Sunday, July 23, 2023

मन की पीर 

जब नींद रात को ना आती 
हम सोते करवट बदल बदल 
बेचैन हुए लेटे रहते 
हैं कभी इधर तो कभी उधर 
इतना छाता एकाकीपन 
सपने भी तो आते है कम 
क्योंकि इतनी ना उमर बची,
उनको पूरा कर पाएं हम 
 दिल लगे पहाड़ों से लंबे 
 मुश्किल से ही कट पाते 
 घबराहट प्रकट नहीं करते,
 हम फिर भी रहते मुस्काते 
 लेकिन इन मुस्कानों पीछे
 है दर्द न दिखता अंदर का 
 लगता विशाल, पी ना पाते 
 खारा जल भरा समुंदर का 
 मन की पीड़ायें छुपी हुई 
 लेने लगती जब अंगड़ाई 
रह रह कर याद हमे आती,
कुछ अपनों की ही रुसवाई 
नयनों में बस जाता सावन 
और झर झर आंसू झरते हैं 
बस इन्हीं परिस्थितियों में हम 
नित जीते हैं ,नित मरते है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जीवन व्यापन 


उमर हमारी ज्यों ज्यों बढ़ती
वैसे जीवन अवधि घटती 
यह अटल नियम है प्रकृति का,
पकती है फसल, तभी कटती 
बचपन , यौवन,वृद्धावस्था 
ये ही तो है जीवन का क्रम 
हंसते गाते, सुख में, दुख में,
जैसे तैसे कटता जीवन 

यह नहीं कदापि आवश्यक 
जीवन पथ कंटक हीन रहे 
बाधाएं सब को ही मिलती,
 कितना ही कोई प्रवीण रहे 
 हो राह अगर जो कंकरीली 
 चलते हैं तो चुभते पत्थर 
 हो राह अगर कीचड़ वाली,
 बढ़ते हैं पांव मगर धस कर 
 चलना पड़ता है संभल संभल 
 लड़ना है मुश्किल से हर क्षण 
 हंसते गाते, सुख में, दुख में 
 जैसे तैसे कटता जीवन 
 
कुछ लोग मौज काटा करते,
 डूबे रहते हैं मस्ती में 
 कुछ की कट जाती उम्र यूं ही 
 उलझे रह करके गृहस्थी में 
 अपना अस्तित्व बचाने को 
 करना पड़ती है मार काट 
 चाहे अनचाहे तत्वों से 
 करनी पड़ती है सांठगांठ 
 रहना पड़ता संघर्षशील ,
  है सरल नहीं जीवन व्यापन 
  हंसते गाते ,सुख में ,दुख में 
  जैसे तैसे कटता जीवन 
  
है प्यार कभी, तकरार कभी 
इंकार कभी , इकरार कभी
तुम बूढ़े हुए ,बदल जाता 
अपनों का भी व्यवहार कभी 
अपने-अपने सब कामों में 
हो जाते अपने सभी व्यस्त 
और तरह तरह के रोग हमें 
करने लगते हैं बहुत त्रस्त
जर्जर होता चंदन सा तन 
और पल-पल विव्हल होता मन 
हंसते गाते ,सुख में ,दुख में ,
जैसे तैसे कटता जीवन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदनसीबी 

जिससे करी थी हमने मोहब्बत थी बेपनाह 
उस बेमुरव्वत में हमें लेकिन किया तबाह 
हमराह मिली ऐसी की गुमराह कर दिया ,
कर नहीं पाई  संग हमारे जरा निभाह
दो-चार दिन में ही हमें गुलाम कर दिया 
मां-बाप को हमारे है गुमनाम कर दिया

