अनुशासन पर्व
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
सब के मन में ,शंकाओं की बस होती आवाजाही है
द्वारों पर लटक रहे ताले ,सब दूकानें वीरान पड़ी
रहती थी चहलपहल जिन पर ,वो सड़कें सब सुनसान पड़ी
जहाँ रौनक हल्ला गुल्ला था ,वहां मौन ,शांति की आहट है
लोगों के मन में दबी दबी ,आशंका है ,घबराहट है
बस सूनापन ही सूनापन ,दिखता हर तरफ दिखाई है
एक सन्नाटा सा पसरा है एक ख़ामोशी सी छाई है
सब दुबके चारदीवारी में घर की ,मन में व्याकुलता है
जो थकते थे कर काम काम ,आराम उन्हें अब खलता है
घर में टी वी की ख़बरों पर सब रहते नज़र गढ़ाए है
क्या होगा ,कैसे ,कब होगा,सब के मन में शंकाएं है
ये कैसा कहर है कुदरत का ,ये बला कहाँ से आई है
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
एक परमाणु सा लघु कीट,कर गया धमाका है बम का
दुनिया के कोने कोने में ,छाया है आलम ,मातम का
अब मेलजोल को छोड़छाड़ ,सब लोग दूरियां बना रहे
ना हो प्रकोप 'कोरोना 'का ,वो खैर खुदा से मना रहे
हम लड़े लड़ाई मिलजुल कर ,सबकी इसमें ही भलाई है
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
अब मेहरी नहीं न कामवाली ,सब काम खुद ही को करना है
पति पत्नी मिलजुल साथ रहे ,अब लड़ना है न झगड़ना है
संकल्प हमें अब करना है ,रहना संयम ,अनुशासन में
हम स्वस्थ, रहेंगे सदा स्वस्थ ,ये भाव भरे अपने मन में
सामजिक दूरी बना रख्खो ,रुक सकती तभी ,तबाही है
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
सब के मन में ,शंकाओं की बस होती आवाजाही है
द्वारों पर लटक रहे ताले ,सब दूकानें वीरान पड़ी
रहती थी चहलपहल जिन पर ,वो सड़कें सब सुनसान पड़ी
जहाँ रौनक हल्ला गुल्ला था ,वहां मौन ,शांति की आहट है
लोगों के मन में दबी दबी ,आशंका है ,घबराहट है
बस सूनापन ही सूनापन ,दिखता हर तरफ दिखाई है
एक सन्नाटा सा पसरा है एक ख़ामोशी सी छाई है
सब दुबके चारदीवारी में घर की ,मन में व्याकुलता है
जो थकते थे कर काम काम ,आराम उन्हें अब खलता है
घर में टी वी की ख़बरों पर सब रहते नज़र गढ़ाए है
क्या होगा ,कैसे ,कब होगा,सब के मन में शंकाएं है
ये कैसा कहर है कुदरत का ,ये बला कहाँ से आई है
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
एक परमाणु सा लघु कीट,कर गया धमाका है बम का
दुनिया के कोने कोने में ,छाया है आलम ,मातम का
अब मेलजोल को छोड़छाड़ ,सब लोग दूरियां बना रहे
ना हो प्रकोप 'कोरोना 'का ,वो खैर खुदा से मना रहे
हम लड़े लड़ाई मिलजुल कर ,सबकी इसमें ही भलाई है
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
अब मेहरी नहीं न कामवाली ,सब काम खुद ही को करना है
पति पत्नी मिलजुल साथ रहे ,अब लड़ना है न झगड़ना है
संकल्प हमें अब करना है ,रहना संयम ,अनुशासन में
हम स्वस्थ, रहेंगे सदा स्वस्थ ,ये भाव भरे अपने मन में
सामजिक दूरी बना रख्खो ,रुक सकती तभी ,तबाही है
एक सन्नाटा सा पसरा है ,एक ख़ामोशी सी छाई है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '