Monday, September 24, 2018

पत्नीजी का अल्टीमेटम 

यदि मेरी जो नहीं सुनोगे 
तो तुम भूल गृहस्थी के सुख ,वानप्रस्थ की राह चुनोगे 
यदि मेरी जो नहीं सुनोगे 

मैं कहती मुझको अच्छी सी साड़ी ला दो ,तुम ना कहते 
मैं कहती दुबई ,सिंगापूर ,ही घुमवादो ,तुम ना कहते 
मैं भी ना ना करती हूँ पर ,वो हाँ बन जाती आखिर है 
पर तुम्हारी ना तो जिद है ,एक दम पत्थर की लकीर है 
देखो मैं स्पष्ट कह रही ,ज्यादा मुझको मत तरसाओ 
पूर्ण करो मेरी फरमाइश और गृहस्थी का सुख पाओ 
वरना आई त्रिया हठ पर तो ,एक तुम्हारी नहीं सुनूँगी 
तरस जाओगे ,अपने तन पर हाथ तुम्हे ना रखने दूँगी 
बातचीत सब बंद रिलेशनशिप पर फिर तलवार चलेगी 
जब तक माथा ना रगड़ोगे ,तब तक ये हड़ताल चलेगी 
ये मेरा अल्टीमेटम है ,अपनी करनी खुद भुगतोगे 
यदि जो मेरी नहीं सुनोगे 

ये न सोचना बहुत मिलेगी ,कोई घास नहीं डालेगी 
तुम में दमखम बचा कहाँ है ,बूढ़ा बैल कौन पालेगी 
वो तो मैं ही हूँ कैसे भी ,निभा रही हूँ साथ तुम्हारा 
मिले अगर मुझको भी मौका,ये गलती ना करू दोबारा 
तुम यदि मन में सोच रहे हो , बेटे बहू सहारा देंगे 
तुमसे वसीयत लिखवा लेंगे ,दूर किनारा वो कर लेंगे 
रिश्तेदार दूर भागेंगे ,ना पूछेंगे ,पोते ,नाती 
वृद्धावस्था में जीवन की ,केवल पत्नी साथ निभाती 
उसको भी नाराज़ किया तो ,समझो तुम पर क्या बीतेगी 
उसे सदा खुश रखो पटा कर ,बात मानलो,तभी निभेगी 
वरना एक दिन सन्यासी बन ,तुम अपना सर स्वयं धुनोगे 
यदि जो मेरी नहीं सुनोगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन को यूं ही चलने दो 

अपनी करनी करते जाओ ,लोग अगर जलते, जलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो
 
लोगों की तो आदत ही है ,बार बार तुमको टोकेंगे 
ध्यान  तुम्हारा  भटकायेंगे ,राह तुम्हारी  वो   रोकेंगे 
देख शान से चलता हाथी ,कुत्ते ,कुत्ते है  भौंकेगे 
तुम्हारा उत्कर्ष देख कर ,उनको खलता है ,खलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

जिनकी फितरत डाह,दाह है जलेभुने,मन में खीजेंगे 
तुम्हारी गलतियां पकड़ कर ,अपनी पर  आँखें  मीचेंगे 
 भीड़ केंकडों की है  ,कोई बढ़ा ,सभी टाँगे  खीचेंगे 
उनका हश्र बुरा ही होगा ,हाथ अगर मलते ,मलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

कई पेंतरे बदलेंगे वो ,साम  दंड  सब अपनाएंगे 
कभी तुम्हे डालेंगे दाना ,और सर पर भी बिठलायेंगे 
सिंद्दांतों पर अटल रहे तुम ,वो औंधे मुंह गिर जाएंगे 
कितनी भी कोशिश करें वो ,दाल नहीं उनकी गलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

आखिर जीत सत्य की होगी ,और  झूंठ घुटने टेकेगी 
उनका माल हजम कर जनता ,उन्हें अंगूठा दिखला देगी
अंत बुरे का बुरा सदा है , ये सारी  दुनिया  देखेगी 
लाओ सामने असली चेहरा ,पहन नकाब नहीं छलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '