उम्र बुढ़ापे की होती थी त्रास कभी
मजबूरी का दिलवाती अहसास कभी
आज बुढ़ापा वो ही है वरदान बना
मौज और मस्ती का ये सामान बना
फ़र्क़ नहीं कुछ ,सिर्फ़ नज़रिया है बदला
सुख से जीने की हमको आ गयी कला
गया ज़माना जब हम पूरे जीवन भर
पैसा ख़ूब कमाया करते ,मेहनत कर
पाई पाई कर ,पैसा जोड़ा करते थे
सात पुश्त के ख़ातिर छोड़ा करते थे
सारा जीवन जीते थे कंजूसी कर
मज़ा न जीवन का लेते थे रत्ती भर
एसे फँसते ननयानू के फेरे में
सिमटे रहते थे बस अपने घेरे में
साथ वक़्त के अब बदलाव लगा आने
ख़ुद पर ख़र्चो ,मन में भाव लगा आने
पूत सपूत ,कमायेगा ख़ुद ,खायेगा
पूत कपूत ,तुम्हारी बचत उड़ाएगा
खुल्ली दौलत ,उसमें आलस भर देगी
उसे निठल्ला और निकम्मा कर देगी
लिखा भाग्य में ,वैसा जीवन जियेगा
जो क़िस्मत में है वो खाये पीयेगा
वैसे भी व्यवहार शून्य है अब बच्चे
मातपिता प्रति ,प्यार शून्य है अब बच्चे
अब वो ख़ुद में मस्त ,अलग हो रहते है
निज जनकों पर ध्यान भला कब देते है
जैसे शादी हुई ,बदल वो जाते है
संस्कार तुम्हारे दिये,भुलाते है
इसीलिये उनके पीछे मत हाय करो
ख़ुद कमाओ ,ख़ुद पर ख़र्चो,एंजोय करो
यही सोच सब सुख के साधन जुटा रहे
निज कमाई का पूरा आनंद उठा रहे
अब तक जो सिमटे रहते थे निज घर में
आज घूमते फिरते है दुनिया भर में
साठ साल के बाद रिटायर होने पर
अक्सर उगने लगते है लोगों के पर
ना कमाई की चिंता में घुटते,मरते
खपत बचत कीख़ुद अपने ख़ातिर करते
करते है वो जो भी आये मर्ज़ी में
जाते तीरथ,हिल स्टेशन ,गर्मी में
सिंगापुर ,योरोप अमेरिका घूम रहे
या मस्ती में गोआ तट पर झूम रहे
इन्शुरन्स बीमारी का कर रखते है
मोटी पेंशन ,दिन मस्ती से कटते है
मौज मनाते और करते अठखेली है
बदल गयी बूढ़ों की जीवन शैली है
मज़ा लिया करते है खाने पीने का
बदल गया है आज तरीक़ा जीने का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '