Wednesday, December 29, 2010

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
चीनी तेल सब्जिया दाले
लेते सबके भाव उछाले
क्या क्या छोड़े,क्या क्या खा ले
कैसे अपना बजट संभाले
महगाई बढती जाती है,
हल्का होता पर्स हमारा
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
घोटालो में उलझे नेता
कोई किसी पर ध्यान न देता
पनप रहे है भ्रष्टाचारी,
वो ही पाता जो कुछ देता
ये सब काबू में आ जाये
एसा हो स्पर्श तुम्हारा
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
a

Tuesday, December 28, 2010

आओ चैन से नींद ले

आओ चैन से नींद ले
रात के हर प्रहार
बढ़ता ही जा रहा है
कोहरे का कहर
कोहरा बे इमानी का ,
भ्रष्टाचार का
कोहरा आतंक का ,नक्सलवाद का
कोहरा महगाई का छा रहा है
सबको रुला रहा है
हम ये करेगे, हम वो करेगे
करेगे खाख, सिर्फ भाषण देंगे
सारे नेता आँख बंद किये बैठे है
हम भी आँखे मीन्द ले
आओ चैन से नींद ले
प्याज के छिल्को की तरह,
परत दर परत
खुलता ही जा रहा है,
भ्रष्टाचार का पिटारा
क्या करे आम आदमी बिचारा
होगा वो ही जो होना है
फिर काहे का रोना है
हमको कोई नहीं देख रहा है
यही सोच कर हम भी
रेत में मुह छुपा
शतुरमुर्ग के मानिंद ले
आओ चैन से नींद ले

ऐसे आओ तुम सन ग्यारह

ऐसे आओ तुम सन ग्यारह
भ्रष्टाचार खड़ा मुह बाये
महगाई ने पग पसराए
लूटपाट और रिश्वतखोरी
आज कर रहे है मुह्जोरी
बेईमानी इतनी फैली
लगती है हर गंगा मैली
ये हो जाये नो दो ग्यारह
ऐसे आओ तुम सन ग्यारह
उठा रहे है सर आतंकी
वर्षा होती काले धन की
पग पग पर जनता का शोषण
बढता ही जा रहा प्रदूषण
एसा सूरज बन कर चमको
दूर हटादो सारे तम को
दो हज़ार बारह आने तक
हो जाये सबकी पोबारह
ऐसे आओ तुम सन ग्यारह

Sunday, December 26, 2010

मै भारत का जन मन गण हूँ

   मै भारत का जन मन गण हूँ
जो चुनाव में दिया गया था ,निभा नहीं वो आश्वाशन हूँ
या फिर किसी भ्रष्ट नेता का ,स्विस खाते में संचित धन हूँ
कई करोडो के घपले का ,मै टू जी का स्पेक्ट्रम हूँ
कामन वेल्थ ,कमाया सब ने ,उन खेलो का आयोजन हूँ
खुल कर खेल रहा सत्ता का भ्रष्टाचारी गठबंधन हूँ
हर दिन जो बढ़ती जाती है,महगाई की मार, चुभन हूँ
सोसायटी आदर्श जहाँ पर ,आदर्शों का हुआ हनन हूँ
दुशाशन के कारण होता ,मै जनता का चीरहरण हूँ
गठबंधन की मजबूरी में ,मन मसोसता ,मनमोहन हूँ
  मै भारत का जन मन गण हूँ
a

Friday, December 24, 2010

वो बात जवानी वाली थी

    वो बात जवानी वाली थी
तुम्हारे कोमल हाथो का
स्पर्श बड़ा रोमांचक था
तन में सिहरन भर देता था
मन में सिहरन भर देता था
कुछ पागलपन भर देता था
और जब गुबार थम जाता था
तब कितनी राहत मिलती थी
अब आई उम्र बुढ़ापे की
तुम भी बूढी, मै भी बूढ़ा
जब पावों में होती पीड़ा
तुम हलके हलके हाथो से
जब मेरे पाँव दबाती हो
सारी थकान मिट जाती है
या फिर झुर्राए हाथों से
तुम मेरी पीठ खुजाती हो
सारी खराश हट जाती है
स्पर्श तुम्हारे हाथों का
अब भी कितनी राहत देता
तुम भी वोही, हम भी वोही
ये सारा असर उमर का है

