Monday, August 24, 2020

एक तारा

 सूना सूना सा  जीवन था  ,मेरे मन की मीत  बनी तुम
तारा,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

मैं पतझड़ का सूखा तरु था ,तुम आयी तो विकसे किसलय
सुरभित हुआ हृदय का उपवन ,मेरे स्वर में आयी फिर लय
आहट  हुई मुस्कराहट की ,फिर से इन फीके  अधरों पर
फिर से मन उन्मुक्त गगन में ,लगा फड़फड़ाने ,अपने पर
हार गया मैं अपना सब कुछ ,ऐसी प्यारी जीत बनी तुम
तारा ,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

दग्ध हृदय को शीतलता दी ,और शीतल तन को दी ऊष्मा
अपना सारा प्यार उंढेला ,और  बरसा दी  तन की सुषमा
मुरझाई जीवन लतिका में ,नवजीवन संचार  हुआ फिर
एक दूजे को हुए समर्पित ,हम में इतना प्यार हुआ फिर
अब पल पल ,तुम्हारा संबल ,ऐसी जीवन रीत बनी तुम
तारा ,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
उनयासीवें जन्मदिवस पर

स्वाद वही ताजे वाला है ,भले हो गया हूँ मैं बासी
अब भी वही जोश कायम है भले हुआ  मैं उनयासी

बचपन से दोस्त ,गए कुछ छोड़ और कुछ रंग बदले
दांत संग कुछ छोड़ गए है , काले  केश ,हुए उजले
परिवार के सब बच्ची  बच्चों , का  निज  परिवार बना  
कभी दूर का ,कभी पास का ,एक अजब व्यवहार बना
रोज भुलाता ,बीती बातें ,सारी, जो चुभ चुभ  जाती
पर दाढ़ी के बालों जैसी ,रोज सुबह फिर उग आती
मन तो उतना रसिक ना रहा ,जिव्हा पर रस की लोभी
लालायित रहती खाने को ,मीठा ,चाट ,मिले जो भी
अब ना तेजी रही चाल में ,ना ही तेजी बोली में
पड़ने फीके लगे रंग सब ,जीवन की रंगोली  में
वानप्रस्थ की उमर बिता दी ,और बना ना सन्यासी
अब भी वही जोश है कायम ,भले हुआ मैं उनयासी
 
वो ही दीवारें ,वो ही छत है ,और वैसा ही आंगन है
चहल पहल वाले घर में अब ,व्याप्त हुआ सूनापन है  
नज़रें वही ,नज़रिया लेकिन धीरे धीरे बदल  रहा
ऐसा लगता है कि जैसे ,समय हाथ से फिसल रहा
घर में हम दो ही प्राणी है ,बूढ़े ,तन से थके थके
मैं हूँ और मेरी पत्नी हम ,एक दूजे का ख्याल रखें
मन है सुदृढ़ ,भले ही तन में ,बाकी नहीं सुगढ़ता है
फिर भी ताकत है लड़ने की ,बिमारी से लड़ता है
साथ उमर के सबको ही ,करना पड़ता समझौता है
तन तो बूढा हो जाता है ,मन कब बूढ़ा होता है
भरा हुआ जीने का जज्बा  ,और उमंग अच्छी खासी
अब भी वही जोश कायम है ,भले हुआ मैं उनयासी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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