घोटू 
पति की फरमाइश 

खातिर में साले साहब की जुटती हो जिस तरह,
हम पर भी मेहरबानी कुछ दिखला दिया करो

करती हो तुम दामाद की जितनी आवाभगत पकवान थोड़े हमको भी चखवा दिया करो 

बच्चों पर लुटाती हो जैसे लाड प्यार तुम ,
हम पर भी इनायत कभी फरमा दिया करो 

हम भी तुम्हारे शौहर हैं,कोई गैर तो नहीं ,
थोड़ी तवज्जो हम पर भी बरसा दिया करो

मदन मोहन बाहेती घोटू
पसंद अपनी अपनी ,ख्याल अपना-अपना 

मैं पत्नी से बोला तुम लगती अच्छी हो 
भोली भाली सीधी और मन की सच्ची हो  
तुम्हारा चेहरा खिलता हुआ गुलाब है 
तुम्हारे होठों में सबसे महंगी शराब है 
तुम्हारी चंचल आंखें बिजलियां गिराती है 
तुम्हारे गालों की रंगत मदमाती है 
तुम्हारी मुस्कान ,प्यार की परिभाषा है 
तुम्हारे शरीर को भगवान ने खुद तराशा है 
तुम्हारी चाल में हिरणी सी चपलता है 
तुम्हारी हर बात में अमृत बरसता है 
तुम कनक की छड़ी हो लेकिन कोमल हो 
तुम सुंदर अति सुंदर और चंचल हो 
तुम्हारा प्यार अनमोल है हीरे जैसा 
अब तुम मुझे बता दो मैं तुम्हें लगता हूं कैसा 
पत्नी बोली कि बतलाऊं मैं सच सच 
तुम बड़े प्यारे हो *आई लव यू वेरी मच *
तुम गोलगप्पे की तरह स्वाद से भरे हो 
तुम मन को ललचाते ,स्वादिष्ट दही बड़े हो 
पापड़ी चाट की तरह चटपटे और स्वाद हो 
मुंबई की भेलपूरी की तरह लाजवाब हो 
आलू टिक्की की तरह कुरकुरे और लजीज हो पाव भाजी की तरह मनभाती  चीज हो 
प्यार से भरा हुआ गरम गरम समोसा हो 
मन को सुहाता हुआ इडली और डोसा हो
मुझे ऐसे भाते हो जैसे बारिश में पकोड़े 
जलेबी से रस भरे पर टेढ़ेमेढ़े हो थोड़े 
रसगुल्ले गुलाबजामुन से मीठे और रसीले हो 
मूंग दाल हलवे की तरह पर थोड़े ढीले हो
रसीली इमरती की तरह सुंदर बल खाते हो 
आइसक्रीम की तरह जल्दी पिघल जाते हो राजस्थान का प्यार भरा दाल बाटी चूरमा हो 
मैं तुम्हें बहुत चाहती हूं तुम मेरे सूरमा हो 
अब आप समझ ही गए होंगे अपनी चाहत 
अलग अलग तरीके से प्रकट करते हैं सब 
अपने ढंग से अपना प्यार बतलाता है हर जना पसंद अपनी अपनी  ,ख्याल अपना अपना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Thursday, July 13, 2023

अपना अपना घर 

तुमने अपने मां-बाप का घर,
 जो कि तुम्हें अपना घर लगता था,
 एक दिन छोड़ दिया क्योंकि ,
 तुम्हें मेरे साथ मिलकर 
अपना घर बसाना था
 
हमारे बच्चों ने भी हमारा घर ,
जो कि उनका भी उतना ही अपना था 
शादी के बाद छोड़ दिया क्योंकि 
उन्हें अपने पत्नी के साथ 
अपना घर बसाना था

  ये अपना घर छोड़ने का सिलसिला ,
  सभी के साथ उम्र भर चलता है
  हम अपनापन भूल कर ,
  अपना घर छोड़ देते हैं  
  अलग से अपना घर बसाने को 

कितने ही अपने अक्सर
हो जाते है पराये क्योंकि 
उन्हें अपने ढंग से जीने के लिए,
अपना अलग अस्तित्व बनाना होता है 
  
  हमारा यह शरीर भी तो 
  हमारी आत्मा का अपना ही घर है 
  जिसे  एक दिन किसी और शरीर में
  अपना घर बसाने को,
अपना घर छोड़ कर जाना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 


प्रार्थना 

जीर्णशीर्ण तन हुआ दिनोंदिन, बढी उम्र के साथ 
कई व्याधियों ने आ घेरा ,मचा रही उत्पात 
बहुत ही बिगड़ रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

हरा-भरा मैं एक वृक्ष था, घना ,मनोहर, प्यारा 
कई टहनियां, कोमल पत्ते, लदा फलों से सारा 
नीड़ बनाकर पंछी रहते, चहका करते दिनभर और गर्मी की तेज धूप में ,छाया देता शीतल लेकिन ऐसा पतझड़ आया ,पीले पड़ गए पात बहुत ही बिगड़ रहे  हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

तने तने से सुंदर तन से ,गायब हुई लुनाई 
चिकने चिकने से गालों पर आज झुर्रियां छाई ढीले ढाले अंग पड़ गए ,रही नहीं तंदुरुस्ती 
यौवन वाला जोश ढल गया, ना फुर्ती ना चुस्ती 
कमर झुक गई थोड़ी-थोड़ी थके पांव और हाथ 
बहुत ही बिगड़ रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

डॉक्टर कहते शुगर बढ़ गई ,किडनी करे न काम 
खानपान में मेरे लग गई ,पाबंदियां तमाम 
बढ़ा हुआ रहता ब्लडप्रेशर दिल का फंक्शन ढीला 
लीवर में भी कुछ गड़बड़ है, चेहरा पड़ गया पीला 
आंखों से धुंधला दिखता है ,पीड़ा देते दांत 
बहुत ही बिगड़ रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ 

मोह माया में फंसा हुआ मन, चाहे लंबा जीना मौज और मस्ती खूब उड़ाना ,अच्छा खाना-पीना 
सच्चे दिल से करूं प्रार्थना तुमसे मैं भगवान 
ऐसी संजीवनी पिला दो ,फिर से बनूं जवान सवामनी परशाद चढ़ाऊं ,मैं श्रद्धा के साथ 
बहुत ही बदल रहे हालात 
ठीक तुम कर दो दीनानाथ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Monday, July 10, 2023

हम ,घड़ी के दो कांटे

मैं और मेरी पत्नी 
मैं घड़ी के छोटे कांटे जैसा, 
और वह घड़ी के बड़े कांटे जितनी 
वह जब चलती है 
बात का बतंगड़ बना देती है 
घड़ी के बड़े कांटे जैसी,
 एक घंटे में पूरी घड़ी का चक्कर लगा लेती है और मैं बड़े आराम से चलता हूं 
वही बात में पांच मिनट की दूरी में 
 कह दिया करता हूं 
 वह कभी चुप नहीं रह सकती 
 और दिन भर टिक टिक है करती 
 मैं एक आदर्श पति की तरह मौन रहता हूं 
 और दिन रात उसकी किच किच सहता हूं 
 फिर भी हम दोनों में है बहुत प्यार
 हम एक घंटे में मिल ही लेते हैं एक बार 
 कभी झगड़ा होता है तो हो जाते हैं आमने सामने 
पर हम दोनों एक दूसरे के लिए ही है बने 
बारह राशियों में बंटे हुए हैं 
 फिर भी एक धुरी पर टिके हुए हैं 
 और यह बात भी सही है 
 एक दूसरे के बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है

मदन मोहन बाहेती घोटू 


अतुल सुनीता परिणय उत्सव पर 
1
अतुल सुनीता व्याह को, बीते पैंतीस साल 
जोड़ी है अति सुहानी ,सबसे मृदु व्यवहार 
सबसे मृदु व्यवहार ,लुटाते प्रेम सभी पर 
सबसे हंस कर मिलते, देते खुशियां जी भर 
इनके अपनेपन ने सबका हृदय छुआ है 
जियें सैकड़ों साल, हमारी यही दुआ है 
2
कार्यकुशल कर्मठ अतुल ,मनमौजी है मस्त सुनीता है ग्रहणी कुशल ,गुण से भरी समस्त 
गुण से भरी समस्त ,धार्मिक संस्कार है 
पूरे परिवार का इनको सदा ख्याल है 
कार्तिकेय है पुत्र, शिवांगी प्यारी बिटिया 
ईश्वर दे इन सब को दुनिया भर की खुशियां