Monday, December 20, 2010

हाय पैसा

    हाय पैसा
दुनिया में कुछ लोग हमेशा
करते है बस पैसा पैसा
पैसा तो मिल गया मगर फिर
शांति खो गयी ,अचरज कैसा
पैसा क्या है ,झूटी माया
किस्मत थी तो खूब कमाया
लेकिन कुछ भी काम न आया
क्षीण हो गयी कंचन काया
पैसा बढ़ा ,बढ़ा ब्लड प्रेशर
पैसा बढ़ा ,बढ़ गयी शक्कर
लूखी रोटी ,फीकी सब्जी
और दवा की गोली दिन भर
तन की क्षुधा शांत हो जाती
मन की क्षुधा शांत हो जाती
पर पैसे की भूख हमेशा,
जितना पाओ ,बढती जाती
इसीलिए क्या कमा रहे हम
जीवन का सुख गमा रहे हम
सात पुश्त के लिए हमेशा
करते पूंजी जमा रहे हम
पा पैसा  बिगडेगे बच्चे
मेहनत नहीं करेगे बच्चे
खुद सवार लेंगे निज जीवन
लायक अगर बनेगे बच्चे
मधुमख्खी से तुम बन जाओ
पुष्पों के संग नाचो गाओ
पर पतझड़ में काम आ सके
इतना संचित शहद बनाओ
a

आशीर्वाद

          आशीर्वाद
तुम जीवो जैसे तुम चाहो,हम जिए जैसे हम चाहे
हम में पीड़ी का अंतर है ,अलग अलग है अपनी राहे
हाँ ये सच है,उंगली पकड़,सिखाया हमने,तुमको चलना
हमने तुमको राह बताई,तुमने सीखा आगे बढ़ना
लेकिन तुम स्वच्छंद गगन में,अगर चाहते हो खुद उड़ना
तुम्हारी मंजिल ऊँची है,कई सीडिया तुमको चढ़ना
तुम्हारी गति बहुत तेज है,हम धीरे धीरे चलते है
इसीलिए बढ़ रही दूरिया हम दोनों में ,हम खलते है
हमें छोड़ दो ,आगे भागो ,तुम्हे लक्ष्य है ,अपना पाना
अर्जुन, मछली घूम रही है,तुम्हे आँख में तीर लगाना
आशीर्वाद हमारा तुमको,तुम अपनी मंजिल को पाओ
हम पगडण्डी  पर चल खुश ,तुम राजमार्ग पर दोड लगाओ
चूमे चरण सफलता लेकिन ,मंजिल पाकर फूल न जाना
जिन ने तुमको राह दिखाई,उन अपनों को भूल न जाना
ढूंढ रही तुम में अपनापन,धुंधली ममता भरी निगाहे
तुम जियो जैसे तुम चाहो,हम जीए जैसे हम चाहे
a

दिया

          दिया
माटी का तन
रस मय जीवन
में हूँ दिया
मैंने बस दिया ही दिया
तिमिर त्रास को भगा
जगती को जगमगा
मैंने सदा प्रकाश दिया
निज काया को जला
करने सब का  भला
प्यार का उजास दिया
जब तक था जीवन रस
जलता रहा मै बस
औरों का पथ प्रदर्शन करता रहा
स्वार्थ को छोड़ पीछे
मेरे स्वम के नीचे
अँधियारा पलता रहा
और दुनिया ने मुझे क्या दिया
रिक्त हुआ ,फेंक दिया
मै हू दिया

Sunday, December 19, 2010

नव वर्ष

     नव वर्ष
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ
गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारन कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कलसे जानो
कल ने ही कांटे छाटे थे
किया सुगम पथ ,इतना मनो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सतिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ

Saturday, December 18, 2010

बुढ़ापा

बुढ़ापा
बिना बुलाये ही आ जाता ,दबे पाँव चुपचाप बुढ़ापा
कभी ख़ुशी से झोली भरता ,या देता संताप बुढ़ापा
संचित पुण्यो का प्रतिफल या पूर्व जन्म का पाप बुढ़ापा
व्यथित ह्रदय और थका हुआ तन ,जीवन का अभिशाप बुढ़ापा
जीवन की मधुरिम संध्या या ढलने का आभास बुढ़ापा
टिम टिम करती जीवन लो का बुझता हुआ उजास बुढ़ापा
मृत्यु द्वार नजदीक आ गया ,आकर देता थाप बुढ़ापा
यादों के सागर में तैरो,हंस कर काटो आप बुढ़ापा
 

Wednesday, December 15, 2010

संस्कार

        संस्कार
वो संस्कारी थे
संस्कृति के पुजारी थे
आजकल बुढ़ापा कैसे बिताते है
संस्कार चेनल देखते है
son s  कर में घूमते है
और son s कृति को  खिलाते है

नया जमाना

     नया जमाना
घंटो तक बच्चे करे ,अनजानों से चेट
संस्कृति को खाने लगे,टी.वी. इन्टरनेट
ना तो पढ़ने में रूचि,ना वो खेले खेल
लेपटोप ले गोद में ,भेज रहे ई मेल
ऐसी हम सब पर पड़ी,मोबाइल की मार
मोबाइल होने लगे,संस्कार,आचार
बढे बुधो की आजकल,बात सुनेगा कौन
कानो से हटता नहीं,जब मोबाइल फोन
देखे टी.वी.सीरियल ,ऐसा पाए ज्ञान
बचपन में ही आजकल,बच्चे बने जवान
ये साधन विज्ञानं के ,देने को सहयोग
एडिक्शन यदि हो गया, बन जायेगे रोग

