पत्नीजी का अल्टीमेटम
यदि मेरी जो नहीं सुनोगे
तो तुम भूल गृहस्थी के सुख ,वानप्रस्थ की राह चुनोगे
यदि मेरी जो नहीं सुनोगे
मैं कहती मुझको अच्छी सी साड़ी ला दो ,तुम ना कहते
मैं कहती दुबई ,सिंगापूर ,ही घुमवादो ,तुम ना कहते
मैं भी ना ना करती हूँ पर ,वो हाँ बन जाती आखिर है
पर तुम्हारी ना तो जिद है ,एक दम पत्थर की लकीर है
देखो मैं स्पष्ट कह रही ,ज्यादा मुझको मत तरसाओ
पूर्ण करो मेरी फरमाइश और गृहस्थी का सुख पाओ
वरना आई त्रिया हठ पर तो ,एक तुम्हारी नहीं सुनूँगी
तरस जाओगे ,अपने तन पर हाथ तुम्हे ना रखने दूँगी
बातचीत सब बंद रिलेशनशिप पर फिर तलवार चलेगी
जब तक माथा ना रगड़ोगे ,तब तक ये हड़ताल चलेगी
ये मेरा अल्टीमेटम है ,अपनी करनी खुद भुगतोगे
यदि जो मेरी नहीं सुनोगे
ये न सोचना बहुत मिलेगी ,कोई घास नहीं डालेगी
तुम में दमखम बचा कहाँ है ,बूढ़ा बैल कौन पालेगी
वो तो मैं ही हूँ कैसे भी ,निभा रही हूँ साथ तुम्हारा
मिले अगर मुझको भी मौका,ये गलती ना करू दोबारा
तुम यदि मन में सोच रहे हो , बेटे बहू सहारा देंगे
तुमसे वसीयत लिखवा लेंगे ,दूर किनारा वो कर लेंगे
रिश्तेदार दूर भागेंगे ,ना पूछेंगे ,पोते ,नाती
वृद्धावस्था में जीवन की ,केवल पत्नी साथ निभाती
उसको भी नाराज़ किया तो ,समझो तुम पर क्या बीतेगी
उसे सदा खुश रखो पटा कर ,बात मानलो,तभी निभेगी
वरना एक दिन सन्यासी बन ,तुम अपना सर स्वयं धुनोगे
यदि जो मेरी नहीं सुनोगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '