Wednesday, December 14, 2016

मटर के दानो सी मुस्कान

 

माँ ,जो सारा जीवन,
सात बच्चों के परिवार को ,
सँभालने में रही व्यस्त 
हो गयी काम की इतनी अभ्यस्त 
बुढापे में ,बिमारी के बाद ,
जब डॉक्टर ने कहा करने को विश्राम 
बच्चे ,काम नहीं करने देते ,
और उसका मन नहीं लगता 
बिना किये काम 
हर बार ,हर काम के लिए ,
हमेशा आगे बढ़ती है 
और मना करने पर ,
नाराज़ हो,लड़ती है 
सर्दियों में जब कभी कभी ,
मेथी या बथुवे की भाजी आती है 
तो वो उन्हें सुधार कर ,
बड़ा संतोष पाती है 
 परसों ,पत्नी जब पांच किलो, 
मटर ले आयी 
तो माँ मुस्कराई 
झपट कर मटर की थैली ली थाम 
बोली वो कम से कम ,कर ही सकती है ,
मटर छीलने का काम 
वो बड़ी  खुश थी ,यह सोच कर कि ,
घर के काम में उसका भी हाथ है 
उसने जब मटर की  फली छीली,
तो मटर की फली से झांकते हुए दाने ,
ऐसे नज़र आये जैसे वो मटर नहीं,
ख़ुशी छलकाते ,माँ के मुस्कराते दांत है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

तुम जियो हज़ारों साल


जब  आप जन्मदिन मनाते है    
लोग शुभकामनाये देते हुए ,
अक्सर ये गीत गाते है 
कि तुम जियो हज़ारों साल 
और हर साल के दिन हो पचास हज़ार 
आप अपने शुभचिंतकों का करते शुक्रिया है 
पर क्या आपने कभी गौर किया है 
कि गलती से भी ऊपरवाला ये भूल कर ले 
आपके दोस्तों की दुआ कबूल कर ले 
तो आपकी क्या हालत होगी 
हज़ारों साल की उम्र ,कितनी मुसीबत होगी 
पचास हज़ार दिन का सिर्फ एक साल भर 
होता है तीनसौ पेंसठ दिनों के ,
एक सौ सेतींस वर्षों के बराबर 
और ऐसे हज़ारों वर्ष जीने की कल्पना मात्र ही,
मन में सिहरन भर देती है 
बैचैन और परेशान कर देती है 
आज जब सत्तर या अस्सी तक की उम्र में ही,
शरीर शिथिल है ,बीमारियां घेरे है 
हमारे अपने ही ,पूछते नहीं,मुंह फेरे है 
हम उनके लिए बन जाते भार  है 
तो ऐसे हालात मे जीना ,कितना दुश्वार है
परेशानियां सहना है ,घुटना तिल तिल है 
अरे ऐसे जीवन का तो पचास हज़ार दिन वाला ,
एक साल भी जीना मुश्किल है 
जिसे शुभकामना समझ रहे आप है 
अरे इतने लम्बे जीवन की दुआ ,
वरदान नहीं  एक अभिशाप है 
हम तो बस ये चाहते है ,
जब तक जिये स्वस्थ रहें
खुश और मस्त रहे 
स्वाभिमान से रहे तने 
किसी पर बोझ न बने 
हमेशा छोटों का प्यार ,
और बड़ों का आशिर्वाद रहे बना 
बस जन्मदिन पर चाहिए ,
सब की ये शुभकामना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'