Wednesday, December 8, 2010

काई जमानो आयो है

काई  जमानो आयो है
अबे लुगाया घरवाला को नाम लई ने बात करे
शादी ब्याव बाद में होवे पहला मुलाकात  करे
बिना ब्याव के छोरा छोरी साथ साथ में रेवे है
बेशर्मी का एसा किस्सा टी वी वाला कहवे है
गोदी में कम्पुटर रख के ,कई कई बात बतावे है
तुम जिन से भी बात करो हो,उनको फोटू आवे है
धनी लुगाई, करे नोकरी,खानों होटल से आवे
घी से भरी चूरमा बाटी, नी खावे,मुह बिचकावे
लूखी सूखी रोटी खावे,मीठा से घबरावे है
हाथा मेंमोबाईल लई ने घटो तक बतियावे है
घूमे फिरे उगाडा माथे,पेंट जीन में इतराए
चूल्हों चोको और रसोई,में जावा से घबरावे
तीज त्यौहार याद नी रेवे,तीर्थ बरत की खबर नहीं
रीत रिवाज बड़ा बूढा की,इनके बिलकुल फिकर नहीं
राम राम अब कई बतावा ,कैसो कलजुग छायो है
               कई जमानो आयो है
a

Monday, December 6, 2010

स्केम

        स्केम
राजा जब स्केम करेगा
भला प्रजा का फिर क्या होगा
हे करूणानिधि! साथ न छोडो
इन्द्रप्रस्थ का फिर क्या होगा
जी जी या टू जी का चक्कर
अपनी रहे तिजोरी सब भर
कोटि कोटि जनता की कोटिश
धन राशी का फिर क्या होगा
सोसायटी आदर्श बन गयी
आदर्शो की बाट लग गयी
अंधे बाँट रेवड़ी खाए
आदर्शो का फिर क्या होगा
kis par koi kare bharosa
a

Sunday, December 5, 2010

अब भी

          अब भी
अब भी तेरा रूप महकता जेसे चन्दन
अब भी तुझको  छूकर तन में होती सिहरन
अब भी चाँद सरीखा लगता तेरा आनन्
अब भी तुझको देख मचल जाता मेरा  मन
अब भी तेरे नयना उतने मतवाले है
अब भी तेरे होंठ भरे रस के प्याले है
अब भी तेरी बाते मोह लेती है मन को
अब भी तेरा साथ बड़ा देता धड़कन को
मुझे अप्सरा लगती अब भी, तू ही हूर है
वही रूप है,वही जवानी, वही नूर है
अब भी तेरी रूप अदाए ,उतनी मादक
वो ही नशा है,वो ही मज़ा है,तुझमे अब तक
तुझ पर अब तक हुआ उम्र का असर नहीं है
मेरी उम्र बाद गयी तो क्या ,नज़र  वही है
अब भी मुझको रात रात भर तू तद्फाती
तेरे खर्राटो से मुझको नीद न    आती

           

आओ सुख दुःख मिल कर बाटे

आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
 खाते  गाते जीवन  काटे
गरम जलेबी  गाजर हलवा
रबड़ी के लच्छो का जलवा
दही बड़े ,आलू की टिक्की
दोने में भर ,दोनों चाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
जाए सिनेमा, देखे पिक्चर
काफी पिए,बरिस्ता जाकर
घर आकर तुम हमें खिलाओ
आलू वाले गरम परांठे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
गाये मुन्नी की बदनामी
या शीला की मस्त जवानी
कजरारे कजरारे नयना
गाकर दूर करे सन्नाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे

Thursday, December 2, 2010

गृह प्रवेश हे हनीमून सा

 गृह प्रवेश हे हनीमून सा
मन की चार दिवारी में जब कोई बसता
नयन निहारे पलक बिछा कर जिसका रस्ता
जिसकी मीठी वाणी में हे प्यार बरसता
वो प्यारा मदमस्त चेहरा हँसता हँसता
दिल के हर एक कोने में जिसकी खुशबू हे
नवल वृक्ष की नवल कली या नव प्रसून सा
   गृह प्रवेश हे हनीमून सा
जिसमे बस कर मन को मिल जाती हो राहत
रहने वालो में होती आपस में चाहत
कोने कोने में बिखरी हो प्यार मोहब्बत
जहा लक्ष्मी वास करे ,खुल जाये किस्मत
थके हुए हरे प्राणी को जिस चोखट में
आते ही मिल जाता हो मन में सुकून सा
    गृह प्रवेश हे हनीमून सा