Thursday, September 22, 2011

आदमी को लचीला रहना चाहिए

आदमी को लचीला रहना चाहिए
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मैंने देखा,तूफानों में,
कुछ वृक्ष जो झुक जाते है
,बने रहते है
और कुछ तने,जो तने रहते है
जड़ से उखड जाते है
आदमी को परिस्तिथियों के,
हिसाब से चलना चाहिये
सख्त नहीं,लचीला रहना चाहिये
अब भगवान् को ही देखलो
परिस्तिथियों के अनुसार ,
कितने रूपों में अवतार लिये
जब प्रलय आया,और सृष्टि को,
बीज रूप से बचाना था,
मछली बन गये
मंदराचल का भार उठाना था
कछुआ बन गये
पृथ्वी को पानी से बाहर निकलना था,
वराह बन गये
उन्होंने बड़े बड़े काम ,छोटे बन कर,
कैसे किये जा सकते है,सिखलाया है
छोटे से वामन का अवतार लेकर,
तीन कदमो में,
तीन लोकों को,नाप कर बतलाया है
और अर्जुन के सारथी बन कर,
अपना विराट स्वरूप भी दिखलाया है
राम बन कर राजा के यहाँ जन्मे
और बारह वर्षों तक भटकते रहे वन में
और कृष्ण बने तो बचपन में ग्वालों के साथ,
चराई थी गायें
और बड़े होकर ,द्वारकाधीश भी कहलाये
 जरासंध को सत्रह बार युद्ध में हराये
और परिस्तिथियों के हिसाब से ,
अठारवीं बार,युद्ध का मैदान छोड़ भागे,
और रणछोड़ कहलाये
हिरनकश्यप जैसी बुराइयों को मारने के लिये,
क्या क्या नहीं किया
आधे नर और आधे सिंह  याने,
नरसिंह रूप में अवतार लिया
ये सब कथाएं,
हमें ये ही सिखाती है
आदमी को परिस्तिथियों के अनुसार चलना चाहिये,
जरूरत के मुताबिक़ ढलना चाहिये
सफलता पानी हो,तो लचीला रहना चाहिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब मोबाईल ना होता था

जब मोबाईल ना होता था
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वो दिन भी क्या दिन होते थे,जब माबाइल ना होता था
एक काला सा चोगा अक्सर,हर घर की शोभा  होता था
टिन टिन टिन घंटी के स्वर से,घर भर में आती थी रौनक
खुद का एक  फोन   होने से    ,ऊंचा होता था   स्टेटस
दस छेदों वाले डायल को,घुमा घुमा नाख़ून घिसते थे
जोर जोर से हल्लो हल्लो,चिल्ला कर भी ना थकते थे
फोन हमारा,मगर पडोसी,लाभ उठाते उसका जी भर
 अपने परिचितों को देते,फोन हमारे वाला नंबर
उनका फोन आता तो घर के ,बच्चे जाते,उन्हें बुलाते
वो आते,बातें भी करते,चायपान भी करके  जाते
हसीं पड़ोसन,मुस्काती सी,कभी फोन करने आती थी
और लिपस्टिक ,लगे होठ के,सुन्दर निशां,छोड़ जाती थी
डाकघरों में,दूरभाष को,लम्बी सी लाइन लगती थी
ओर्डीनरी,अर्जेंट,लाईटनिंग,कालों की घंटी बजती थी
तीन मिनिट का काल रेट था,बातें ना लम्बी खिंचती थी
फोन डेड होता तो घर में,ख़ामोशी सी आ बसती  थी
लाइनमेन नाम प्राणी को, देना कुछ चंदा होता था
तो जो फोन डेड होता था, जल्दी से ज़िंदा होता  था
रात ,काल के ,रेट आधे थे,इसीलिए वो कम सोता था
वो दिन भी क्या दिन होते थे, जब मोबाईल ना  होता था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'