वेदनाये
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दुखी मन की वेदनायें,आज पीछे पड़ गयी है
ह्रदय की संवेदनायें, आज पीछे पड़ गयी है
ओढ़ यादों की रजाई,मन बसंती ठिठुरता है
शूल जैसी चुभा करती ,स्वजनों की निठुरता है
जो कभी अपने सगे थे,पराये से हो गए है
प्यार के ,अपनत्व के सब,भाव क्यूं कर,खो गए है
मिलन की संभावनाएं,आज पीछे पड़ गयी है
दुखी मन की वेदनायें,आज पीछे पड़ गयी है
नींद क्यों जाती उचट अब ,रात के पिछले प्रहर है
भावना के ज्वार में क्यों,मन भटकता,इस कदर है
है बहुत चिंतित व्यथित मन,शांति मन की लुट रही है
घाव ताज़े या पुराने,टीस मन में उठ रही है
कसकती कुछ भावनाए,आज पीछे पड़ गयी है
ह्रदय की संवेदनाये, आज पीछे पड़ गयी है
हो रहा भारी बहुत मन ,ह्रदय में कुछ बोझ सा है
एक दिन की बात ना है,सिलसिला ये रोज का है
कई बाते पुरानी आ,द्वार दिल के खटखटाती
ह्रदय में आक्रोश भरता,भावनाएं छटपटाती
,व्यथित मन की यातनाएं,आज पीछे पड़ गयी है
दुखी दिल की वेदनाये, आज पीछे पड़ गयी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'