Saturday, July 7, 2012

कुछ परिभाषायें

              कुछ परिभाषायें
                   1
             राष्ट्रपिता      
    ये वो महान आत्मा है,जो राष्ट्र  को बनाता है
    भूखा रहता है,उपवास करता है
    दुश्मनों से लड़ता है,आन्दोलन करता है
राष्ट्र को गुलामी के फंदे से छुड़ाता है
और गोलियां खाकर के,शहीद हो जाता  है
दीवारों पर तस्वीर बन कर बन कर लटक जाता है
या फिर नोटों पर छाप दिया जाता  है
साल में एक दिन छुट्टी दिलाता है और याद किया जाता है
 वो महा पुरुष,राष्ट्रपिता कहलाता है
                     २
           राष्ट्रपति
ये वो निरीह प्राणी है,
जो घर का मुखिया तो कहलाता है
पर सारे फैसले  उसकी बीबी,
याने कि केबिनेट लेती है,
वो तो सिर्फ मोहर लगाता है
पति कि तरह सारे सुख पाता है
पर खुद कुछ  नहीं कर पाता है
पति कि तरह रहता है,
इसलिए राष्ट्र पति कहलाता है
                  ३
   सांसद निधि
ये जनता से करों द्वारा वसूला गया वो धन है,
जो जनता के नुमाइंदो को,
विकास के लिये बांटा  जाता है,
और जिससे वे,पहले अपना ,
फिर अपने    परिवार का विकास करते है,
और बची हुई सारी राशि,
अगले चुनाव में,
जनता को  लुटा दिया करते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


खंडहर बोलते हैं

     खंडहर बोलते हैं

जब भी मै कोई पुरानी इमारत के ,

खंडहर देखता हूँ,
मेरी कल्पनायें,पर लग कर उड़ने लगती है,
और पहुँच जाती है उस कालखंड में,
जब वो इमारत  बुलंद हुआ करती थी
जब वहां जीवन का संगीत गूंजता था
क्योंकि खंडहर काफी कुछ बोलते है
बस आपको उनकी भाषा की समझ होनी चाहिए
और कल्पना शक्ति होनी चाहिये ये देखने की,
कि आज जहाँ घिसी और उखड़ी हुई फर्श है,
कभी  वहां,गुदगुदे कालीन पर,
किसी के मेंहदी से रचे कोमल पांवों की,
पायल की छनछन सुनाई देती थी
और आज की इन बदरंग दीवारों ने,
जीवन के कितने रंग देखे  होंगें
अगर आपकी कल्पनाशक्ति तेज़ है,
और नज़रें पारखी है,
तो आप इतना कुछ देख सकते हो,
जो किसी ने नहीं देखा होगा
आप जब भी किसी बूढी महिला  को देखें ,
तो कल्पना करें,
कि जवानी के दिनों में,
उनका स्वरूप कैसा रहा होगा
झुर्री वाले गालों में कितनी लुनाई  होगी
ढले हुए तन पर ,कितना कसाव होगा
आज जो वो इतनी गिरी हुई हालत में है,
जवानी में उनने कितनी बिजलियाँ गिराई होगी
और जब आप उनकी जवानी कि तस्वीरों को,
अपने ख्यालों में उभरता हुआ साकार देखेंगे,
सच आपको बड़ा मज़ा आएगा
ये शगल इतना मनभावन होगा,
कि आसानी से वक़्त गुजर जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'