Saturday, June 8, 2013

इस हाथ देना -उस हाथ लेना

     
          इस हाथ देना -उस हाथ लेना 

हम गाय को घास डालते है ,
ये सोच कर कि  दूध मिलेगा 
शादी में बहू को गहने चढाते है,
इस उम्मीद से कि वंश बढेगा 
बीबी की हर बात मानते है ,
क्योंकि उससे प्यार है पाना 
कुछ पाने की आशा में ,कुछ चढ़ाना ,
ये तो है चलन पुराना 
अब आप इसे रिश्वत कह दो ,
या दे दो कोई भी नाम 
पर ये तो इन्वेस्मेंट है ,
जिससे हो जाते है बड़े बड़े काम 
जब हम मंदिर में चढ़ावा चढाते है ,
या कोई दान करते है 
भगवान् हमें कई गुना देगा,
ये अरमान रखते है 
और काम हो जाने पर,
भगवान को परसाद चढाते है 
भगवान को दो प़ेडे,
और बाकी प्रशाद खुद खाते है 
जिस मंदिर में मनोकामना पूर्ण होती है ,
वहीँ पर लोग उमड़ते है 
सब इन्वेस्टर है,जहाँ अच्छा रिटर्न है,
वहीँ  इन्वेस्ट करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 

अन्दर की बात

              अन्दर की बात 
               
समुन्दर  का हुआ मंथन ,निकले थे चौदह रतन ,
उनमे से एक चाँद भी था ,वो कहानी याद  है 
छोड़ कर निज पिता  का घर,आसमां में जा बसा ,
समुन्दर तो है पिताजी ,और बेटा चाँद है 
पूर्णिमा को पास दिखता ,तो हिलोरें मारता ,
बाप का दिल करता है की जाकर बेटे से मिले 
और अमावस्या के दिन  जब वो नज़र आता नहीं,
परेशां होता समुन्दर ,बढती दिल की हलचलें 
चाँद के संग ,समुन्दर से ही थी प्रकटी  लक्ष्मी ,
वारुणी ,अमृत,हलाहल,भाई और बहना हुये 
पत्नी जी गृहलक्ष्मी है ,चाँद उनका भाई है ,
इसी  कारण चंद्रमाजी ,बच्चों के  मामा हुये 
वारूणी ,साली हमारी ,है बड़ी ही नशीली ,
पत्नीजी ने भाई बहनों से है उनका  गुण लिया 
होती है नाराज तो लगती हलाहल की तरह,
प्यार करती,ऐसा लगता ,जैसे अमृत घट पिया 
ससुरजी ,खारे समुन्दर ,रत्नाकर कहते है सब,
पर बड़े कंजूस है ,देते न कुछ  भी  माल है 
बात ये अन्दर की है पर आप खुद ही समझ लो,
जिसके तेरह साले ,साली,कैसा उसका  हाल है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'