शिकायत पत्नी की -जबाब पति का
पत्नी की शिकायत
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
क्या थी मै और आपने क्या कर दिया
प्यार कुछ अपना दिखाया इस तरह ,
देखो मुझको कितना मोटा कर दिया
रोज अपने प्यार का टोनिक पिला
बदन मेरा कर दिया है थुलथुला
मांस देखो कितना तन पर चढ़ गया
वजन मेरा देखो कितना बढ़ गया
अंग सारे इस कदर है बढ़ गए
सभी कपडे मेरे छोटे पड़ गये
कभी रबडी और जलेबी खिलाई
तली चीजें और मख्खन मलाई
प्यार का एसा चलाया सिलसिला
फूल मेरा तन गया ,अच्छा भला
और मैंने शिकायत जब भी करी ,
प्यार से बस एक चुम्बन जड़ दिया
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
क्या थी मै और आपने क्या कर दिया
जबाब पति का -
कौन कहता है की तुम मोटी हुई हो ,
सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का भरम है
आई थी,सकुचाई सी दुल्हन बने जब ,
उस समय तुम एक थी कच्ची कली सी
मुख म्रदुल था ,बड़ा भोलापन समेटे ,
और चितवन भी बड़ी चंचल भली थी
किन्तु मेरे प्यार का आहार पाकर ,
अब विकस पाया तुम्हारा तन सलोना
गाल भी फूले हुए लगते भले है ,
गात का गदरा गया है हरेक कोना
तो कली से फूल बन कर अब खिली हो ,
अब निखर पाया तुम्हारा रूप प्यारा
अब कली वाली चुभन चुभती नहीं है ,
अब हुआ कोमल बदन ,कंचन तुम्हारा
बढ़ गया यदि भार थोडा नितंबों का,
रूप निखरा है भली सेहत हुइ है
पड़ गए छोटे अगर कपडे पुराने ,
है खुशी मेरी सफल चाहत हुई है
और मोटापा समझती हो इसे तुम ,
देख कर के आइना आती शरम है
कौन कहता है कि तुम मोटी हुई हो,
सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का बहम है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पत्नी की शिकायत
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
क्या थी मै और आपने क्या कर दिया
प्यार कुछ अपना दिखाया इस तरह ,
देखो मुझको कितना मोटा कर दिया
रोज अपने प्यार का टोनिक पिला
बदन मेरा कर दिया है थुलथुला
मांस देखो कितना तन पर चढ़ गया
वजन मेरा देखो कितना बढ़ गया
अंग सारे इस कदर है बढ़ गए
सभी कपडे मेरे छोटे पड़ गये
कभी रबडी और जलेबी खिलाई
तली चीजें और मख्खन मलाई
प्यार का एसा चलाया सिलसिला
फूल मेरा तन गया ,अच्छा भला
और मैंने शिकायत जब भी करी ,
प्यार से बस एक चुम्बन जड़ दिया
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
क्या थी मै और आपने क्या कर दिया
जबाब पति का -
कौन कहता है की तुम मोटी हुई हो ,
सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का भरम है
आई थी,सकुचाई सी दुल्हन बने जब ,
उस समय तुम एक थी कच्ची कली सी
मुख म्रदुल था ,बड़ा भोलापन समेटे ,
और चितवन भी बड़ी चंचल भली थी
किन्तु मेरे प्यार का आहार पाकर ,
अब विकस पाया तुम्हारा तन सलोना
गाल भी फूले हुए लगते भले है ,
गात का गदरा गया है हरेक कोना
तो कली से फूल बन कर अब खिली हो ,
अब निखर पाया तुम्हारा रूप प्यारा
अब कली वाली चुभन चुभती नहीं है ,
अब हुआ कोमल बदन ,कंचन तुम्हारा
बढ़ गया यदि भार थोडा नितंबों का,
रूप निखरा है भली सेहत हुइ है
पड़ गए छोटे अगर कपडे पुराने ,
है खुशी मेरी सफल चाहत हुई है
और मोटापा समझती हो इसे तुम ,
देख कर के आइना आती शरम है
कौन कहता है कि तुम मोटी हुई हो,
सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का बहम है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'