मैं एक कमरे में कैद
मै एक कमरे में कैद मगर, बातें करता उड़ जाने की
तन्हाई में सिमटा ,चाहत ,फिर भी सबसे जुड़ जाने की
संगेमरमर का श्वेत फर्श ,है चार दीवारें ,एक छत है
एक दरवाजा ,एक खिड़की है ,बाकी क्या मुझे जरूरत है
कर लेता हूँ बस ताकझांक,बाहर की दुनिया की हलचल
मैं साधनहीन ,साधना में ,फिर भी खोया रहता हरपल
मैं जिस रस्ते पर निकल गया ,आदत ना है मुड़ आने की
मैं एक कमरे में कैद मगर बातें करता उड़ जाने की
जो मिला उसी से पेट भरा ,पकवानो की ना चाह मुझे
दुनिया चाहे कुछ भी बोले ,ना रत्ती भर परवाह मुझे
बेतार तार की कुछ तरंग ,है जोड़ रही अपनों के संग
तन्हा हूँ पर लाचार नहीं ,मस्ती में डूबा ,मैं मलंग
तन एकाकी ,मन में हसरत लेकिन सबसे ,मिल पाने की
मैं एक कमरे में कैद मगर ,बातें करता उड़ जाने की
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मै एक कमरे में कैद मगर, बातें करता उड़ जाने की
तन्हाई में सिमटा ,चाहत ,फिर भी सबसे जुड़ जाने की
संगेमरमर का श्वेत फर्श ,है चार दीवारें ,एक छत है
एक दरवाजा ,एक खिड़की है ,बाकी क्या मुझे जरूरत है
कर लेता हूँ बस ताकझांक,बाहर की दुनिया की हलचल
मैं साधनहीन ,साधना में ,फिर भी खोया रहता हरपल
मैं जिस रस्ते पर निकल गया ,आदत ना है मुड़ आने की
मैं एक कमरे में कैद मगर बातें करता उड़ जाने की
जो मिला उसी से पेट भरा ,पकवानो की ना चाह मुझे
दुनिया चाहे कुछ भी बोले ,ना रत्ती भर परवाह मुझे
बेतार तार की कुछ तरंग ,है जोड़ रही अपनों के संग
तन्हा हूँ पर लाचार नहीं ,मस्ती में डूबा ,मैं मलंग
तन एकाकी ,मन में हसरत लेकिन सबसे ,मिल पाने की
मैं एक कमरे में कैद मगर ,बातें करता उड़ जाने की
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '