Friday, September 21, 2018

कुछ लोग कबूतर होते है 


कुछ भूरे ,चितकबरे ,सफ़ेद 
आपस में रखते बहुत हेत 
कुछ दाना डालो,जुट जाते 
दाना चुग लेते ,उड़ जाते 
साथी मतलब भर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

कुछ इतने गंदे होते है 
मतलब में अंधे होते है 
खा बीट वहींपे किया करते 
अपनों को चीट किया करते 
और बैठे सर पर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

ये बोल गुटर गूं ,प्यार करे 
रहते चौकन्ने ,डरे डरे 
 संदेशे ,लाते ,ले जाते  
ये दूत शांति के कहलाते 
खूं गर्म के मगर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

होते आशिक़ तबियत वाले 
गरदन मटका ,डोरे डाले 
नित नयी कबूतरनी  लाते 
और इश्क़ खुले में फरमाते 
ये तबियत के तर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हम आलोचक है 

चीर द्रोपदी के जैसी अपनी बकझक है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है
 
कोई कुछ ना करे कहे हम ,कुछ ना करता 
जो कोई कुछ करता, कहते क्यों है करता 
और कर रहा है वो जो कुछ ,सब है गंदा 
मीन मेख सबमें निकालना ,अपना धन्धा 
करने कुछ न किसी को देंगे ,हम जब तक है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है 

खुला रखे सर कोई ,कहते बाल गिरेंगे  
व्यंग कसेंगे ,यदि वह जो टोपी पहनेगे  
टोपी क्यों सफ़ेद पहनी ,क्यों लाल न पहनी 
बात हम कहें   ,वो सबको पड़ती है सहनी
हम सबको गाली दे सकते ,हमको हक़ है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है 

दुनिया में सब चोर ,शरीफ एक बस हम ही 
सब गंवार है ,समझदार सब हम से कम ही 
हम सक्षम है ,बाहुबली हम ,हम में है बल 
भार  देश का ,हम संभाल सकते है केवल 
हमे दिलादो कुर्सी ,हम सबसे लायक है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है 

घोटू