Tuesday, March 15, 2016

दादा पोता संवाद

दादा से पोते ने पूछा ,
जब आपका था जमाना
न बिजली थी ,न गैस ,
तो फिर कैसे पकता था खाना
दादा ने बतलाया
बेटे ,खाना उन दिनों ,
मिटटी के चूल्हे पर जाता था पकाया
आश्चर्य चकित होकर बोला पोता
ये मिट्टी का चूल्हा है क्या होता
दादा बोले ये चूल्हा ,
मिट्टी से बनी ,U शेप का ,
एक 'थ्री डाइमेंशनल ' बॉडी होती थी ,
जिसके U की इनर 'केविटी' में 'फ्यूल' ,
जो होती थी सूखी लकड़ी या
'काऊडंग' की 'केक '  जिन्हे उपले कहते थे ,
जलाये जाते थे और U के ' अपर सरफेस'पर
पतीली रख कर दाल उबालते थे
और तवा रख कर रोटी बनाई जाती थी ,
जो उपलों के अंगारों पर फुलाइ  जाती थी
पोता बोला 'काउ डंग 'पर रोटी बनाना
कितना 'अन हाइजीनिक 'होता होगा वो खाना
दादा बोले बेटे ,आग में वो ताक़त है
हर चीज को शुद्ध  कर देती है
एनर्जी भर देती है
और उस पर जो रोटी पकती है
तो सौंधी सौंधी खुशबू लिए ,
उसमे बड़ा स्वाद आता है
और साथ में सिलबट्टे पर पीसी चटनी हो
तो सोने में सुहागा है
पोते ने टोका
एक्सक्यूज मी दादा,
ये सिलबट्टा है क्या होता
दादा बोले ये सिलबट्टा ,
'स्टोन एज' का ,एक 'टू पीस'
'इक्विपमेंट 'है होता
जिसका लोअर पार्ट ,जिसे सिल कहते थे ,
होता है एक फ्लेट पत्थर
जिसके 'सरफेस' को ,
'रफ'किया गया होता है टाँच  कर 
और अपर 'पार्ट  भी होता था पत्थर का ,
उसका शेप ऐसा होता था कि,
 दोनों हाथों के पकड़ में आ जाता था
वो बट्टा कहलाता था
सिल और बट्टे के बीच में रख कर ,
धनिया,मिर्ची अदरक आदि मसालों को
क्रश किया जाता था
और बार बार 'फॉरवर्ड और बैकवर्ड ,
एक्शन ' करने पर ,
चटनी बन जाता था
पोते  ने हँस  कर कहा ,
 एक चटनी के लिए आप ,
इतना 'फॉरवर्ड एंड बैकवर्ड'मोशन करते थे 
क्या 'ओन लाइन 'नहीं खरीद सकते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      बीबी की अहमियत

एक फिलम,
'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे 'थी आई
जो लोगों के मन इतनी भायी
कि एक सिनेमा हाल में ,
कितने ही वर्षों चल गई
उन्ही सितारों की ,
एक दूसरी फिल्म,'दिलवाले'भी बनी,
पर पता ही न चला ,
कब आई,और कब गई
इस उदाहरण का इतना सा सार है
बिना दुल्हनिया के ,दिलवाले बेकार है
हमे ये हक़ीक़त समझने की जरूरत है
जिंदगी में लम्बा चलने के लिए ,
दुल्हनिया की कितनी अहमियत है

घोटू
सबसे अच्छी हीरोइन

एक दिन ,पत्नीजी ने ,अपने ही अंदाज से ,
मेरी क्लास ले ली और बोली,
एक बात बताना सच्ची सच्ची
तुमको ,फिल्म की कौनसी हीरोइन
लगती है अच्छी
मुझे लगा कि ये गंगा उल्टी क्यों बह रही है
कहीं ये मेरे पत्नीव्रत धर्म का,
 इम्तहान  तो नहीं ले रही है
अब मैं क्या बताता
किस के गुण गाता
मेरी सांप छूछन्दर वाली गति थी ,
न निगलते बनता था न उगलते
फिर भी मैंने जबाब दिया ,
थोड़ा संभलते संभलते
मैंने कहा जानेमन
मेरी जिंदगी की फिलम
की सबसे खूबसूरत हीरोइन हो तुम
जब से मैंने तुमसे रिश्ता जोड़ लिया है
इन फिलम वाली हीरोइनों का,
 ख्याल ही छोड़ दिया है
वो बोली बनो मत ,मुझे सब पता है
हीरोइनों को देख कर ,
तुम्हारे मन में क्या क्या पकता है
मैंने तो यूं ही पूछ लिया था,लगाने को पता
कि मेरी और तुम्हारी चॉइस में ,
कितनी है समानता
मैंने भी अपना दिल खोल दिया
और हिम्मत करके बोल दिया
एक दीपिका पदुकोने है ,कनक की छड़ी है
उसकी आँखे बड़ी बड़ी है
लम्बी , दुबली पतली और छरहरी है
पर उसका रूप हमको भाया नहीं है
क्योंकि उसका बदन ,तुमसा गदराया नहीं है
एक अनुष्का शर्मा है ,जिसकी तरफ ,
गलती से भी नहीं झाँका है
क्योंकि विराट कोहली से उसका टांका है
हाल ही आई ,आलिया भट्ट  अच्छी है
पर अभी छोटी नादान  बच्ची है
कटरीना,जबसे रणवीर कपूर के कटी है ,
रहती  परेशान है
उसे फिर से याद  या सलमान हैं
और प्रियंका,
जिसने बजा दिया अपना विदेशों में भी डंका
कभी 'मेरीकॉम 'बन बॉक्सिंग करती है
कभी पोलिस इन्स्पेटर बन अकड़ती है
उसे तो चाहते हुए भी लगता डर है
ये आजकल की हीरोइनें ,
हमारी पसंद के बाहर है
हमारे जमाने की हीरोइनें ,
बैजन्तीमाला की तरह इठलाती थी
मालासिंहा की तरह ,धूल के फूल खिलाती थी
मीनाकुमारी की तरह ,दारू पीकर ,पति को लुभाती थी
मंदाकिनी की तरह झरने में नहाती थी
श्रीदेवी या हेमा मालिनी होती थी
स्वच्छंद विहारिणी होती थी
रूप में परी होती थी
यौवन से भरी होती थी
आज की हीरोइनें उनके आगे
पानी तक भी नहीं मांगे
अब तो वो भूले बिसरे गीत बन गई है
जो जब भी याद आतें है
हम गुनगुनाते है
अब तुम पूछ रही तो बताना मेरा फर्ज है
और सच कहने में क्या हर्ज है
मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हीरोइन ,/
मेरी सास की बेटी है
जो मेरे सामने ही बैठी है
जो कभी जूही चावला सी लगती है ,
कभी राखी है ,कभी रेखा है
मैंने जब भी उसे देखा है,
नए अंदाज में देखा है
मेरी बेगम ,एक लाजबाब हस्ती है
फूल खिलाती है,जब हंसती है
जिसके आगे छोटे नबाब सैफ अली खान की,
ज़ीरो फिगर वाली,बेगम,करीना भी पानी भरती है
आजकल तो रोज रोज ही,
नयी नयी हीरोइनों का दौर है
पर तुममेरी सदाबहार हीरोइन हो,
तुम्हारी बात ही और है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'