Wednesday, May 27, 2015

वहाँ के वहीँ

          वहाँ  के वहीँ

वो पहुंचे ,कहाँ से  कहीं है
हम जहाँ थे, वहीँ  के वहीँ है 
मुश्किलें सामने सब खड़ी थी
उनमे जज्बा था,हिम्मत बड़ी थी
हम बैठे रहे   बन  के  बुजदिल
वो गए बढ़ते और पा ली मंजिल
हम रहे हाथ पर हाथ धर कर
सिर्फ किस्मत पे विश्वास कर  कर
कर्म करिये, वचन ये सही  है
वो  पहुंचे कहाँ से कहीं है
जब मिला ना जो कुछ,किसको कोसें  
आदमी बढ़ता , खुद के  भरोसे
है जरूरी  बहुत  कर्म करना 
यदि जीवन में है आगे बढ़ना
वो मदद करता  उसकी ही प्यारे
मुश्किलों में जो हिम्मत न हारे
बात अब ये समझ आ गयी है
वो  पहुंचे ,कहाँ  से  कहीं है
 हम जहाँ थे , वहीँ  के वहीँ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेरा मेहबूब

           मेरा मेहबूब

मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह नहीं
मगर मेरी तो उसको  ज़रा भी परवाह नहीं
उसके वो गेसू,उसका हुस्न,तराशा वो बदन
करता परवाह ,बेपनाह ,करके सारे  जतन
उसको फुर्सत ही कहाँ मिलती है ले मेरी खबर
कभी तो डाले मुझ पे ,प्रेम भरी अपनी नज़र
बैठ कर,आईने में, खुद को निहारा करता
कभी चेहरा तो कभी जुल्फें संवारा  करता
ये सब वो करताहै तो मुझको ही रिझाने को,
कैसे कहदूं कि  उसके दिल में मेरी चाह नहीं
मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह नहीं
नहीं ये बेरुखी है ,ये है उसकी मजबूरी
बना के रख्खी है जो उसने मुझसे ये दूरी
क्योंकि मै मिलता हूँ उससे तो होता बेकाबू
इस तरह चलता मुझ पे हुस्न का उसके जादू
मुझको कुछ इस तरह से उसपे प्यार आता है
बिगड़ उसका ,किया श्रृंगार  सारा जाता  है
फिर भी होता नहीं है ख़त्म मेरा जोश-ओ-जूनून ,
इसलिए डरता हूँ और करता ये गुनाह नहीं
मुझको मालूम है कि है वो लापरवाह  नहीं
मगर मेरी तो उसको ज़रा भी परवाह नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पप्पू जी से

         पप्पू जी से
                 १
यूं तुम क्यों बिलबिलाते हो,हार की अपनी बरसी पे
दिये गम इतने दिन, आये चले अब मातमपुर्सी  पे
आदमी बैठ कर कुर्सी पे अक्सर भूल जाता  है,
उसी जनता जनार्दन को ,बिठाया जिसने कुर्सी  पे
                            २
अगर राजीव इंग्लैंड जा,वहां पर जो नहीं पढ़ते
और ना सोनिया मिलती ,न उससे नयन ही लड़ते
न ये होता ,न वो होता ,न जाने क्या क्या ना होता ,
मगर ये सच है 'पप्पूजी ',हमें ना झेलने पड़ते  
                    ३
इंडिया और इटली में ,फरक इतना नज़र आता ,
          यहाँ पर राम के चर्चे ,वहां पर रोम की चर्चें
बहुत मंहगा हमें पड़ता है संगेमरमर इटली का,
          और इटली के पीज़ा के ,चौगुने दाम हम खर्चें
बहू इटली की लाना भी,बड़ा मंहगा पड़ा हमको,
          हुआ है ऐसा पप्पू जो,रोज करता  बखेड़ा है
यहाँ जनता जनार्दन सब,कुतुबमीनार सी सीधी ,
        मगर पप्पू तो इटली के पीसाटावर सा टेढ़ा है
                          
घोटू  

  

त्रिदेव और त्रिदेवी

           त्रिदेव और त्रिदेवी

है ब्रह्मा कर्ता सृष्टी के ,कराते काम सब हमसे ,
      सरस्वती ज्ञान की देवी,सभी अज्ञान  हरती है
देव विष्णुजी भर्ता है,करें सबका भरण पोषण ,
       लक्ष्मी देवी धन की है, हमें संपन्न करती है
और शंकरजी हर्ता है,हरे सब मुश्किलें ,सबकी ,
       और माँ दुर्गा देवी है ,सभी को देती है  शक्ती
ये तीनो देवता ,देवी,चलाते चक्र जीवन का,
       है कर्ता ,भर्ता ,हर्ता ये,इन्ही की हम करें भक्ति

मदन मोहन बाहेती'घोटू'