पति पत्नी बुढ़ापे में-दो अनुभूतियाँ
१
हुई शादी ,मैं रहता था ,पत्नी के प्यार में डूबा ,
चली जाती कभी मैके ,बड़ा मैं छटपटाता था
इशारों पर मैं उनके नाचा करता था सुखी होकर,
कभी नाराज होती तो,मन्नतें कर मनाता था
फँसी फिर वो गृहस्थी में,और मैं काम धंधे में,
बुढ़ापे तक दीवानापन ,सभी है फुर्र हो जाता
बहानेबाजी करते रहते है हम एक दूजे से,
कभी बी पी मेरा बढ़ता ,उन्हें सर दर्द हो जाता
२
जवानी में बहुत कोसा ,और डाटा उसे मैंने,
बुढ़ापे में मेरी बीबी ,बहुत है डांटती यारों
रौब मेरा, सहन उसने कर लिया था जवानी में,
आजकल रौब दूना ,रोज मुझ पर गांठती यारों
जवानी में बहुत उसको ,चिढाया ,चाटा था मैंने ,
आजकल जम के वो दिमाग मेरा ,चाटती यारों
बराबर कर रही हिसाब वो सारा पुराना है ,
मैंने काटी थी उसकी बातें अब वो काटती यारों
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
१
हुई शादी ,मैं रहता था ,पत्नी के प्यार में डूबा ,
चली जाती कभी मैके ,बड़ा मैं छटपटाता था
इशारों पर मैं उनके नाचा करता था सुखी होकर,
कभी नाराज होती तो,मन्नतें कर मनाता था
फँसी फिर वो गृहस्थी में,और मैं काम धंधे में,
बुढ़ापे तक दीवानापन ,सभी है फुर्र हो जाता
बहानेबाजी करते रहते है हम एक दूजे से,
कभी बी पी मेरा बढ़ता ,उन्हें सर दर्द हो जाता
२
जवानी में बहुत कोसा ,और डाटा उसे मैंने,
बुढ़ापे में मेरी बीबी ,बहुत है डांटती यारों
रौब मेरा, सहन उसने कर लिया था जवानी में,
आजकल रौब दूना ,रोज मुझ पर गांठती यारों
जवानी में बहुत उसको ,चिढाया ,चाटा था मैंने ,
आजकल जम के वो दिमाग मेरा ,चाटती यारों
बराबर कर रही हिसाब वो सारा पुराना है ,
मैंने काटी थी उसकी बातें अब वो काटती यारों
मदन मोहन बाहेती'घोटू'