बदलाव
इतनी जल्दी में कितना कुछ बदल गया है
ऐसा लगता जैसे समय हाथ से फिसल गयाहै दोपहरी की धूप करारी , कुनकुनी हो गई है
जोश की उड़ती उमंगे अनमनी हो गई है
दिमाग जो हमेशा जोड़-तोड़ में भटकता रहता था
थोड़े से फायदे और नुकसान में अटकता रहता था
वह भी आजकल थोड़ा किफायती होने लगा है
मित्रों और परिवार का हिमायती होने लगा है भगवान में आस्था और विश्वास करने लगा है दुष्कर्म और पाप से मन अब डरने लगा है
लंबे जीने की लालसा बलवती होने लगी है
कुछ याद नहीं रहता, याददाश्त खोने लगी है
भूख तो मर गई पर स्वाद पीछा नहीं छोड़ता
यह मन अभी भी वासनाओं की तरफ दौड़ता
जिससे निकट भविष्य में होने वाला बिछोह है उनके प्रति दिनों दिन बढ़ रहा मोह है
काम-धाम कुछ भी नहीं ,न करने की क्षमता है
यूं ही बैठे ठाले पर वक्त भी नहीं कटता है
हंसता हूं,मुस्कुराता हूं ,और जिए जाता हूं
यह नियम है नियती का ,खुद को समझाता हूं
कोई जिम्मेदारी नहीं, फिर भी रहता मन बेचैन है
क्या यह सब परिवर्तन ,बढ़ती उम्र की देन है
मदन मोहन बाहेती घोटू