बुढ़ापे का प्रणय निवेदन
तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा
कुछ हमारे,कुछ तुम्हारे,ख़्वाब कितने ही अधूरे
वक़्त ने बेबस बनाया ,कर नहीं हम पाये पूरे
अगर हमतुम जाएँ जो मिल,कर उन्हें साकार देंगे
और हमारी विवशता को ,एक नया आकार देंगे
अकेलापन, मन कचोटे ,काटती तन्हाईयाँ है
ढक रही मन का उजाला ,भूत की परछाइयां है
हमारी मजबूरियों का ,किया सबने बहुत शोषण
आओ मिल कर,प्यार का हम ,करें पौधा ,पुनर्रोपण
और फिर सिंचित करेंगे ,फलेगा जीवन अधूरा
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा
तुम्हारे मन में हिचक है ,लोग जाने क्या कहेंगे
काम लोगों का यही है ,वो तो बस कहते रहेंगे
क्या किसी ने कभी आकर ,हाल भी पूछा तुम्हारा
बुढ़ापे की विवशता में ,क्या तुम्हे देंगे सहारा
दूसरों की बात छोडो ,तुम्हारे परिवार वाले
ढूंढते मौका है तुमको, किस तरह घर से निकाले
जिंदगी के बचे कुछ दिन ,मिले बोनस में हमें है
एक दूजे ,संग मिल कर ,अब ख़ुशी से काटने है
नहीं तो होगा हमारा ,बुढ़ापे में ,बहुत कूड़ा
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा
तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '