Sunday, August 17, 2014

            मान  मनुहार

रूठने और मनाने का ,होता है अपना मज़ा ,
             लोग कहते है कि ये भी,प्यार की पहचान है
दो मिनिट भी हो जाते  है जब नज़र से जो दूर वो ,
              आँखें  उनको  ढूंढने को ,मचाती  तूफ़ान  है 
  बड़ी प्यारी होती घड़ियाँ ,मान और मनुहार की
   बाद झगडे के सुलह में ,कशिश दूनी प्यार की
गिले शिकवे उससे ही होते है जिसमे अपनापन ,
            नहीं झगड़ा जाता गैरों से कि जो अनजान है

घोटू
              पड़ोसी 

 मेरे घर मेंखुशी होती तो उसको  मिर्च लगती है,
उसे तकलीफ़ होती है,मेरी क्यों अच्छी सेहत है
तरक्की देख कर औरों की,जल के खाक हो जाना ,
हमारे इस पड़ोसी की ,शुरू से ही ये आदत है
भले ही  उसके घर में हरतरफ बद इंतजामी है ,
मेरे घर का अमनऔरचैन उसके दिल को खलता है
मेरे घर की दर -ओ- दीवार पर, वो ठोकता कीलें ,
बड़ा बेचैन हो जाता है ,हमेशा मुझसे   जलता है 
 देखता है सुधरती जब ,व्यवस्थाएं मेरे घर की,
चैन से रह नहीं सकता,वो इतना कुलबुलाता है
भेज देता है चूहों को,  कतरने  को मेरा   कूचा,
दुहाई देके मजहब की ,बड़ी गड़बड़  मचाता  है
मेरा ही भाई है,निकला है करके घर का बंटवारा,
बड़ी ही पर घिनौनी हरकतें,दिनरात करता है
खुदा ही जानता है हश्र उसका कैसा, क्या, होगा ,
खुदा का नाम ले लेकर ,रोज उत्पात करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
               नोट का हुस्न

कहा इक नाज़नीं ने 'कैसी लगती हूँ'तो हम बोले ,
नोट हज्जार सी रंगत,बड़ी सुन्दर और प्यारी है
देख कर तुमको आ जाती,चमक है मेरी आँखों में ,
तुम्हे पाने की बढ़ जाती ,हमारी  बेकरारी  है
पता लगता है सहला कर,कि असली है या नकली है
सजाती जिस्म तुम्हारा ,एक गोटा किनारी है
मेरा दिल करता है तुमको ,रखूँ मैं पर्स में दिल के,
मगर तुम टिक नहीं पाते  ,बुरी आदत तुम्हारी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
           दौलत और हुस्न

ये धन,दौलत ,रुपैया भी,बड़ी ही प्यारी सी शै है,
जरा जब पास आता है,बड़ा हमको लुभाता है
पड़े जो इसके लालच में ,मज़ा आता है सोहबत में,
अधिक पाने के चक्कर में,बड़े चक्कर कटाता है
हुस्नवाले भी ऐसे ही,हुआ करते है दौलत से ,
पास आ तुमको सहलाते ,बड़ा मन को सुहाते है
दिलाते दिल को राहत है,थकावट दूर कर देते ,
हुए जो लिप्त तुम उनमे ,तुम्हे दूना  थकाते  है

घोटू