Saturday, July 23, 2016

अब तक यह जीवन बीत गया

मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे को कहते सुनते ,अब तक यह जीवन बीत  गया
घर में यदि होते कुछ बरतन ,तो आपस में टकराते  पर ,
उनके टकराने से आता  है  जीवन में  संगीत  नया
सोचो यदि तुम चुपचाप रहो ,और मैं भी दिन भर चुप बैठूं ,
हम दोनों गुमसुम मौन रहें,तो अपनी क्या हालत होगी
इसके विपरीत लड़ेंगे हम,और एक दूजे पर चीखेंगे ,
आनन्द पड़ोसी लेंगे ,घर में रोज महाभारत  होगी
इससे तो ज्यादा बेहतर है ,जब तुम बोलो तो मैं सुनलूँ ,
मै कुछ बोलूं तो तुम सुन लो,तुम जीती,मैं भी जीत गया 
 मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो ,
इक दूजे को कहते ,सुनते,अब तक ये जीवन बीत गया
मियां बीबी में कहा सुनी, और छोटे मोटे ये झगड़े ,
जब चलते है तो वैवाहिक ,जीवन का आनंद आता है
ये रूठा रूठी ,मान मनोवल, प्यार बढ़ाया करते है ,
झगड़े के बाद समर्पण का ,सुख भी दूना हो जाता है
मैं कभी मान लूँ निज गलती,तुम कभी मानलो निज गलती,
तब ही घर में गूंजा करता ,संगीत,मिलन का गीत नया
मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे को कहते सुनते, अब तक ये जीवन बीत गया
बीबी यदि जो जिद नहीं करे ,तो फिर वह बीबी ही कैसी  ,
तुम भाव खाव ,फिर मान जाव,इसमें तुम्हारा पतिपन है
तुम ना ना कर उसकी मानो,वो ना कह माने  तुम्हारी ,
इस नोकझोंक में ख़ुशी ख़ुशी ,कट जाता सारा जीवन है
तुम कभी समर्पण कर देते ,वो कभी समर्पण कर देती,
सुख मिलता ,एक दूजे में हम,जब खोजा करते मीत नया
मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे की कहते सुनते ,अब तक ये जीवन बीत गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
        किन्तु  सठियाया नहीं हूँ आजतक

पार कर ली उम्र मैंने साठ  की,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
पहले जैसी ताजगी तो ना रही ,किन्तु मुरझाया नहीं हूँ आजतक 
वृद्धि अनुभव की हुई है इसलिए , लोग कहते हो गया मै वृद्ध हूँ
निभाने कर्तव्य अपना आज भी ,पहले जैसा पूर्ण ,मै कटिबद्ध हूँ
बड़ी कंकरीली डगर थी उम्र की ,राह में ठोकर लगी,कांटे मिले
कभी कोई ने दुलारा प्यार से ,तो किसी की डाट और चांटे मिले
झेलता झंझावतें तूफ़ान की ,नाव अपनी मगर मै खेता गया
 कभी धारा के चला विपरीत मै ,कभी धारा साथ मैं बहता गया
कई भंवरों में फंसा ,निकला मगर ,डूब मै पाया नहीं हूँ आजतक
पार करली उम्र मैंने साठ  की ,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
सौंप दी पतवार तुमको इसलिए ,क्योंकि तुममे लगन थी,उत्साह था
 देख कर जज्बा तुम्हारे जोश का ,करके कुछ दिखलानेवाली चाह का
इसका मतलब कदाचित भी ये नहीं,हो गए है  पस्त मेरे  हौंसले
उतर सकता आज भी मैदान में ,वही फुर्ती और पुराना जोश ले
पोटली ,यह पुरानी तो है मगर ,अनुभव के मोतियों से है भरी
नहीं मन में मैल या दुर्भाव है ,इसलिए ही बात करता हूँ खरी
पीढ़ियों के सोच की यह भिन्नता,मैं समझ पाया नहीं हूँ आजतक
पार कर ली उम्र मैंने साठ की ,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
प्रगति तुमने की,करो ,करते रहो ,प्रगति का पोषक हमेशा मैं रहा
संस्कृति ,संस्कार से भटके अगर,उसका आलोचक हमेशा मैं  रहा
तुम्हारी हर सफलता में खुश हुआ ,तुम्हारी पीड़ा लगी दुखदायिनी
किसी ने टेढ़ी नज़र तुमपर करी ,उस तरफ थी भृकुटियां मेरी तनी
कौन माली ,भला खुश होगा नहीं ,देख फलते ,फूलते उद्यान को
भूलना लेकिन न तुमको चाहये ,बागवाँ के किये उस अहसान को
है बड़ी मजबूत इस तरु की जड़ें,तभी हिल पाया नहीं हूँ आजतक
पार कर ली उम्र मैंने साठ की,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'