Saturday, January 15, 2011

इंतजार है बस उस दिन का

भारत सोने की चिड़िया था
प्रगति में सबसे अगुवा था
हरा भरा खुशहाल देश था
है इतिहास पुराने दिन का
कुछ तो धन ले गए विदेशी
भ्रष्टाचारी नेता देशी
सबने मिल कर इतना लूटा
बचा नहीं कोई भी तिनका
इसे निकले सत्ताधारी
काला धन करतूते काली
बेईमानी, घूस ,कमीशन
खाकर पेट भरा न जिनका
आओ इसे कदम उठाये
कोशिश कर के वापस लाये
स्विस बैंकों में जमा किया धन
उनका था या शायद इनका
कुछ अपनों के राज़ खुलेगे
मैले कपडे मगर धुलेगे
फिर से उजियाला फैलेगा
वो पायेगे हक़ है जिनका
महगाई की आग थमेगी
साँस चैन की जनता लेगी
जन गन मन की शान बढेगी
इंतजार है बस उस दिन का

दहक बाकी है

छलकते जाम पर इतराए  तू क्यों साकी है
बुझे  हुए इन  शोलो  में दहक बाकी है
सर पर है चाँद या की चांदनी तू इन पे न जा
तेरे संग चाँद पर जाने की हवस बाकी है
बहुत बरसें है ये बादल तो कई बरसों तक
फिर से आया है सावन की बरस बाकी है
दूर से आँख चुरा लेती है ,आँखे तो मिला
देख इन बुझते चिरागों में चमक बाकी है
हम तो थे फूल गुलाबों के बहुत ही महके
सूखने लग गए है तो भी महक बाकी है
भले ही शाम है और ढलने लगा है सूरज
छाई है दूर तक लाली कि चमक बाकी है