Monday, May 18, 2015

भोजन और संस्कृती

         भोजन और संस्कृती

कोई खाता इटालियन,कोई खाता यूरोपियन,
कोई मुग़लाइ खाता है,कोई चाइनीज है खाता 
कोई वेजिटेरियन  है ,तो  कोई मांसाहारी पर,
जिसे,जो खाने की आदत,वही खाना है मनभाता  
कभी राजस्थानी हम ,चूरमा बाटी खाते है,
तो कभी 'लिट्टी चोखा'है जो कि खाना बिहारी है
कभी मक्की की रोटी और साग सरसों का पंजाबी,
कभी छोले भठूरे की,लगे लज्जत  निराली  है
कभी है पाव और भाजी, वडा और पाव कोई दिन,
मराठी 'झुनका और भाखर',कभी हमको सुहाता है
ढोकले,खांखरेऔर फाफडे ,खाते हम गुजराती,
कभी इडली और डोसे  का, स्वाद मद्रासी आता है
कभी पुलाव कश्मीरी,कभी केरल 'इडीअप्पम' ,
हैदराबादी बिरयानी,कभी 'उडप्पी'का खाना है
कभी है चाट दिल्ली की, बेड़मी आलू यू. पी. के ,
कभी इन्दोर एम. पी. का,लगे खाना सुहाना है
मलाई पान 'लखनऊ के तो लड्डू कानपूर के है,
कभी है आगरा पेठा ,कभी खुर्जा की खुरचन है
कभी बंगाली रसगुल्ला,कभी ''श्रीखण्ड 'गुजराती,
कभी गुलाब जामुन और जलेबी लूटती मन है
हमारे देश में जितनी ,विविधता भाषा ,संस्कृति में,
है खाने और पीने में ,विविधता उतनी ही ज्यादा
भटकते तुम रहो कितने ही देशों और विदेशों में,
मज़ा हमको मगर असली,घर के खाने में ही आता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अंदाज- अपना अपना

         अंदाज- अपना अपना

कहा नेता के बेटे ने ,
मुझे तुम अपना दिल देदो
है वादा ,चाँद और तारे ,
              तोड़ कर दूंगा लाकर मैं
कहा बनिये  के बेटे ने,
कमाई मैंने जो अब तक,
वो सारी प्यार की दौलत,
         रखो तुम दिल के लॉकर में
कृषकसुत  ने कहा मुझमे,
प्यार का बीज पनपा है,
फले फूलेगा,लहकेगा ,
        प्यार से सींच भर देना
तो अफसर पुत्र ये बोला ,
प्रपोजल प्यार का मेरे ,
रखा तुम्हारी टेबल पर,
          पास ले, दे के कर देना
ये बोला, छोरा पंडित का,
तू मेरे प्यार की देवी,
बिठा के मन के मंदिर में ,
           करूंगा जाप मैं  तेरा 
क्लर्क के एक बेटे ने ,
कहा भर आह एक ठंडी ,
बड़ी लम्बी लगी लाइन ,
         कब नंबर आएगा मेरा
तभी एक प्रेक्टिकल आशिक,
एक लम्बी कार मे आया ,
अंगूठी एक हीरे की ,
         उसकी उंगली में पहना दी
और डायमंड नेकलेस दे ,
कहा उससे कि 'आइ  लव यू'
चलो बाहर डिनर करते,
           प्रेमिका झट हुई राजी
हज़ारों ख्वाब इस दिल में,
बुना  करते है हम और तुम,
मगर इच्छाएं सब,सबकी,
                  कहाँ  हो पाती पूरी है
हरेक मंजिल को पाने का,
तरीका अपना अपना है ,
वहां तक पहुँच पाने का,
                 हुनर आना जरूरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरक्की का असर

          तरक्की का असर

कन्हैया ,छोरा गोकुल का ,द्वारिकाधीश जब बनता,
    तरक्की का असर उस पर ,कुछ ऐसे है नज़र  आता
बड़ा ही शीतल और पावन ,मधुर जल था जो जमुना का,
      तरक्की ऐसी करता है , समन्दर खारा बन जाता
बिसरता  नन्द बाबा को ,गाँव,गैया,ग्वालों को,
       यशोदा मैया की ममता ,भी उस को याद ना रहती
उधर वो आठ पटरानी,संग मस्ती उड़ाता है ,
        इधर है  याद में उसकी ,तड़फती  राधिका रहती
कभी जिन उँगलियों से वो ,बजाता बांसुरी धुन था ,
       बचाने गाँव वालों को, उठाया जिस पे था गिरवर
उसी ऊँगली से  अब उसकी ,सुदर्शन चक्र चलता है ,
       बदल है किस तरह जाता ,आदमी कुछ  तरक्की  कर
कभी रणछोड़ बन कर के ,छोड़ मैदान जो भागा ,
      वही अर्जुन से कहता है,लड़ो,पीछे हटो मत तुम
खिलाड़ी राजनीति का,भाई भाई को लड़वाता ,
      मदद दोनों की करता है,जो भी जीते,उधर है हम
विपुल ऐश्वर्य जब पाता ,भुला देता है अपनो को,
      शून्य  संवेदना  होती ,न रहता प्यार  अंदर में 
इस तरह की तरक्की से,जो बसती द्वारिका नगरी,
     एक ना एक दिन निश्चित,  डूबती है  समन्दर   में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'