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जोड़ियां 

भगवान की महिमा अपरंपार है 
उसे जोड़ी बनाने से प्यार है 
उसने जब हमारा शरीर रचा 
तो जोड़ी बनाने का ख्याल रखा 
दो आंखें दी ,जोड़ी से 
दो कान दिए, जोड़ी से 
दो हाथ दिए ,जोड़ी से 
दो पांव दिए ,जोड़ी से 
यही नहीं पति-पत्नी की जोड़ी भी,
भगवान द्वारा ही बनाई जाती है 
जो जीवन भर जुड़ी रहकर साथ निभाती है 
पर कई बार यह बात देखने में आती है 
भगवान द्वारा कभी-कभी बेमेल जोड़ी भी बन जाती है 
पर इनमें कुछ तो समय के साथ हो जाती है एडजस्ट 
मगर कुछ को साथ साथ रहने में होता है कष्ट जब इनमें आपस में नहीं पट पाती है 
तो यह जोड़ियां चटक जाती है 
और जब बढ़ता है वाद-विवाद 
तो फिर कुछ दिनों के बाद 
जब तलाक की नौबत आती है 
तो भगवान की बनाई जोड़ियां भी टूट जाती है वैसे इंसान भी बनाता है कुछ जोड़ी 
जो अकेली नहीं जा सकती है छोड़ी 
जैसे जूते की जोड़ी 
अकेला जूता अपनी किस्मत पर रोता है
किसी नेता पर फेंकने के अलावा,
किसी काम का नहीं होता है
और भी जोड़ियां है जैसे साइकिल या बैलगाड़ी के पहियों की जोड़ी 
अकेली किसी भी काम की नहीं निगोडी
कुछ और भी जोड़ियां है जैसे टेबल टेनिस की बॉल और बेट
बैडमिंटन की शटल कॉक और रैकेट 
ये एक दूसरे के बिना अस्तित्वहीन है 
आप मुझसे सहमत होंगे, मुझे यकीन है 
वैसे कुछ खाने-पीने की जोड़ी भी इंसान बनाता है जब साथ-साथ खाते हैं तो दूना मजा आता है जैसे जलेबी और समोसा 
इडली और डोसा 
जब साथ साथ रहते हैं 
बड़ा स्वाद देते हैं 
जैसे बड़ा और पाव या पाव और भाजी 
अकेले खाकर कौन होता है राजी 
जैसे पानी और पताशा 
जब एक दूसरे में समाते हैं 
तभी जिव्हा को भाते हैं 
जेसे दही और बड़े 
जब जोड़ी में मिलते हैं तभी लगते हैं स्वाद बड़े जैसे चाय और पकौड़ी 
बारिश में साथ मिल जाए तो नहीं जाती है छोड़ी या गर्मी में कुल्फी और फलूदा
अच्छे नहीं लगते जब होते हैं जुदा
जैसे छोला और भटूरा 
एक दूसरे के बिना जिनका स्वाद है अधूरा  
जैसे बिहार की लिट्टी और चोखा 
दोनों मिलकर साथ देते हैं स्वाद अनोखा
तरह तरह की जोड़ियां खाने में मजा आता है 
पर आम आदमी दाल और रोटी की जोड़ी से ही काम चलाता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Saturday, July 8, 2023

जब से तुझ से नजर लड़ गई

जब से तुझ से नजर लड़ गई 
सीधे दिल में आई, गढ़ गई 
तू मुस्काई ,मैं मुस्काया ,
धीरे-धीरे बात बढ़ गई 

प्यार हमारा चुपके-चुपके,
पनपा और हो गया विकसित 
एक दूसरे से जब मिलते,
हम दोनों होते रोमांचित 
मनभावन था मिलन हमारा,
और प्रीत परवान चढ़ गई 
जब से तुझ से नजर लड़ गई 
  
हुई लड़ाई जब नयनों में ,
दोस्त बन गए अपने दो दिल
लगी महकने जीवन बगिया,
गई प्यार की कलियां है खिल 
तुझसे मिलने की अकुलाहट ,
बेचैनी दिन-रात बढ़ गई 
जब से तुझ से नजर लड़ गई

घोटू 
मुनासिब नहीं है 

अदाएं दिखाकर बनाना दीवाना 
तरसा के हमको यूं ही बस सताना 
हर एक बात पर फिर बहाना बनाना 
किसी भी तरह से यह वाजिब नहीं है

 कभी रूठ जाना, कभी फिर मनाना 
 अपने इशारों पर हमको नचाना 
 होकर खफा तीखे तेवर दिखाना 
 दिल तोड़ देना ,मुनासिब नहीं है 
 

