सियाही और रोशनाई
है सूरत तो वही रहती,बदल जाती है पर सीरत ,
उसे कब किस तरह से कोई इस्तेमाल करता है
किसी के हाथ लगती जब,सियाही ,वो समझ कालिख,
किसी के चेहरे पर पोत कर ,बदहाल करता है
वही सियाही जब लग जाती है कूंची से चितेरे की ,
हुनर से उसके हाथों से ,कोई तस्वीर बन जाती
कभी हालत बयां करती,तड़फ़ते दिल की आशिक़ के,
कभी पैगामे-उल्फत बन,दिलों से दिल को मिलवाती
कभी छूती कलम को जब,किसी मशहूर शायर की,
ग़ज़ल प्यारी सी बन सबसे ,दिलाती वाही वाही है
कभी कुरान ,रामायण ,कभी बन बाइबल ,गीता,
राह करती है वो रोशन , कहाती रोशनाई है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
है सूरत तो वही रहती,बदल जाती है पर सीरत ,
उसे कब किस तरह से कोई इस्तेमाल करता है
किसी के हाथ लगती जब,सियाही ,वो समझ कालिख,
किसी के चेहरे पर पोत कर ,बदहाल करता है
वही सियाही जब लग जाती है कूंची से चितेरे की ,
हुनर से उसके हाथों से ,कोई तस्वीर बन जाती
कभी हालत बयां करती,तड़फ़ते दिल की आशिक़ के,
कभी पैगामे-उल्फत बन,दिलों से दिल को मिलवाती
कभी छूती कलम को जब,किसी मशहूर शायर की,
ग़ज़ल प्यारी सी बन सबसे ,दिलाती वाही वाही है
कभी कुरान ,रामायण ,कभी बन बाइबल ,गीता,
राह करती है वो रोशन , कहाती रोशनाई है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'