पो फटी
कलियाँ चटकी
भ्रमरों के गुंजन स्वर महके
डाल डाल पर पंची कहके
गों रामभाई
मंदिर से घंटा ध्वनि आई
शंखनाद भी दिया सुनाई
मंद समीरण के झोंको ने आ थपकाया
प्रकृति ने कितने ही स्वर से मुझे जगाया
लेकिन मेरी नींद न टूटी
किन्तु फ़ोन की एक घंटी से मैं जग बैठा
कितना भौतिक
मुझको है धिक्