Monday, April 20, 2020

हाय रे! इंसान की मजबूरियां

चाहते है वो हमें,विश्वास है
इसलिए ही नहीं आते पास है
प्यार करते ,तभी रहते दूर है
डर कोरोना का  बना नासूर है
जान कर के बनाई है दूरिया
हाय रे ! इंसान की मजबूरियां

गुलाबी सुन्दर ,रसीले वो अधर
आजकल आते नहीं हमको नज़र
बाँध मुंह पर 'मास्क 'रखते है छुपा
हुए चुंबन ,मुस्कराहट ,बेवफा  
लग गयी है प्यार पर पाबंदियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरिया  

इस तरह वो  हो गए मजबूर से
आँख बस केवल मिलाते ,दूर से
रखते हमसे पांच फिट का फासला
हाथ छूने से भी  है उनको गिला
तड़फाते है खनका के बस चूड़ियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरिया

प्यार को रहता तरसता ये जिगर
पास बहती नदी ,हम प्यासे मगर
सामने मिठाइयों का थाल है
खा  न पाते ,बुरा इतना हाल है
दिल पे चलती रोज छप्पन छुरियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरियां  

तड़फता है रोज ये दिल तिलमिला
कितने दिन तक चलेगा ये सिलसिला
सितम कितने दिन ये झेला जाएगा
अरमानो से ,दिल के खेला जाएगा
कब मिलेगी, प्यार की मंजूरियां
हाय रे ! इंसान की मजबूरियां  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मुस्कराना सीख लो

ख़ुशी चेहरे पर बहुत आ जायेगी
जिंदगी में  बहारें  छा जायेगी
मिलो ,सबका प्यार पाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना  सीखलो

दिल में जब इंसानियत जग जायेगी
मन की सब मनहूसियत भग जाएगी
बस किसी के काम आना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

किसी की मुश्किल में उसका साथ दो
सहारे को बढ़ा अपना हाथ दो
गिरते को ,ऊपर उठाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

किसी का गम अगर कुछ कम कर सको
किसी के जीवन में खुशिया भर सको
फर्ज  बस  अपना निभाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीख लो

बात सुन कर किसी की न भौंहें तने
ना किसी से मिलो और रहो अनमने
खुश रहो ,बांछें खिलाना सीख लो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

सावधानी हटी ,दुर्घटना घटी
जिंदगी फिर मुश्किलों से ही कटी
ठीक से गाडी चलाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

नहीं जलना ,जलन से  और डाह से
जलो बन कर दीप तुम उत्साह से
तम हटाकर ,जगमगाना सीखलो
आप थोड़ा मुस्कराना सीखलो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
अदृश्य

वो चलती है ,वो बहती है
वो आसपास ही रहती है
है गर्म कभी तो ठंडी है
सुखदायक कभी प्रचंडी है
होती  सबकी जीवनदाती
पर हमको नज़र नहीं आती
जो हम सबकी जीवनरेखा
हमने न हवा को पर देखा
हम खट्टा मीठा खाते है
खाने का मज़ा उठाते है
सबकी जिव्हा और मनभाया
तुमको क्या स्वाद नज़र आया
सब शोर मचाते ढोल सुने
क्या ख़ामोशी के बोल सुने
क्या लड़ता देखा आँखों को
क्या सुना कभी सन्नाटों को
अंधियारे में कुछ ना दिखता
पर अँधियारा  तुमको दिखता
ना चाह दिखे और चाव नहीं
दिखता स्वभाव और भाव नहीं
ऐसी कितनी ही है बातें
जो होती देख न हम पाते
होती अदृश्य ,पर क्षण क्षण में
वो साथ निभाती  जीवन  में

घोटू 
शादी के बाद-चार चित्र  
१ 
शादी के बाद ,
प्यार का आहार  पाकर 
जब काया छरहरी 
होती है हरी भरी 
फूलती फलती है 
तो ,तब बड़ी अखरती है 
जब सगाई की अंगूठी ,
ऊँगली में आने से ,इंकार करती है 
शादी के पहले ,
स्वच्छ्न्द उड़ने वाले पंछी,
शादी के बाद ,जब बनाते है घोंसले 
तो जिम्मेदारी के बोझ से ,
पस्त  हो जाते है  उनके होंसले 
वो भूल जाते है सारे चोंचले 
एक नाजुक सी दुल्हन 
जब अपने फूलों से कोमल हाथों से ,
 सानती  है आटा ,
या मांजती है बरतन
अपना सारा हुस्न और नज़ाकत भूल , 
बन जाती है पूरी गृहस्थन 
गरम गरम तवे पर  ,
 रोटी सेकते सेकते, 
जब गलती से ,नाजुक उँगलियाँ,
तवे से चिपक जाती है 
तो मम्मीजी की ,बड़ी याद आती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'