Sunday, April 17, 2011

कुंती

        कुंती
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एक आधुनिक कन्या चुलबुली
एक तांत्रिक से मिली
तांत्रिक बोला ,मै भूत भविष्य सब बतला सकता हूँ
किसी  भी मृत आत्मा से ,मुलाक़ात करवा सकता हूँ
कन्या बोली "जो कहते हो करके दिखलाओ
हो सके तो कुंती की आत्मा को बुलवाओ ,
मैंने सुना है उसे एक एसा मन्त्र आता था
जिसे पढ़ कर जिसका भी स्मरण करो
वो सामने आजाता था,
वो मन्त्र अगर मुझे मिल जायेगा
तो शाहरुख़ ,सलमान, जिसका भी स्मरण करो
आपकी बाँहों में आजायेगा"
तांत्रिक ने कुछ मन्त्र पढ़े और क्रियाये की
और थोड़ी देर में आगई आत्मा कुंती की
कन्या ने मन्त्र जानने की अभिलाषा जतलाई
तो कुंती की आत्मा ने ये बात बतलाई
की इस मन्त्र  से स्मरण किये व्यक्ति से,
संतान उत्पन्न होगी ,एसा इस मन्त्र का असर है
कन्या बोली मुझे इसका नहीं बिलकुल भी डर है
मै तो बस दिल बह्लौंगी
और नियम से 'पिल'  खाऊँगी
   मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चिंगारी

चिंगारी
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हायड्रोजन हलकी होती है
और ज्वलनशील भी
(हलके लोग जलते और जलाते है)
ओक्सिजन प्राणदायिनी होती है
पर जलने में मददगार है
(शायद यह उसका स्वाभाव है)
जरुरत है  एक ऐसी बिजली की चिंगारी की
जो इन दोनों को मिला कर
इनका स्वभाव बदल दे
इन्हें पानी(H2O)  बना दे
जो प्राणदायक हो
और जलन की आग को बुझा दे
ऐसी चिंगारी
मै कहाँ से लाऊ?
         मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


समाजवाद


आदमी,
जब उतर आता है,
मानसिक धरातल से
शारिरिक धरातल पर
तब औरत रह जाती है सिर्फ मादा,
और आमादा हो जाता है ,
पुरुष पशुता पर
उस समय
राजा और प्रजा में
ज्ञानी अज्ञानी में
धनि और निर्धन में
छोटे और बड़े में
कोई फर्क नहीं रहता
सब एक जैसे होते है
उन्माद के वो क्षण ही
सच्चे समाजवादी क्षण होते है
      मदन मोहन बहेती 'घोटू'

थकी थकी है भोर


रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
आलस के सुख में डूबा है ,तन का एक एक पौर
उर के हर एक स्पंदन में ,मुखरित है आनंद
सूखी माटी ,पा फुहार सुख ,देती सोंधी गंध
प्रणय पुष्प मकरंद प्रफुल्लित,मन आनंद विभोर
रात चांदनी ऐसी महकी,थकी थकी है भोर
पलक उनींदी,मीठे सपने,आकुल व्याकुल नैन
राह चाँद की तके चकोरी ,कब आएगी रैन
चोरी मन का चैन ले गया ,वो प्यारा चितचोर
रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
एसा खिला  खिला सा सूरज,देखा पहली बार
इतना प्यारा पंछी कलरव ,इतनी मस्त बयार
एसा लगता है धरती पर ,पुष्प खिले चहुँऔर
रात चांदनी ऐसी महकी ,थकी थकी है भोर
           मदन मोहन बहेती 'घोटू'

इलेक्ट्रो सिंथेसिस -

इलेक्ट्रो सिंथेसिस
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वो बस गएँ है दिन में तो दिल हल्का हो गया,
ज्यों हाइड्रोजन भर गयी ,दिल के बलून में
आने लगी है साँसों से खुशनुमा ताजगी
ज्यों ओक्सिजन समां गयी हो मेरे खून में
उनको छुवा तो बिजली का करंट सा लगा
सूरज की गरमी आगई हो जैसे मून में
हायड्रोजन ,ओक्सिजन को बिजली ने छुवा
दिल पानी पानी हो गया ,इश्क के जूनून में
         मदन मोहन बहेती'घोटू'

भोजन सुंदरी !

      भोजन सुंदरी
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तुम कोमल हो,नरम नरम
गुंथे हुए आटे के जैसी श्वेत वरन
काली काली सी जुल्फों में गोरा आनन्
गरम तवे पर सिकती हुई रोटियों जैसा
सुन्दर नाक समोसे जैसी,
दांत तुम्हारे
हैं पनीर के टुकड़े प्यारे
और मटर सी
मटर गश्तियाँ करती आँखे
आलू चापी कान,रूपसी!
 ,पापड़ से परिधान पहन कर जब हंसती हो
,एसा लगता है की किसीने ,
पका दाल अरहर की उसमे,
लहसुन की डाली बघार हो
तुम्हे देख कर भूख लग गयी ,
भूख मिटा दो ! भोजन सुंदरी!

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.

मैं -----

              मैं -----
अपने सुख दुःख चिंताओं का ,सारा बोझ मुझे दे दो तुम
एक दिवस की बात नहीं है ,ये सब रोज़ मुझे दे दो  तुम
सूनेपन में नींद न आये,तो मुझको बाँहों में ले लो
मै चूं तक भी नहीं करूँगा,जैसे चाहो ,वैसे खेलो
ये मेरा कोमल चिकना तन ,तुमको सुख देने खातिर है
जब भी चाहो,इससे खेलो ,हरदम सेवा में हाज़िर है
भूल जाओ वे सब बातें तुम,जिन्हें भुलाना अति मुश्किल है
मुझ पर सर रख कर सो जाओ ,यदि सुख जो करना हासिल है
रोज रात  सोवो मेरे संग ,सर तुम्हारा सहला ऊँगा
सुन्दर सुन्दर सपने देकर ,मन तुम्हारा बहलाऊँगा
मै साक्षी हूँ सूनेपन का,मै साक्षी हूँ मधुर मिलन का
एक मात्र चाहत हूँ मै ही,थके हुए तन ,भारी मन का
रोज रात रहता हूँ तुम संग ,पर न प्रियतमे ,न ही पिया हूँ
तुम्हारे सपनो का साथी ,मै तो तुम्हारा तकिया हूँ

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


मच्छरों ने


 मच्छरों ने
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रात भर मुझको सताया मच्छरों ने
नींद से मुझको जगाया मच्छरों ने
मुहं ढका तो नींद ना आई मुझे,
मुहं उधेडा ,काट खाया मच्छरों ने
आते जाते गाल की ले चुम्मियां,
याद को तेरी दिलाया मच्छरों ने
रात भर मैंने बजाई तालियाँ,
गीत कुछ एसा सुनाया मच्छरों ने
तेरे खर्राटे  भले लगने लगे,
रात भर जब भिनभिनाया मच्छरों ने
सभी मच्छार्नियाँ  उमड़ी टूट कर,
जब अकेला मर्द पाया मच्छरों ने
करवटें ही मै बदलता रह गया
इस तरह कुछ गुदगुदाया मच्छरों ने
नहीं मारो, आपका ही खून हैं
इस तरह कुछ  गिड़ गिडाया मच्छरों ने

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
नोयडा उ.प्र.