Monday, June 24, 2019

सास बहू संवाद

सास बोली बहू से कि ,तू  नई है
बुरे अच्छे का पता तुझको नहीं है
जो भी करती आई मैं ,वो ही सहीहै  
मुझसे अच्छा ,घर में  कोई भी नहीं है
मुझको मालुम ,घर को कैसे सजाते है
 मुझको मालुम,पैसा कैसे बचाते  है
तू नयी ,नौसिखिया ,तूने न जाना
कितना मुश्किल ,सफलता से घर चलाना
जवानी के गर्व में इठला न किंचित
मोहल्ले के सभी है  मेरे परिचित
बात मेरी ,गाँव सारा मानता है
तुझको मुश्किल से ही कोई जानता है
मैं बड़ी हूँ ,तुझे यदि ना भान होगा
सासपन मेरा यूं ही कुरबान होगा
चुप न रह पाती भले आराम में हूँ
ढूंढती कमियां तेरे हर काम में हूँ
कहीं ऐसा न हो तू गर्वान्वित हो
लोगों का दिल जीत ले,लाभान्वित हो
भूल मत ,मैंने बहू तुझको बनाया
भूल मत ,सर पर तुझे मैंने चढ़ाया
क्या पता था ,बजा तू यूं बीन देगी
मुझसे ही तू मेरा बेटा छीन लेगी
इसलिए सुन ,बढ़ न तू मुझसे अगाडी
तू अनाडी ,और पुरानी  मैं खिलाड़ी
अनुभव और ज्ञान का अहसास हूँ मैं
बात मेरी मान ,तेरी सास हूँ मैं
बहू बोली ,सास बलिहारी तुम्हारी
तुम्हारे पद चिन्ह पर चल रही सारी
सिर्फ मेरी सोच में है कुछ समर्पण
पाएं घरवाले ख़ुशी ,कर रही अर्पण
तन और मन से ,जो भी मुझसे बन सका है
फिर भी माथा आपका क्यों ठनकता है
भूल सकता कौन है तुम्हारी हस्ती
बहुत दिन तक चलाई तुमने गृहस्थी
थक  गयी  होगी ,जरा आराम देखो  
शांति से मैं कर रही वो काम देखो
लालसा सत्ता की है जो भी हटा दो
मन में लालच है अगर ,उसको घटा दो
आपने की सेवा ,पाया खूब मेवा
छोड़ गृहसेवा ,करो अब प्रभु सेवा

घोटू

गुजरे दिन

अब दीवारें फांदने के दिन गये
हसीनो को साधने के दिन गये गये

हुआ जो तुमको किसी से प्यार है
पहुँचने के लिए घर का द्वार  है
खिड़कियों से झाँकने के दिन गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

ढला ही करती सभी की उमर है
दिल का आना पर न कोई जुरम है
प्यार के अधिकार तो ना  छिन  गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

सब के मन में मचलता रोमांस है
हरेक को पर नहीं मिलता चांस है
ढूंढ लो तुम,मिलन के पल छिन नये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

खुल अब ना खेलने  की है उमर
मिले जितना ,करो उससे ही सबर
अब छलांगे मारने के दिन गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

घोटू