समर्पित ,
टिका हुआ अब भी पिच पर मैं 
हारा ,लोगो ने दी गाली,
जीता तो बिठलाया काँधे
पर मैंने धीरज ना खोया,
डिगे न मेरे अटल इरादे 
स्पिन गुगली बॉलिंग करके ,
खूब दिये लोगों ने  धोखे 
लकिन जब भी पाए मौके ,
मैंने मारे ,छक्के,चौके 
धीरे धीरे रहा खेलता ,
आपा ना खोया,धीरज धर 
अपना ध्यान खेल पर देकर 
जमा हुआ हूँ अब भी पिच पर 
पांच दिवस के टेस्ट मैच के ,
चार दिवस तो बीत गए है 
अब तक का स्कोर देख कर ,
लगता है हम जीत गए है 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू ' 

  
 
कागज की नाव 

बचपन में 
बारिश के मौसम में 
जब बहते परनाले ,
बन जाते थे नन्ही नदिया 
मैं तैराता था उसमे ,
कागज़ की नैया 
और गीली माटी में ,
नंगे पैरों ,छपछप करता हुआ ,
उसके पीछे दौड़ा करता था 
और जब तक वो आँखों से ,
ओझल नहीं हो जाती ,
पीछा नहीं छोड़ा करता था 
फिर नयी  नाव बना कर तैराता 
पूरी बारिश,यही सिलसिला चला जाता 
आज सोचता हूँ ,
मैंने जीवन भर ये ही तो किया है 
कोई न कोई कागज की नाव के पीछे दौड़ ,
अब तक जीवन जिया है 
हाँ,नैयायें बार बार बदलती गयी 
कुछ डूबती गयी  ,कुछ आगे बढ़ती गयी 
कभी पढ़लिख कर डिग्री पाने की नाव थी 
कभी अच्छी नौकरी पाने की चाह थी 
या फिर गृहस्थ जीवन जमाना था 
बाद में अपनी जिम्मेदारियां निभाना था 
इन चक्करों में ,कितनी ही ,
हरे और गुलाबी नोटों की नाव के पीछे दौड़ा
उनका पीछा नहीं छोड़ा 
और उमर के इस दौर में ,
जब मैं पक गया हूँ 
कागज़ के नावों के पीछे,
 दौड़ते दौड़ते थक गया हूँ  
 आज मुझे एक ऐसी नाव की तलाश है ,
जो मुझसे कहे 
मेरे पीछे तुम बहुत दौड़ते रहे 
आओ,आज मैं  तुम्हारी थकान मिटा देती हूँ 
तुम मुझमे बैठ जाओ. ,
मैं तुम्हे बैतरणी पार करा देती हूँ 

मदनमोहन बाहेती'घोटू '
 तुम क्यों होते हो परेशान 

आई जीवन की अगर शाम 
तुम क्यों होते हो  परेशान 
ये रात अमां की ना काली ,भैया ये तो दीवाली है 
तुम इसे मुहर्रम मत समझो,ये ईद सिवइयों वाली है 
तुमने उगता सूरज देखा ,तपती दोपहरिया भी देखी
यौवन के खिलते उपवन को ,महकाती कलियाँ भी देखी 
हंसती गाती और मुस्काती ,दीवानी परियां भी देखी 
कल कल करती नदियां देखी ,तूफानी  दरिया भी देखी 
कब रहा एक सा है मौसम 
खुशियां है कभी तो कभी गम 
सूखे पतझड़ के बाद सदा ,आती देखी हरियाली  है 
                                    ये ईद सिवइयों वाली है 
कितनी ही ठोकर खाकर तुम ,चलना सीखे,बढ़ना सीखे 
हर मोड़ और चौराहे पर  ,पाये अनुभव ,मीठे ,तीखे 
जी जान जुटा कर लगे रहे ,अपना कर्तव्य  निभाने को 
दिनरात स्वयं को झोंक दिया, तुमने निज मंजिल पाने को
सच्चे मन और समर्पण से 
तुम लगे रहे तन मन धन से 
तुम्हारी त्याग तपस्या से ,घर में आयी खुशियाली है 
                                    ये ईद सिवइयों वाली है
अब दौर उमर का वो आया ,मिल पाया कुछ आराम तुम्हे 
निभ गयी सभी जिम्मेदारी  ,अब ना करना  है काम तुम्हे 
अब जी भर कर उपभोग करो ,तुमने जो करी  कमाई है 
खुद के खातिर भी जी लेने की ,ये घडी सुहानी आई  है 
क्या हुआ अगर तुम हुए वृद्ध 
अनुभव में हो सबसे समृद्ध 
लो पूर्ण मज़ा ,क्योंकि ये उमर ,अब तो बे फ़िक्री वाली है 
                                           ये ईद सिवइयों वाली है 
  मदनमोहन बाहेती'घोटू'
आओ हम संग संग धूप चखें 

हो सूरज किरण से आलोकित ,दूना  तुम्हारा रूप सखे 
इस ठिठुराती सी सर्दी में आओ हम संग संग धूप चखें 
निज नाजुक कर से मालिश कर ,तुम मेरे सर को सहलाओ 
मैं छील मुंगफलियाँ तुमको दूं,तुम गजक रेवड़ी संग खाओ 
आ जाए दोहरा मज़ा अगर, मिल जाए पकोड़े खाने को ,
और संग में हो गाजर हलवा  जो मौसम के अनुरूप सखे 
                                   आओ हम संग संग धूप  चखें 
मक्की की रोटी गरम गरम और संग साग हो सरसों का 
मख्खन से हाथों से खाऊं ,पूरा हो सपना  बरसों का 
हो उस पर गुड़ की अगर डली,गन्ने के रस की खीर मिले ,
सोने पे सुहागा हो जाए ,हमको सुख मिले अनूप  सखे 
                                  आओ हम संग संग धूप  चखे 
मैं कार्य भार  से मुक्त हुआ ,चिंता है नहीं फिकर कोई 
हम चौबीस घंटे साथ साथ ,मस्ती करते,ना डर  कोई 
सूरज ढलने को आया पर ,मन में ऊर्जा है ,गरमी  है,
हो गयी शाम,चुस्की ले ले,अब पियें टमाटर सूप  सखे 
                                आओ हम मिलकर धूप चखें 

मदनमोहन बाहेती;घोटू'
मकर संक्रांति पर प्रणयनिवेदन 

दिन गुजारे ,प्रतीक्षा में ,शीत में ,मैंने  ठिठुर कर 
सूर्य  आया  उत्तरायण,नहीं  तुमने  दिया  उत्तर 
है मकर संक्रान्ति आयी ,शुभ मुहूरत आज दिन का 
पर्व है यह खिचड़ी का ,दाल चावल के मिलन का 
हो हमारा मिलन ऐसा ,एक दम ,हो जाए हम तुम 
दाल तुम ,मैं बनू चावल,खिचड़ी बन जाय हमतुम 
कहते कि आज के दिन ,दान तिल का पुण्यकारी 
पुण्य कुछ तुम भी कमा लो,बात ये मानो  हमारी 
इसलिए तुम आज के दिन,प्रिये यहअहसान करदो  
तिल तुम्हारे होठ पर जो है,मुझे  तुम  दान  कर दो 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'