Wednesday, January 4, 2023

बदलाव  

इतनी जल्दी में कितना कुछ बदल गया है 
ऐसा लगता जैसे समय हाथ से फिसल गयाहै दोपहरी की धूप करारी , कुनकुनी हो गई है 
जोश की उड़ती उमंगे अनमनी हो गई है 
दिमाग जो हमेशा जोड़-तोड़ में भटकता रहता था 
थोड़े से फायदे और नुकसान में अटकता रहता था 
वह भी आजकल थोड़ा किफायती होने लगा है 
मित्रों और परिवार का हिमायती होने लगा है भगवान में आस्था और विश्वास करने लगा है दुष्कर्म और पाप से मन अब डरने लगा है 
लंबे जीने की लालसा बलवती होने लगी है 
कुछ याद नहीं रहता, याददाश्त खोने लगी है
 भूख तो मर गई पर स्वाद पीछा नहीं छोड़ता 
 यह मन अभी भी वासनाओं की तरफ दौड़ता 
जिससे निकट भविष्य में होने वाला बिछोह है उनके प्रति दिनों दिन बढ़ रहा मोह है 
 काम-धाम कुछ भी नहीं ,न करने की क्षमता है 
 यूं ही बैठे ठाले पर वक्त भी नहीं कटता है
  हंसता हूं,मुस्कुराता हूं ,और जिए जाता हूं
यह नियम है नियती का ,खुद को समझाता हूं 
कोई जिम्मेदारी नहीं, फिर भी रहता मन बेचैन है 
  क्या यह सब परिवर्तन ,बढ़ती उम्र की देन है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
धूप 

कुछ धूप सुबह की खिली खिली 
छत पर बिखरी,उजली उजली 
तन में सुषमा ,मन में ऊष्मा 
सुंदर लगती ,निखरी निखरी

 सच्ची सुखदायक सर्दी में 
 मन मोह रही है तपन भरी 
 हर्षित करती है मृदुल छुअन
  छत पर ,आंगन में ,गली गली
  
   
संध्या होते तक थक जाती ,
पीली पड़ जाती, मरी मरी 
सूरज उसको लेता समेट,
वह छुप जाती है डरी डरी

मदन मोहन बाहेती घोटू
स्वर्ग और नर्क 

पुण्य करो तो स्वर्ग मिलेगा ,
पाप करो तो नर्क जाओगे 
गंगा में स्नान करो तुम, 
पाप कटें ,सद्गति पाओगे 
 न तो नर्क ना स्वर्ग कहीं पर,
 ये सब तो कपोल कल्पित है 
 तरह तरह की बातें करके 
 लोग हमें कर रहे भ्रमित है
  
जन्म कुंडली में तुम्हारी ,
राहु केतु कर रहे बखेड़ा 
और गुरु की वक्र दृष्टि है,
 मंगल का मिजाज है टेढ़ा
  कभी शनि की साढ़ेसाती 
  चंद्र नीच का ,कभी कुपित है 
  तरह तरह की बातें करके ,
  लोग हमें कर रहे भ्रमित है 
  
बहुत कठिन ग्रह दशा चल रही,
 महामृत्युंजय जाप कराओ 
 शनिवार को शनि मंदिर जा ,
 शनिदेव पर तेल चढ़ाओ 
 पूजा-पाठ यज्ञ करवाओ 
 पितृदोष कर रहा व्यथित है
  तरह-तरह की बातें करके,
   लोग हमें कर रहे भ्रमित है 
   
इस जीवन में दान करो तुम
 अगले जीवन में सुख पाओ 
 तीरथ दर्शन, भजन ,कीर्तन 
 करके ढेरों पुण्य कमाओ 
 तो निश्चित ही स्वर्ग लोक में,
  सीट तुम्हारी आरक्षित है 
  तरह तरह की बातें करके
   लोग हमें कर रहे भ्रमित है

 मदन मोहन बाहेती घोटू