Saturday, February 5, 2011

एक कहानी -एक कविता

एक  कहानी -एक  कविता
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चला यात्री सूखा पत्ता एक अकेला
मिला राह में उसे एक मिटटी का ढेला
भले एक से दो कह निकले तीरथ करने
ये दो साथी अपना पूर्ण मनोरथ करने
न थी उन दिनों रेल न तांगा,मोटर गाडी
धीरे धीरे पग धरते दोनों बढे अगाडी
आंधी चली और तूफ़ान जोर का आया
पत्ते पर चढ़ ढेले ने था उसे बचाया
आगे आंधी रुकी जोर का बरसा पानी
पत्ते ने चढ़ ढेले पर थी छतरी तानी
उठते गिरते ,इसी तरह काटा सब रास्ता
गला न ढेला,और नहीं उड़ पाया पत्ता
एक दूसरे की रक्षा जब करते साथी
होते पूरे कार्य ,मुश्किलें सब हट जाती

एसा बसंत आये

कली में महक हो ,
तरु पर चहक हो
पवन की पलक पर
सुमन की लहक हो
सभी मुस्कराए
सभी दिल मिलाएं
हर डाल बिकसे
नए पुष्प आये
झडे पान पीले,तरुण हर तरु हो
इस शीत का भी ,कभी अंत आये
जन जन हँसे और जीवन हँसे
सब रहें खुश कि एसा बसंत आये


नुस्खा

 ऊन और  स्वेटर की सलाईयाँ
कुछ उलटे फंदे
कुछ सीधे फंदे
बस ,बन गया स्वेटर
मै,और प्यार भरी नजरें
कुछ नखरे ,झटके
अदा और लटके
बस ,बन गए मिस्टर

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना
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वीनापाणी, तुम्हारी वीणा ,मुझको स्वर दे
नव जीवन ,उत्साह नया माँ मुझ में भर दे
पथ सुनसान ,भटकता सा राही हूँ मै,
ज्योति तुम्हारी निर्गम पथ ,ज्योतिर्मय करदे
                        २
मात,मेरी प्रेरणा बन,प्रेम दो ,नव ज्योति दो ,
मै तुम्हारा स्वर बनू,हँसता रहूँ ,गाता रहूँ
प्यार दो ,झंकार दो ,ओ देवी स्वर की सुरसरी
तान दो ,हर बार मै ,हर लय नयी ,लाता रहूँ

मात शारदे मुझे प्यार दे

मात  शारदे
मुझे प्यार दे
वीणा वादिनी,
नव बहार दे
मन वीणा को
झंकृत करदे
हंस वाहिनी
एसा वर दे
सत पथ अमृत
मन में भर दे
बुद्धि दायिनी
नव विचार दे
मात शारदे
ज्ञान सुधा की
घूँट पिलादे
सुप्त भाव का ,
जलज खिलादे
गयी चेतना,
फिर से ला दे
दाग मग नैया
लगा पार दे
मात शारदे
भटक रहा मै
दर दर ओ माँ
नव प्रकाश दे
तम हर ओ माँ
नव ले दे तू
नव स्वर ओ माँ
ज्ञान सुरसरी
प्रीत धार दे
मात शारदे
मुझे प्यार दे
वीणा वादिनी
नव बहार दे