Sunday, December 27, 2020

बेचारे गरीब किसान

बेचारे गरीब किसान
अपना सब सामान
ट्रालियों में लाद  कर लाये  है
दिल्ली में आंदोलन करने आये है
उनके तथाकथित शुभचिंतक नेता ,
उन्हें भटकाने में लगे है
अपनी लूटी हुई नेतागिरी की दूकान ,
फिर से चमकाने में लगे है
इन्ही की बातों से  बरगलाये ,
बिचारे किसान जिद पर अड़े है
सर्दी में सड़कों पर खुल्ले में पड़े है
कोई इन्हे सब सुविधा मुहैया करवा रहा है
सर्दी है तो कम्बल बंटवा रहा है
काजू किशमिश लूट रही है
बादाम घुट रही है
लड्डू है ,जलेबियाँ है
दिन भर चाय की चुस्कियां है
खाने के लिए लंगर चल रहे है
मशीनों में कपडे धुल  रहे है
पैर दबाने के लिये मशीने मंगाई है
फ्री में हजामत बनाता नाइ है
मशीनों से रोटियां बन रही है
अच्छी मस्ती छन रही है
क्योंकि सब सुविधाएँ मुफ्त है
बस सर्दी का कुफ्त है
अलाव के लिए लकड़ियों का इंतजाम है
हर तरह का  आराम है
इसलिये जल्दी नहीं ,हटने में देर है
क्योंकि अभी फसल कटने में देर है
नेताजी कहते है क़ानून काले है
जब तक वापस नहीं होते,
 हम नहीं जानेवाले है
हम नेताजी की बात मानते है
काला क्या है ,नहीं जानते है
बस थोड़ी सी नारेबाजी कर लेते है
दिन भर मौजमस्ती से पेट भर लेते है
कौन  क्यों कर रहा है ये सारे इंतजाम
इस बात से अनजान
बेचारे किसान
ये नहीं  जानते कि उनके नेताओं के
मापदंड दोहरे है
वो तो इस राजनीति के खेल के ,
सिर्फ मोहरे है
रोज रोज ये जो इतनी हलचल दिख रही है
कई भूले बिसरे नेताओं की
राजनैतिक रोटियां सिक रही है
फिर भी इनकी बातें मान
सर्दी में परेशान
बेचारे गरीब किसान

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
नीला आसमान खो गया

नीला आसमान खो गया
उगलती काला धुंवां है ,फैक्टरी की चिमनियां
कार,ट्रक ,डीज़ल ,प्रदूषित कर रहे सारी हवा
खेत में जलती पराली
पटाखों वाली दिवाली
नीला आसमान खो गया

वृक्ष ,जंगल कट रहे है बन रहे नूतन भवन
बिगड़ता जाता दिनोदिन ,प्रकृति का संतुलन
सांस लेने में घुटन है
बहुत ज्यादा प्रदूषण है
नीला आसमान खो गया

सरदियों  में धुंध कोहरा,गरमियों में आंधियां
बनी दूरी चाँद तारों और  इंसान  ,दरमियां
टिमटिमाते थे जो तारे
नज़र आते नहीं  सारे
नीला आसमान खो गया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '