Monday, January 30, 2017

           आदमी की बेबसी

इस तरह की बेबसी में ,रहा जीता आदमी
खून कम था,गम के आंसू ,रहा  पीता आदमी
पैसे की परवाह में ,परवाह खुद की, की नहीं
ऐसा लापरवाह रहा कि जिंदगी जी ही नहीं
अपने पर ही सब कटौती ,रहा करता आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता  आदमी
गृहस्थी के बोझ में वो इस तरह पिसता रहा
खून तन का ,बन पसीना ,बदन से रिसता रहा 
रख के स्वाभिमान गिरवी ,औरों की सुनता रहा
कभी तो ये दिन फिरेंगे ,ख्वाब ये बुनता  रहा
ठोकरें खा,गिरता ,उठता , गया चलता आदमी
रोज ही जीने के खातिर रहा मरता   आदमी
 मुश्किलों  में दिन गुजारे,रात भी सो ना सका
इतने गम और पीड़ में भी ,खुल के वो रो ना सका
हंसा भी वो ,जो कभी तो ,खोखली  सी  एक हंसी
जिंदगी भर ,रही छायी,  मायूसी और  बेबसी
जुल्म ये खुद पर  हमेशा  ,रहा करता  आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता   आदमी
भाग्य के और आस्था के गीत वो गाता रहा
पत्थरों की ,मूरतों को,सर नमाता वो  रहा
पुण्य  थोड़ा सा कमाने ,पाप  करता वो रहा
इसी उलझन में हमेशा ,बस उलझता वो रहा
जमाने की बेरुखी से ,रहा डरता  आदमी
रोज ही जीने के खातिर ,रहा मरता आदमी

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
बुढापा एन्जॉय करिये
 
मन मचलता ,सदा रहता ,कामना होती कई है
कुछ न कुछ मजबूरियों बस ,पूर्ण हो पाती नहीं है
आपका चलता नहीं बस ,व्यस्तता के कभी कारण
कभी मन संकोच करता ,गृहस्थी की कभी उलझन
भावना मन में अधूरी , दबा तुम  रहते   उदासे
पूर्ण करलो वो भड़ासें ,जब तलक चल रही साँसे
अभी तक जो कर न पाये ,वो सभी कुछ ट्राय करिये
,बुढापा एन्जॉय   करिये ,बुढापा  एन्जॉय  करिये
दांत से पैसा पकड़ कर ,बस जमा करते रहे तुम
अपने पर सारी कटौती ,खामखां करते रहे तुम
कोल्हू के बैल बन कर ,निभाया दायित्व अपना
मुश्किलों से भी न पूरा ,किया अपना कोई अपना
यूं ही बस मन को मसोसे ,काटी अब तक जिंदगानी
नए ढंग से अब जियो तुम,छोड़ कर आदत   पुरानी
घूमिये फिरिये मज़े से ,खाइये,सजिये ,सँवरिये
बुढ़ापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये 
जिंदगानी के सफर की ,सुहानी सबसे उमर ये
तपा दिनभर,प्रखर था जो सूर्य का ढलता प्रहर ये
सांझ की शीतल हवाएँ,दे रही तुमको निमंत्रण
क्षितिज में सूरज धरा  को,कर रहा अपना समर्पण
चहचहाते पंछियों के ,लौटते दल ,नीड में है
यह मधुर सुख की घडी है,आप क्यों फिर पीड़ में है
सुहानी यादों के अम्बर में,बने पंछी , बिचरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय करिये
अभी तक तो जिंदगी तुम ,औरों के खातिर जिये है
जो कमाया या बचाया ,छोड़ना किसके लिए है
पूर्ण सुख उसका उठा लो ,स्वयं हित ,उपभोग करके
हसरतें सब पूर्ण करलो ,रखा जिनको  रोक करके
बचे जीवन का हरेक दिन ,समझ कर उत्सव मनायें 
मर गए यदि लिए मन में , कुछ अधूरी कामनाएं 
नहीं मुक्ति मिल सकेगी ,सोच कर ये जरा डरिये
बुढापा एन्जॉय करिये ,बुढापा एन्जॉय  करिये

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
घोटूजी का टेक्स प्रपोजल

घोटूजी के टेक्स के ये कुछ प्रपोजल है किये
टेक्स फ्री हो सपने सारे ,जितने चाहे,देखिये
टेक्स फ्री हो दोस्ती  पर दुश्मनी पर टेक्स हो
छूट नेकी पर मिले ,लेकिन बदी  पर टेक्स हो
टेक्स आंसू पर लगाओ तो फिर होगा हाल ये
बहने  ना देंगे ,बचा कर, सब रखेंगे  माल  ये
टेक्स गुस्से पर लगाओ,झगड़े की जड़ है यही
दबाया जो ,लोगों ने तो ,मुश्किलें  होगी  नहीं 
टेक्स फ्री कर दो हंसी को ,मुस्कराना भी  फ्री
फ्री दिल का लेना देना ,दिल लगाना भी फ्री 
रूठने पर टेक्स हो  पर मनाने पर छूट हो
साल में दो बार मइके जाने पर भी छूट हो
पत्नीकी फरमाइशों को ,कोई  जब पूरा करे
इसके पहले जरूरी है,साठ प्रतिशत कर भरे
फायदा  ये  ,पत्नी की फरमाइशें घट जायेगी
रोज की किचकिच  कलह फिर घरों से हट जायेगी
टेक्स फ्री बदसूरती हो ,टेक्स ब्यूटीफुल   भरे
औरतें खुद  इसके खातिर ,अपना आलंकन करे
नाज़ और नखरों पे भी ,थोड़ा नियंत्रण चाहिए
बीस प्रतिशत कम से कम ,सरचार्ज लगना चाहिए 
कौन ज्यादा टेक्स दे ,यह कॉम्पिटिशन बढ़ेगा
फिर तो सरकारी खजाना ,चुटकियों में भरेगा

मदनमोहन बाहेती'घोटू'