क्या ये सब ही राजनीति है?
इक दूजे पर फेंके कीचड़
टांग खींचते ,आपस में लड़
ढूंढ ढूंढ कर पोल खोलते
उल्टा सीधा ,सभी बोलते
शब्दों का यूं ग़दर मचा है
नहीं कोई शालीन बचा है
यहाँ सभ्यता हुई इति है
क्या ये सब ही राजनीति है?
ये कर देंगे,वो देंगे कर
जनता को आश्वासन देकर
वादा किया हमेशा झूंठा
सत्ता पाई,जी भर लूटा
जनता का धन लूट लूट के
अब बनते है धुले दूध के
जनसेवा की यही रीति है ?
क्या ये सब ही राजनीति है?
सत्ता लोलुपता में पागल
मचा रखा है ऐसा दंगल
तोड़फोड़ के सब हथकंडे
पड़े विरोधी जिससे ठन्डे
साम दाम अपनाने वाले
बस सत्ता का सपना पाले
क्या जनता की यही नियति है ?
क्या ये सब ही राजनीति है?
इतने सब के उड़े होश है
इक दूजे को रहे कोस है
सत्ता छीने न ,यही सोच कर
उत्तर आये गाली गलोच पर
दंद फंद के सभी काम कर
वोट मांगते ,धरम नाम पर
जब मतलब है,तभी प्रीति है
क्या ये सब ही राजनीति है ?
पर अब जनता जाग गयी है
परिवर्तन की आग नयी है
झेला बहुत,न अब झेलेंगे
इनके हाथों ना खेलेंगे
भला बुरा सब परखेंगे हम
वोट उसी को तब देंगे हम
जो जनता का सही हिती है
तब ही सच्ची राजनीति है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इक दूजे पर फेंके कीचड़
टांग खींचते ,आपस में लड़
ढूंढ ढूंढ कर पोल खोलते
उल्टा सीधा ,सभी बोलते
शब्दों का यूं ग़दर मचा है
नहीं कोई शालीन बचा है
यहाँ सभ्यता हुई इति है
क्या ये सब ही राजनीति है?
ये कर देंगे,वो देंगे कर
जनता को आश्वासन देकर
वादा किया हमेशा झूंठा
सत्ता पाई,जी भर लूटा
जनता का धन लूट लूट के
अब बनते है धुले दूध के
जनसेवा की यही रीति है ?
क्या ये सब ही राजनीति है?
सत्ता लोलुपता में पागल
मचा रखा है ऐसा दंगल
तोड़फोड़ के सब हथकंडे
पड़े विरोधी जिससे ठन्डे
साम दाम अपनाने वाले
बस सत्ता का सपना पाले
क्या जनता की यही नियति है ?
क्या ये सब ही राजनीति है?
इतने सब के उड़े होश है
इक दूजे को रहे कोस है
सत्ता छीने न ,यही सोच कर
उत्तर आये गाली गलोच पर
दंद फंद के सभी काम कर
वोट मांगते ,धरम नाम पर
जब मतलब है,तभी प्रीति है
क्या ये सब ही राजनीति है ?
पर अब जनता जाग गयी है
परिवर्तन की आग नयी है
झेला बहुत,न अब झेलेंगे
इनके हाथों ना खेलेंगे
भला बुरा सब परखेंगे हम
वोट उसी को तब देंगे हम
जो जनता का सही हिती है
तब ही सच्ची राजनीति है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'