Friday, June 17, 2011

मैंने कहा पति हूँ मै,,कोई चपरासी नहीं,



दफ्तर में काम काम,घर पर भी ना आराम,
                 बन कर तेरा गुलाम, काम नहीं आऊंगा
चाम के चक्कर में,नाच बहुत नाचा मै,
                  तेरे इशारण पर, नाच नहीं पाऊंगा
इहाँ जाव,उहाँ जाव,साग और सब्जी लाव
                  बच्चो को घुमाय लाव,कहाँ कहाँ जाऊँगा
 मैंने कहा पति हूँ मै,,कोई चपरासी नहीं,
                   मेरा पत राखोगी तो,प्रीत बरसाउंगा
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मक्खन के समोसे से,गाल तुम्हारे चिकने,
                    रसगुल्ले सी प्यारी,आँखें तुम्हारी है
खुर्जा की खुरचन सी,स्वाद भरी संगत है
                    रबड़ी  के लच्छों सी,बातें तुम्हारी है
  जब तू मुस्कावत है,तो मन को भावत है,
                   लेकिन नचावत है मोहे, पड़े भारी है
मैंने कहा पति हूँ मै,,कोई चपरासी नहीं,
                    चोबे हूँ,ओबे (obey )की,आदत हमारी है

  मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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बारिश है पर दूर सजन है

बारिश है पर दूर सजन है
चूल्हा ठंडा पड़ा हुआ है,सिगड़ी बिगड़ी ,नहीं अगन है
बारिश है  पर दूर सजन है
है स्टोव बिसूरता उसमे पर मिटटी का तेल नहीं है
ओ पीहर की प्यारी प्रियतम,मेरा घर भी जेल नहीं है
आजकेतलीसूनी सूनी,भाग गयी है,चाय निगोड़ी
ठंडा मौसम,भूख लगी पर,कौन खिलाये,मुझे पकोड़ी
तेल पड़ा है,प्याज पड़े है,मगर पास में ना बेसन है
बारिश है पर दूर सजन है
पाकिट  भर सिगरेट पड़ी है,लेकिन सील गयी है माचिस
भुट्टा छिलकों बीच दबा है,कैसे पाऊं ,भुट्टे का 'किस'
बाहर रिमझिम है गीलापन ,लेकिन मेरा उर सूखा है
ओ दिलवाली! ये दीवाना तेरे दर्शन का भूखा है
'पी घर' से तो मन उकताता,पर 'पीहर' से लगी लगन है
बारिश है पर दूर सजन है

घोटू

मुकरियां

मुकरियां
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   १
जब जब देखूं,मन में भावे
व बिन मोहे ,कछु न सुहावे
मोको वासे  सच्चो प्रेमा
को सखी साजन, नहीं सिनेमा
       २
रात पड़े तब मोहे सतावे
पलक बसे अरु मोहि  सुलावे
दुक्ख भुलावे ,मोरा मितरा
को सखी साजन,न सखी निदरा
           ३
रात पड़े तब मो पर छावे
गरम करे मोरि ठण्ड भगावे
मजा देत है मोहि सुलाई
को सखी साजन,नहीं रजाई
          ४
दुबली,टेडी,ऊँची,नीची
प्यारी लागत रस में सींची
पीत वर्ण अति सुन्दर देबी
को सखे सजनी,नहीं जलेबी

घोटू
(सन १९५५-५६ में मध्यभारत की हाई स्कूल की
हिंदी पुस्तक में कुछ मुकरियां पढ़ी थी और लिखी भी थी
वो ही पुरानी मुकरियां प्रस्तुत है )