Tuesday, November 3, 2020

थोंपा गया नेता

पिताश्री के नाना की ,आखिरी विरासत
बार बार जनता नकारती ,मैं हूँ आहत
जो भी मेरे मन में आता ,मैं बक देता
थोंपा गया पार्टी पर जो, मैं वह  नेता

 कुछ चमचे है ,भीड़ सभा में जुड़वा  देते
कुछ चमचे है ,जो ताली है ,बजवा देते
कुछ चमचे ,क्या कहना है ,ये सिखला देते
कुछ चमचे ,टी वी पर खबरे ,दिखला देते
कुछ चमचे ,मस्जिद और दरगाहें ले जाते
कुछ चमचे मंदिर में है जनेऊ पहनाते
मैं पागल सा ,जो वो कहते ,सब करता हूँ
भरी धूप  और गरमी में ,पैदल चलता हूँ
मुझको कैसे भी रहना 'लाइम लाईट 'में
किन्तु हारता ही आया हूँ ,मैं  'फाइट'  में
आज इससे गठजोड़ और कल और किसी से
आज जिसे दी गाली ,कल है प्यार उसीसे
राजनीती में ,ये सब तो रहता है चलता
जब तक मन में है सत्ता का सपना पलता
कहता कोई अनाड़ी ,कोई पप्पू  कहता
लोगो का क्या ,जो मन चाहे ,कहता रहता  
किया नहीं है ब्याह ,अभी तक रहा छड़ा हूँ
कुर्सी खातिर ,घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा हूँ
रोज रोज मैं कार्टून ,बनवाता अपना
मुझको पूरा करना है ,मम्मी का सपना
जब तक ना प्रधान बन जाऊं ,देश का नेता
तब तक कोशिश करता रहूँ ,चैन ना लेता
राजवंश में जन्म लिया  ये  ,मेरा हक़  है
क़ाबलियत पर मेरी लोगो को क्यों शक है
लोग मजाक उड़ाते,पर ना मन पर लेता
थोंपा गया पार्टी पर  जो , मैं वह नेता  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
घर की मुर्गी -दाल बराबर

मैं तो  तुम पर प्यार लुटाऊँ ,रखूँ तुम्हारा ख्याल बराबर
तुमने मुझको समझ रखा है ,घर  की मुर्गी दाल बराबर  

मैं तो करूं  तुम्हारी पूजा ,तुम्हे मान कर ,पति परमेश्वर
और तुम हरदम ,रूद्र रूप में ,रहो दिखाते ,अपने तेवर
मैं लक्ष्मी सी चरण दबाऊं ,तुम खर्राटे ,भर सो जाते
मुझे समझ ,चरणों की दासी , कठपुतली सी मुझे नचाते
करवा चौथ करूं मैं निर्जल ,और तुम खाते ,माल बराबर
तुमने मुझको समझ रखा है ,घर की मुर्गी ,दाल बराबर

चाय पत्तियों सी मैं उबलू ,मुझे छान तुम स्वाद उठाओ
मैं अदरक सी कुटूं और तुम ,अपनी 'इम्युनिटी 'बढ़ाओ
फल का गूदा,खुद खाकरके,फेंको मुझे समझ कर छिलका
प्यार के बदले ,मिले उपेक्षा ,बुरा हाल होता है दिल का
नहीं सहन अब मुझसे होता ,अपना ये अपमान सरासर
तुमने मुझको समझ रखा है ,घर की मुर्गी ,दाल बराबर

दाल बराबर नहीं सजन मैं ,रहना चाहूँ ,बराबर दिल के
इसीलिये 'इन्स्टंट कॉफी 'सी रहूँ तुम्हारे संग हिल मिल के
मैं बघार की हींग बनू ,चुटकी भर में ,ले आऊं लिज्जत
'स्टार्टर'से'स्वीटडिशों 'तक,मिले 'डिनर 'में ,मुझको इज्जत
चटखारे लेकर हम खाएं ,और रहें खुशहाल  बराबर
तुमने मुझको ,समझ रखा है ,घर की मुर्गी ,दाल बराबर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '