इनफ्लेशन और अवमूल्यन
हमें याद आते हैं वो दिन ,जब अपना सिक्का था चलता
थोड़ी सी ही इनकम थी पर ,परिवार सारा था पलता
कदर हमारी भी होती थी,हममें था परचेजिंग पॉवर
घर का राशन फल और सब्जी,सब आते थे,थैला भर कर
साथ उमर के बड़े हुए हम ,बढ़ा चौगुनी गति, इनफ्लेशन
गयी हमारी कीमत घटती ,नहीं रहा हममें बिलकुल दम
बच्चों की दौलत होती थी,कभी चवन्नी और अठन्नी
अब तो इनका चलन बंद है,लोग काटते ,इनसे कन्नी
जैसे इनकी कदर घाट गयी ,पूछ हमारी भी ना वैसे
हम हज़ार के नोट बने ना,रहे वही ,वैसे के वैसे
इनफ्लेशन की तरह बुढ़ापा ,घटा दिया करता है कीमत
जैसे उसकी सेहत गिरती , घट जाती है ,उसकी इज्जत
अपना,इतना ये अवमूल्यन,हमको बहुत अधिक है खलता
हमें याद आते है वो दिन ,जब अपना था सिक्का चलता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हमें याद आते हैं वो दिन ,जब अपना सिक्का था चलता
थोड़ी सी ही इनकम थी पर ,परिवार सारा था पलता
कदर हमारी भी होती थी,हममें था परचेजिंग पॉवर
घर का राशन फल और सब्जी,सब आते थे,थैला भर कर
साथ उमर के बड़े हुए हम ,बढ़ा चौगुनी गति, इनफ्लेशन
गयी हमारी कीमत घटती ,नहीं रहा हममें बिलकुल दम
बच्चों की दौलत होती थी,कभी चवन्नी और अठन्नी
अब तो इनका चलन बंद है,लोग काटते ,इनसे कन्नी
जैसे इनकी कदर घाट गयी ,पूछ हमारी भी ना वैसे
हम हज़ार के नोट बने ना,रहे वही ,वैसे के वैसे
इनफ्लेशन की तरह बुढ़ापा ,घटा दिया करता है कीमत
जैसे उसकी सेहत गिरती , घट जाती है ,उसकी इज्जत
अपना,इतना ये अवमूल्यन,हमको बहुत अधिक है खलता
हमें याद आते है वो दिन ,जब अपना था सिक्का चलता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'