Monday, January 27, 2014

श्वान स्वभाव

         श्वान स्वभाव

बड़े बड़े बंगलो में रहनेवाले
घर के रखवाले ,
श्वान ,जब मालकिन की डोर से बंधे
थोड़े अनियंत्रित पर सधे
जब प्रातः निकलते है करने विचरण
तो जगह जगह रुकते है ,कुछ क्षण
सूँघते है,और करते है निरीक्षण
और अपनी पसंदीदा जगह पर,
कर देते है जल विसर्जन
अक्सर उन्हें ,स्थिर-प्रज्ञ बिजली के खम्बे,
जो मूक से खड़े ,
सबका पथ प्रकाशित करते है
या कार के वो टायर
जो होते है यायावर
और जो स्वयंचल कर,
पहुंचाया  करते है मंजिल पर ,
उन्हें बहुत पसंद आते है
जहाँ वे अपनी श्रद्धा के सुमन चढ़ाते है
आप यह सब देख ,अचंभित क्यों होते है,
चाहे बंगलों के हो या गलियों के,
प्राणी का  स्वभाव नहीं बदलता ,
कुत्ते तो कुत्ते ही होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

अभिमन्यु

    अभिमन्यु

पहले मैंने हाथ में चरखी  लेकर,
उसका संचालित करना सीखा
मांजे को कब ढील देना ,कब समेटना ,
ये सारा अनुशासन  सीखा 
और जब मेरी पतंग ,
आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगी ,
पांच,सात,दिग्गज पतंगबाजों की ,
आँखों में चुभने लगी
उन्होंने सबने मिल कर ऐसा पेंच डाला ,
मेरी पतंग को काट डाला
यह तो मानव की प्रवृत्ति है ,
मैं परेशान क्यूँ हूँ
मैं आज का अभिमन्यु हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'








 
 

गीत

            गीत

शब्द पहले छंदों में ढलते है
छंद फिर धुनो में बंधते है
फिर किसी कोकिल कंठी के,
अधरों का स्पर्श पाते हुए,
दिल की गहराइयों से निकलते है
और संगीत के सुरों में सजते है ,
गीत बनते है

घोटू

मिर्ची

           मिर्ची
मिर्ची ,
जितनी छोटी होती है,
उतनी ही तेज होती है
लोंगा मिर्ची ,कभी मुंह में रख कर तो देखो,
आग लगा देती है
बड़ी,गठीली,हरी मिर्ची ,
जब सलाद की प्लेट में मुस्कराती है
बड़ा मन भाती  है
कभी हरी है,कभी लाल है
सचमुच कमाल है 
और जब फूल कर उसका बदन
शिमला मिर्ची सा जाता है बन
तो खो जाता है उसका चरपरापन
बुढ़ापे में भी ,सूख कर ,
कभी तड़के के काम आती है
कभी पिस कर ,व्यंजनो का स्वाद बढाती है
मिर्ची हर उम्र में,हर रंग और रूप में,
होती है चरपरी
उसकी तासीर गरम होती है ,
पर होती है स्वाद से भरी
ये गुणो की खान है
आती कई काम है
इससे नज़र उतारी जाती  है
किसी की नज़र न लगे,इसलिए ,
दूकानो के आगे लटकाई जाती है
जब बदमाशों की आँख में झोंकी जाती है
महिलाओ की इज्जत बचाती है
मिर्ची की तेजी,घोड़ी की तेजी से भी फास्ट होती है
दिन में खाओ,अगली सुबह ब्लास्ट होती है
कभी कभी ,बिना छूए या बिना खाये ,
भी  असर दिखाती है 
आपको हँसता और खुशहाल  देख,
लोगों को मिर्ची लग जाती है
मिर्ची और आम
दोनों आते है अचार बनाने के काम
मिर्ची का अचार,नीबू के साथ,खट्टा होता है
पर बड़ा चटपटा होता है
आम का भी अचार बनता है पर ,
आम और मिर्ची में होता है बड़ा अंतर
क्योंकि आम तो बढ़ती उम्र के साथ,
बदल लेता है अपना रंग और स्वाद
खट्टापना छोड़,हो जाता है मीठा,लाजबाब
पर मिर्ची ,छोटी हो या बड़ी,
लाल हो या हरी ,
कच्ची हो या पक्की
होती है बड़ी झक्की
हमेशा रहती है ,तेज और झर्राट
नहीं छोड़ पाती है अपना स्वाद
फिर भी,सबके मन को रूची है
क्योंकि,मिर्ची तो मिर्ची है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'