कब सुधरेंगे
आरोप और प्रत्यारोपों का ,फैला गंद ,छंटेगा कब तक
टांग खींचना ,एक दूजे की ,होगा बंद ,हटेगा कब तक
सत्ता के चक्कर में कब तक ,कौरव पांडव युद्ध करेंगे
हरेक बात पर ,छेड़छाड़ कर,एक दूजे को क्रुद्ध करेंगे
कब तक भाईचारा यूं ही ,बिखरेगा हो टुकड़े, टुकड़े
इस उलझन में ,कौन करेगा ,दूर हमारे ,सबके दुखड़े
इतने झगड़े ,दंड फंद कर ,भाईचारा ,खाक मिलेगा
इस कानूनी दांवपेंच में ,कुछ भी नहीं ,तलाक़ मिलेगा
क्यों न हमें सदबुद्धि आती ,क्यों हम इतने सत्ता लोलुप
क्यों न कोई इनको समझाता ,क्यों बैठे है सब के सब चुप
बहुत हो चूका ,बंद करो ये नाटक ,मत फैलाओ भ्रान्ति
हमें प्रगति ,सदभाव चाहिए ,आवश्यक है घर में शांति
ये आपस की कलह ,सुलह में ,जब बदलेंगे,तब ये होगा
सुर बदलेंगे,आपस में हम ,गले मिलेंगे ,तब ये होगा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '