Friday, May 3, 2019

स्थान और वक़्त

धरती घूम रही निज धुरी पर सूरज के चक्कर खातीहै 
वैसे वक़्त बदलता रहता ,जैसे जगह बदल जाती है 

देश देश में अलग वक़्त यह इसीलिएमुमकिन होता है 
रात हुआ करती लन्दन में ,जब दिल्ली में दिन होता है 
मौसम भी बदला करते है ,सर्दी गरमी बरसाती है 
वैसे वक़्त बदलता रहता , जैसे जगह बदल जाती है 

कल का छुटभैया नेता जब एमपी चुन दिल्ली जाता है 
हो जाती उसकी पौबारह ,एसा वक़्त बदल जाता है 
आ जाती चेहरे पर रौनक़ थोड़ी तोंद निकल आती है 
वैसे वक़्त बदलता रहता ,जैसे जगह बदल जाती है 

रहती कितने अनुशासन में जब लड़की होजायसयानी 
वक़्त बदलता ससुराल जा बन जाती है घर की रानी 
एक इशारे पर ऊँगली के पतिदेव को नचवाती है 
वैसे वक़्त बदलता रहता ,जैसे जगह बदल जाती है 

घोटू

दिल के अरमान

दिल के अरमां ,आंसूओ में खो  गये
                       १ 
शाम को सजती,संवरती मै रही,
                      आओगे तुम,प्यार निज दरशाओगे
बाँध लोगे बांहों  में अपनी मुझे ,
                       या कि मेरी बांहों  में बंध  जाओगे
आये थके हारे तुम ,खाया पिया ,
                         टी वी देखा  और झटपट  सो गये
क्या बताएं ,रात फिर कैसे कटी ,
                           दिल के अरमां ,आंसूओं में खो गये 
                            २
मुश्किलों से पार्टी का पा टिकिट ,
                       उतरे हम चुनाव के मैदान में
गाँव गाँव ,हर गली ,सबसे मिले ,
                   पूरी ताकत झोंकी अपनी जान  में
पानी सा पैसा बहाया ,सोच ये,
                       कमा लेंगे ,एम पी. जो हो गये
नतीजा  आया ,जमानत जप्त थी,
                       दिल के अरमां , आंसूओं में खो  गये 
                         ३
हुई शादी,प्यारी सी बीबी मिली,
                       धीरे धीरे ,बेटे भी दो हो गये
बुढ़ापे का सहारा ये बनेगें ,
                      लगा कर ये आस हम खुश हो गये
पढ़े,लिख्खे,नौकरी अच्छी  मिली ,
                      हुई शादी,अलग हमसे हो गये
बुढ़ापे में हम अकेले रह गये,
                  दिल के अरमां , आंसूओं में खो  गये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुढ़ापा -एक वरदान

उम्र बुढ़ापे की होती थी त्रास कभी 
मजबूरी का दिलवाती अहसास कभी 
आज बुढ़ापा वो ही है वरदान  बना 
मौज और मस्ती का ये  सामान बना
फ़र्क़ नहीं कुछ ,सिर्फ़ नज़रिया है बदला
सुख से जीने की हमको आ गयी कला
गया ज़माना जब हम पूरे जीवन भर 
पैसा ख़ूब कमाया करते ,मेहनत कर 
पाई पाई कर ,पैसा जोड़ा करते थे 
सात पुश्त के ख़ातिर छोड़ा करते थे 
सारा जीवन जीते थे कंजूसी कर 
मज़ा न जीवन का लेते थे रत्ती भर 
एसे फँसते ननयानू के  फेरे में 
सिमटे रहते थे बस अपने घेरे में 
साथ वक़्त के अब बदलाव लगा आने 
ख़ुद पर ख़र्चो ,मन में भाव लगा आने 
पूत सपूत ,कमायेगा ख़ुद ,खायेगा
पूत कपूत ,तुम्हारी बचत उड़ाएगा
खुल्ली दौलत ,उसमें आलस भर देगी 
उसे निठल्ला और निकम्मा कर देगी 
लिखा भाग्य में ,वैसा जीवन जियेगा 
जो क़िस्मत में है वो खाये पीयेगा
वैसे भी व्यवहार शून्य है अब बच्चे
मातपिता प्रति ,प्यार शून्य है अब बच्चे
अब वो ख़ुद में मस्त ,अलग हो रहते है 
निज जनकों पर ध्यान भला कब देते है 
जैसे शादी हुई ,बदल वो जाते है 
संस्कार तुम्हारे दिये,भुलाते है 
इसीलिये उनके पीछे मत हाय करो 
ख़ुद कमाओ ,ख़ुद पर ख़र्चो,एंजोय करो 
यही सोच सब सुख के साधन जुटा रहे 
निज कमाई का पूरा आनंद उठा रहे 
अब तक जो सिमटे रहते थे निज घर में 
आज घूमते फिरते है दुनिया भर में 
साठ साल के बाद रिटायर होने पर 
अक्सर उगने लगते है लोगों के पर 
ना कमाई की चिंता में घुटते,मरते 
खपत बचत कीख़ुद अपने ख़ातिर करते 
करते है वो जो भी आये मर्ज़ी में 
जाते तीरथ,हिल स्टेशन ,गर्मी में 
सिंगापुर ,योरोप अमेरिका घूम रहे 
या मस्ती में गोआ तट पर झूम रहे 
इन्शुरन्स बीमारी का कर रखते है 
मोटी पेंशन ,दिन मस्ती से कटते है 
मौज मनाते और करते अठखेली है 
बदल गयी बूढ़ों की जीवन शैली है 
मज़ा लिया करते है खाने पीने का 
बदल गया है आज तरीक़ा जीने का 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बहू बेटी 

सास भी कभी थी बहू,हुई पुरानी बात 
अब तो पहले दिवस से ,बहू बने है सास 
बहू बने है सास ,छीन माता का जाया
एसा जादू करती ,बेटा बने  पराया 
'घोटू' सुख बरसे ,मिट जाये जब ये अंतर 
बहू रहे ससुराल ,सदा बेटी सी बन कर 

घोटू

पतझड़ की उमर

ये पतझड़ की उम्र डाल पर किसको कितना टिकना है 
हमको तुमको सबको एकदिन टूट शाख़ से गिरना है
विकसे थे हम कभी वृक्ष पर नरम मुलायम किसलयथे 
 नन्हें नन्हें ,चिकने चिकने ,हम कितने कांतिमय थे 
साथ वक़्त के हरे भरे हो ,बड़े हुये हम ,इतराये
ख़ूब पवन झोंको में डोले ,हम सबके ही मन भाये
ग्रीष्म ऋतु में छाया दी और शीतल मस्त बयार बने 
एक दूजे संग की अठखेली,हम यारों के यार बने 
रितुयें बदली साथ वक़्त के ,पतझड़ का मौसम आया
हम पीले कमज़ोर पड़ गये ,हवा चली ,संग बिखराया
कोई जला दिया जायेगा और किसी को गढ़ना है 
बन कर खाद ,नये पौधों को ,हराभरा फिर करना है 
ये पतझड़ की उम्र डाल पर किसको कितना टिकना है 
हमको तुमको सबको एकदिन टूट शाख़ से गिरना है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '