बढ़ती उम्र की पीड़ा
उम्र ज्यों ज्यों हो रही है तीव्रगामी
हो रहा मन ,कुटिल,लोभी और कामी
घट रहा है ओज तन का ,दिन ब दिन है
क्षरित तन, मन की न कर पाता गुलामी
भले मन में हौंसला ,तन खोखला है
बड़ी तड़फन ,अब न आता जलजला है
हो रहा अवरुद्ध खुद पर क्रुद्ध है मन
लालसा तज ,बन न पाया, बुद्ध ये मन
चाहता है उडूं ,पर ये उड़ न पाता
फड़फड़ाता पंख ,लेकिन छटपटाता
याद करता दिन सुहाने वो उड़न के ,
विचरता था गगन में ,गोते लगाता
याद कर बीते हुए वो मदभरे दिन ,
शेष स्मृतियों में रहे वो सुनहरे दिन
लाख पुनःरावर्ती करना चाहते हम ,
आ नही पाते मगर वो रसभरे दिन
मौन हम चुपचाप रहते ,मन मसोसे
भाग्य को या उमर को ,हम किसे कोसें
भूख है पर ना चबा ,ना पचा पाते ,
सामने थाली भरे, व्यंजन परोसे
बड़ा ही मन को कचोटे ,ये विवशता
जिंदगी में आ गयी है एकरसता
क्या पता था ,देखने ये दिन पड़ेगे ,
भाग्य पर मन कभी रोता कभी हँसता
दुखी हो मन ,बाल सर के नोचता है
राम में मन रमाने की सोचता है
जाय मिट उद्विंगता और मिले शांति ,
रास्ता वह उस जगह का खोजता है
ह्रदय की अठखेलियां है रामनामी
लालसाये हुई अब पूरणविरामी
पीत पड़ती जारही सारी चमक है ,
हो रहा है अब प्रभाकर क्षितिजगामी
मदनमोहन बहती 'घोटू '
उम्र ज्यों ज्यों हो रही है तीव्रगामी
हो रहा मन ,कुटिल,लोभी और कामी
घट रहा है ओज तन का ,दिन ब दिन है
क्षरित तन, मन की न कर पाता गुलामी
भले मन में हौंसला ,तन खोखला है
बड़ी तड़फन ,अब न आता जलजला है
हो रहा अवरुद्ध खुद पर क्रुद्ध है मन
लालसा तज ,बन न पाया, बुद्ध ये मन
चाहता है उडूं ,पर ये उड़ न पाता
फड़फड़ाता पंख ,लेकिन छटपटाता
याद करता दिन सुहाने वो उड़न के ,
विचरता था गगन में ,गोते लगाता
याद कर बीते हुए वो मदभरे दिन ,
शेष स्मृतियों में रहे वो सुनहरे दिन
लाख पुनःरावर्ती करना चाहते हम ,
आ नही पाते मगर वो रसभरे दिन
मौन हम चुपचाप रहते ,मन मसोसे
भाग्य को या उमर को ,हम किसे कोसें
भूख है पर ना चबा ,ना पचा पाते ,
सामने थाली भरे, व्यंजन परोसे
बड़ा ही मन को कचोटे ,ये विवशता
जिंदगी में आ गयी है एकरसता
क्या पता था ,देखने ये दिन पड़ेगे ,
भाग्य पर मन कभी रोता कभी हँसता
दुखी हो मन ,बाल सर के नोचता है
राम में मन रमाने की सोचता है
जाय मिट उद्विंगता और मिले शांति ,
रास्ता वह उस जगह का खोजता है
ह्रदय की अठखेलियां है रामनामी
लालसाये हुई अब पूरणविरामी
पीत पड़ती जारही सारी चमक है ,
हो रहा है अब प्रभाकर क्षितिजगामी
मदनमोहन बहती 'घोटू '