चोरी छुपे फिर मिलना मिलाना 
कहना हमेशा ,हमे ना ना ना ना 
तड़पता हमें देख कर मुस्कुराना 
उल्फत उसूलों मुताबिक़ नहीं है

कभी प्यार से हमसे नजरें मिलाना
कभी फिर खफा हो के नजरें चुराना 
छोटी सी बातें ,फसाना बनाना 
तुम्हारे तरीके ये वाजिब नहीं है

घोटू 

Sunday, July 2, 2023

मारा मारी

मैं बेचारा आफत मारा 
हरदम रहा शराफत मारा 
अब हूं बड़ी मुसीबत मारा 
और फिरता हूं मारा मारा 

बचपन में था प्यार का मारा 
सबके लाड दुलार का मारा 
लेकर छड़ी गुरु ने मारा 
थप्पड़ पापा जी ने मारा 

आई जवानी जोश ने मारा 
गुस्सा और आक्रोश ने मारा 
बीवी से तकरार ने मारा 
मुझको शिष्टाचार ने मारा 

नजरों के बाणों से मारा 
कुछ तीखे तानों से मारा 
हुई जुदाई गम ने मारा 
कुछ बदले मौसम ने मारा 

मैं कुर्सी और पद का मारा 
बहुत रौब करता था मारा 
मगर वक्त ने ऐसा मारा 
अब हूं बेकारी का मारा 

करते थे जो मक्खन मारा 
उन्हें अब कर लिया किनारा 
यारों की यारी का मारा 
अब मैं करता हूं झक मारा 

इश्क में बेवफाई ने मारा 
उनकी रुसवाई ने मारा 
थोड़ा तनहाई ने मारा 
बढ़ती महंगाई ने मारा 

कभी हाथ था लंबा मारा 
चौका मारा, छक्का मारा 
तीर कभी तो तुक्का मारा 
पर किस्मत ने मुक्का मारा 

वृद्ध हुआ ,लाचारी मारा
कितनी ही बीमारी मारा 
फिर भी जिम्मेदारी मारा 
रोज की मारा मारी मारा 

मैं बेचारा आफत मारा 
फिरता हूं अब मारा मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

Saturday, July 1, 2023

ग़ज़ल 

बस्ती में भरे बबूलो की 
तुम चाह कर रहे फूलों की 
ऊपर ,नीचे ,दाएं, बाएं,
हर तरफ चुभन है फूलों की 
झुलसाती लू में करते हो,
आशा सावन के झूलों की
 डिस्को का डांस नहीं होता,
 महफिल में लंगड़े लूलों की 
 जब स्वार्थ सिद्ध हो जाता है,
 चढ़ जाती बली उसूलों की 
 "घोटू" मिल जाती हमें सजा ,
 जीते जी अपनी भूलों की

घोटू 
साठ के पार 

साठ बरस की उम्र एक ऐसा पड़ाव है 
जब बुढ़ापा आता दबे पांव है 
पर आदमी जब होता है पिचोहत्तर के पार 
तब खुल्लम-खुल्ला बनता है उम्र का त्यौहार अनुभव की गठरी साथ होती है 
तब बूढ़ा होना गर्व की बात होती है 
भले ही बालों में सफेदी हो या झुर्रियां हो तन में 
मैंने एक अच्छा जीवन जिया है ,संतोष होता है मन में 
लेकिन जब धीरे-धीरे उम्र और बढ़ती जाती है 
उम्र जन्य कई बीमारियां हमें सताती है 
तन में शिथिलता व्याप्त होती है 
थोड़ी थोड़ी याददाश्त खोती है 
फिर भी लंबा जीने की तमन्ना बढ़ती जाती है 
जैसे बुझने के पहले दीपक की लौ फड़फड़ाती है
नहीं छूटती है माया मोह और आसक्ति 
जब की उम्र होती है करने की ईश्वर की भक्ति सचमुच को होता है बड़ा अचंभा 
आदमी बुढ़ापे से तौबा करता है,
 फिर भी चाहता है जीना लंबा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुढ़ापे का आलम 

