Thursday, September 19, 2013

गलती हमी से हो गयी

               गलती हमी से हो गयी

        आपने जो भी लिखा सब ठीक था ,

          पढने में गलती हमी से हो गयी

बीज बोये और सींचे प्यार से,

चाहते थे ये चमन,गुलजार हो

पुष्प विकसे ,वृक्ष हो फल से लदे,

हर तरफ केवल महकता प्यार हो

          वृक्ष लेकिन कुछ कँटीले उग गये ,

           क्या कोई गलती जमीं से हो गयी

पालने में पूत के पग दिखे थे ,

मोह का मन पर मगर पर्दा पड़ा

उसी पग से लात मारेगा हमें ,

और तिरस्कृत करेगा होकर बड़ा

            पकड़ उंगली ,उसे चलना ,पग उठा,

             सिखाया ,गलती हमी से हो गयी

हमने तो बोये थे दाने पोस्त के,

फसल का रस मगर मादक हो गया

गुरूजी ने तो सिखाया योग था,

भोग में पर लिप्त साधक हो गया

               किस पे अब हम दोष आरोपित करें,

                कमी, कुछ ना कुछ, कहीं से हो गयी 

देख कर हालात  सूखी  धरा के ,

हमने माँगी थी दुआ  बरसात की

जल बरस कर मचा देगा तबाही ,

कल्पना भी नहीं थी इस बात की

                खफा था या मेहरबां था वो खुदा
                
                या खता फिर आदमी से हो गयी

                आपने जो लिखा था ,सब सही था,

                पढने में गलती हमीं से हो गयी  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'