अर्थ का अनर्थ
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मैंने जब उनसे पूछा ,जीने की राह बतादो,
वो गए सीडियों तक और ,जीने की राह बता दी
वो लगे बैठ कर सीने,कुछ कपडे नए ,पुराने,
जब मैंने उनको सीने से लगने की चाह बता दी
मै बोला आग लगी है, तुम दिल की आग बुझा दो
,वो गए दौड़ ले आये,दो चार बाल्टी पानी
देकर सुराही वो बोले,जी चाहे उतना पी लो,
मैंने जब उनको अपनी ,पीने की चाह बता दी
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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Sunday, May 5, 2019
दास्ताने इश्क
थी बला की खूबसूरत ,वो हसीना ,नाज़नीं ,
देख कर के जिसको हम पे छा गयी दीवानगी
शोख थी,चंचल वो जालिम,कातिलाना थी अदा ,
छायी जिस की छवि दिल पर ,रहती सुबहो-शाम थी
इश्क था चढ़ती उमर का,सर पे चढ़ कर बोलता ,
त़ा उमर रटते रहे हम ,माला जिसके नाम की
उसने नज़रे इनायत की,जब बुढ़ापा आ गया ,
सूख जब फसलें गयी तो बारिशें किस काम की
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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