विवाह की वर्षग्रन्थि पर-जीवनसंगिनी से
उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
मैं हूँ छांछट ,तुम हो पेंसठ
इकतालीस वर्षों से संग है,
हम इक सिक्के के दोनो पट
सीधे सादे ,मन के सच्चे
पर दुनियादारी में कच्चे
बंधे भावना के बंधन में,
पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
नहीं किसी से है कोई घट
पलपल जीवन ,घटता जाता
भावी कल ,गत कल बन जाता
कभी चांदनी है पूनम की,
कभी अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के महासमर में
हरदम हार जीत के डर में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
मन में क्रन्दन ,पीड़ा ,चिंतन
क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
अब तो ऐसे लगता जैसे ,
देने लगा बुढ़ापा आहट
आदित्य साबू
उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
मैं हूँ छांछट ,तुम हो पेंसठ
इकतालीस वर्षों से संग है,
हम इक सिक्के के दोनो पट
सीधे सादे ,मन के सच्चे
पर दुनियादारी में कच्चे
बंधे भावना के बंधन में,
पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
नहीं किसी से है कोई घट
पलपल जीवन ,घटता जाता
भावी कल ,गत कल बन जाता
कभी चांदनी है पूनम की,
कभी अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के महासमर में
हरदम हार जीत के डर में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
मन में क्रन्दन ,पीड़ा ,चिंतन
क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
अब तो ऐसे लगता जैसे ,
देने लगा बुढ़ापा आहट
आदित्य साबू