Monday, September 16, 2013

दर्द और दवा

         दर्द और दवा

कभी तुम नाराज़ होते ,कभी हो उल्फत दिखाते
दर्द भी देते तुम्ही हो,और तुम्ही मलहम लगाते
कभी खुशियों में डुबोते ,कभी करते गमजदा हो
कभी दिखती बेरुखी है ,कभी हो जाते फ़िदा हो
बताओ ना ,इस तरह तुम,क्यों भला हमको सताते
दर्द भी देते तुम्ही हो ,और तुम्ही मलहम लगाते
कभी तुम नज़रें चुराते ,कभी लेते हो चुरा दिल
और कभी तुम सज संवर के ,दिखाते हो अदा कातिल
कभी तो हो तुम लजाते,और कभी आँचल गिराते
दर्द भी देते तुम्ही हो,और तुम्ही मलहम लगाते
बाँध कर बाहों के बंधन में,हमें जब प्यार करते
जी में जो आये करें हम,इस तरह आजाद करते
हमें पिघला ,खुद पिघलते ,आग हो इतनी लगाते
दर्द भी देते तुम्ही हो ,और तुम्ही मलहम लगाते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्नी जी की किट्टी पार्टी

          पत्नी जी की किट्टी पार्टी

पति जी घर में खा रहे ,रोटी,सब्जी ,दाल
पत्नी फाइव स्टार में ,उड़ा  रही है  माल
उड़ा रही है माल ,सखी संग ,गप्पे मारे
पति जी घर में टी वी देखे,वक़्त गुजारे
कह घोटू ,पत्नी की हुई ,पार्टी किट्टी
खर्च पति का ,पर पलीत है उसकी मिटटी

घोटू

सृजन और विसर्जन

  सृजन और विसर्जन

गणपति बप्पा को ,
बड़े चाव और उत्साह के साथ ,
घर लाया जाता है
श्रद्धा  के साथ पूजा की जाती है ,
प्रसाद  चढ़ाया जाता है
फिर कभी डेड़ दिन,कभी सात दिन ,
कभी दस दिन बाद ,
विसर्जित कर दिया जाता है 
देवी दुर्गा का  भी ,इसी तरह,
वर्ष में दो बार ,नौ दिन तक,
होता है पूजन
और फिर वही नियति,विसर्जन
सृजन और विसर्जन
यही तो है जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दर्द अपना किसे बांटे

        दर्द अपना किसे बांटे

बढ़ रही दिन ब दिन मुश्किल .दर्द अपना किसे बांटे
किस तरह से दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें
उम्र की इन सीढ़ियों पर चढ़ बहुत इतरा रहे थे
जहाँ रुकते ,यही लगता ,लक्ष्य अपना पा रहे थे
किन्तु अब इस ऊंचाई पर ,शून्य सब कुछ नज़र आता
किस तरह के खेल हमसे ,खेलता है ,ये विधाता
कभी सहला प्यार करता ,मारता है कभी चांटे
किस तरह से दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें
धूप देकर जो लुभाता ,सूर्य गोला आग का है           
चाँद देता चाँदनी पर पुंज केवल राख का है
टिमटिमा कर मोहते मन ,दूर मीलों वो सितारे
सच कहा है ,दूर के पर्वत सभी को लगे प्यारे
बहुत मुश्किल,स्वर्ग का पथ ,हर जगह है ,बिछे कांटे
किस तरह से दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें
लोभ में जीवन गुजारा ,क्षोभ में अब जी रहे है
सुधा हित था किया मंथन,पर गरल अब पी रहे है
जिन्हें अपना समझते थे ,कर लिया सबने किनारा 
डूबते को राम का ही नाम  है अंतिम सहारा
किस तरह हम ,पार भवसागर करेंगे ,छटपटाते
किस तरह हम दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'