आजकल अपने बुढ़ापे का यह आलम है 
नींद तो आती कम है 
तरह तरह के ख्याल आते है
 ख्याल क्या बवाल आते हैं 
 पुराने जमाने की हीरोइने सारी 
 याद आती है बारी बारी
 जैसे कल ही मैंने सपने में देखा 
 सजी-धजी सी *उमरावजान की रेखा *
 मुझको लुभा रही थी 
 वो गाना गा रही थी 
 *दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए *
 *बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए*
  मेरी हो रही थी फजीहत 
  उसका कहा मानने की बची ही कहां है हिम्मत 
उसकी मांग जबरदस्त थी
  पर मेरी हिम्मत पस्त थी 
  मैंने झट चादर से अपना मुंह ढक डाला 
  तभी सामने आ गई *संगम की वैजयंतीमाला* 
उसका रूप था बड़ा सुहाना 
 और वह शिकायत भरे लहजे में गा रही थी गाना 
*मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया *
 सकपकाहट से मेरा मुंह सिल गया 
 मैं घबराया , शरमाया, सकुचाया
 कुछ भी नहीं बोल पाया 
 मैंने अपने ध्यान को इधर उधर भटकाया 
 पर सुई थी वही पर गई अटक 
 और मेरे सामने *पाकीजा की मीना कुमारी *हो गई प्रकट 
 और मुझे देख कर मुस्कुराने लगी 
 और मुझको चिढ़ाने लगी
  *ठाड़े रहियो ओ बांके यार *
  *मैं तो कर लूंगी थोड़ा इंतजार *
  मैंने कहा मैडम 
  इन हड्डियों में नहीं बचा है इतना दम 
 जवानी वाले हालात नहीं है 
ज्यादा देर तक खड़े रहना मेरे बस की बात नहीं है 
झेल कर इस तरह की मानसिक यातना 
मेरा मन हो जाता है अनमना 
मैं होने लगता हूं विचलित 
ऊपर से पूछती है *खलनायक की माधुरी दीक्षित* 
*चोली के पीछे क्या है *
*चुनरी के नीचे क्या है *
अब आप ही बताइए 
मुझे से खेले खाये खिलाड़ी से यह पूछना कहां तक है उचित 
यह सब है बुढ़ापे का त्रास 
मुझे लगता है सब उड़ाती है मेरा उपहास
इसलिए आजकल खाने लगा हूं 
बाबा रामदेव का च्यवनप्राश

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भगवान से सीधी बात 

भगवान मुझे तू बतला दे अब क्या है तेरे एजेंडे में 
मेरी सारी अर्जी को तू, रख देता बस्ते ठंडे में 

तू तो है सबका परमपिता ,और मैं भी तेरा बच्चा हूं
थोड़ा जिद्दी हूं नटखट हूं लेकिन मैं मन का सच्चा हूं 
जो भी मेरी जरूरत होगी पापा से ही मनवाऊंगा 
पीछे पड़ करके जिद अपनी, सारी पूरी करवाऊंगा 
 तुझको पूरा करना होगा 
 मेरी झोली भरना होगा 
 मैं नहीं आऊंगा कैसे भी आश्वासन के हथकंडे में 
भगवान मुझे तू बतला दे अब क्या है तेरे एजंडे में
 
 ना मेरे पास पता तेरा, ना ही है मोबाइल नंबर अपनी ईमेल आईडी दे ,फिर चैट करूंगा मैं जी भर 
 मैं सभी समस्या का अपनी, तुझसे निदान करवाऊंगा 
और स्वीगी और जोमैटो से ,तुझ पर प्रसाद चढ़वाऊंगा 
मैं डायरेक्ट अपनी मांगें
रख दूंगा सब तेरे आगे 
विश्वास रहा ना अब मेरा तेरे पंडित या पंडे में भगवान मुझे तू बतला दे ,अब क्या है तेरे एजेंडे में

तेरी पूजा सेवा पानी ,करते यह जीवन गया गुजर 
तूने सुख मुझको भी बहुत दिए और दुख भी बांटे रह रहकर 
यह बचाकुचा जितना जीवन, हंसकर तू सुख से जीने दे 
अब नहीं बीमारी कोई रहे ,मनचाहा खाने पीने दे 
जपते जपते मैं राम नाम 
आ पहुंचूं तेरे पुण्य धाम 
बस दे देना तू मोक्ष मुझे, ना फंसू चौरासी फंदे में 
भगवान मुझे तू बतला दे कि क्या है तेरे एजेंडे में

मदन मोहन बाहेती घोटू